भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
संयम चौथी कक्षा का विद्यार्थी था। उसकी उम्र थी दस वर्ष। वह पढ़ाई में कुशाग्र बुद्धि का धनी था। अपने सभी मित्रों के साथ संयम का व्यवहार अत्यन्त मधुर व सहयोग-भाव से ओतप्रोत था। यही कारण था कि संयम के मित्रों की संख्या बहुत अधिक थी। मित्रों के सुख-दुख में अपनी क्षमतानुसार सहायता करना उसकी दिनचर्या थी।
कक्षाध्यापिका अवंती भी संयम को आवश्यकता से अधिक महत्त्व देती थी। वह हर घड़ी यह भी ध्यान रखती थी कि संयम किसी कदम पर दिशा भ्रमित न हो जाए। विद्यालय में समय-समय पर अन्य अध्यापिकाओं से भी वह संयम की नेकनीयती एवं कार्यकुशलता की चर्चा करते नहीं थकती थीं।
विद्यालय का एक नियम था कि माह के अंतिम शनिवार को प्रत्येक विषय का टेस्ट लिया जाए और उसकी रिपोर्ट उनके माता-पिता तक पहुंचाई जाए। इसके दो लाभ थे- एक तो विद्यार्थियों की योग्यता का पता लग जाता था और दूसरे उनके माता-पिता को अपने बच्चों की प्रगति का लेखा-जोखा। विद्यालय की मुख्याध्यापिका होनहार विद्यार्थियों को पारितोषिक भी प्रदान करती थीं। इसका परिणाम सराहनीय निकलता था। पूरे वर्ष पढ़ाई के प्रति उनमें जोश व उत्साह बना रहता था। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ बनी रहती थी सभी में।
आज भी माह का अंतिम शनिवार था। कक्षा में हिन्दी, अंग्रेजी, गणित सहित सभी विषयों की मासिक परीक्षा होनी थी। सभी विद्यार्थी पूरी तैयारी करके आए हुए थे। प्रथम पीरियड से ही मासिक परीक्षा का सिलसिला शुरू हो गया था। हिन्दी, अंग्रेजी तथा परिवेश अध्ययन विषयों की परीक्षा तो अर्द्ध-अवकाश तक सम्पन्न हो चुकी थीं। अर्द्ध-अवकाश के पश्चात् गणित विषय की परीक्षा रखी गयी थी। कारण, अर्द्ध-अवकाश में विद्यार्थी भोजन ग्रहण करके नवीन ऊर्जा के साथ परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दे सकें।
घंटी बजी। अर्द्ध-अवकाश के पश्चात् सारे विद्यार्थी पूरे अनुशासन के साथ कक्षा में बैठे गए। कक्षाध्यापिका अवंती ने श्यामपट्ट पर दस सवाल लिखे। विद्यार्थियों को अपनी अभ्यास-पुस्तिका पर उन सवालों के जवाब देने थे। सभी पूरी तल्लीनता से सवालों के जवाब देने में व्यस्त हो गए।
संयम ने नौ सवाल तो हल कर लिए किन्तु दसवें सवाल को हल करते समय वह अटक गया। संयम की बगल वाली सीट पर संयोगिता बैठी हुई थी। उसने सारे सवाल हल कर डाले थे। संयम के मन में नकल करने का विचार आया। उसने कक्षा में दृष्टि घुमाई और फिर संयोगिता की अभ्यास-पुस्तिका से नकल करके सवाल को हल कर डाला। उसे भ्रम था कि ऐसा करते हुए शायद उसे कक्षाध्यापिका नहीं देख रही थी क्योंकि वह तो कुर्सी पर चश्मा लगाए बैठी थी। पर, पास्तव में वह गलती पर था। कक्षाध्यापिका ने संयम को नकल करते हुए देख लिया था। वह चुप रही और अनदेखी कर गयीं।
परीक्षा समाप्त हो गयीं। सभी विद्यार्थियों ने अपनी-अपनी अभ्यास-पुस्तिका जमा करवा दी। उनके चेहरों पर खुशी के भाव थे। दूसरी ओर संयम पहले जैसा खुशहाल नजर नहीं आ रहा था। कक्षाध्यापिका ने अभ्यास-पुस्तिकाएं इकट्ठी करने के बाद विद्यार्थियों से कहा- ‘मैं पांच मिनट के लिए तुम्हें एक घटना सुनाना चाहती हूं। क्या तुम सुनने के लिए तैयार हो?’ इस पर कक्षा के समस्त विद्यार्थियों ने हामी भरी। कक्षाध्यापिका बोली- ‘हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को तो तुम सभी जानते हो न!’
‘हां, हमने उनके बारे में पढ़ा है।’ विद्यार्थी बोले। कक्षाध्यापिका पुनः बोलीं – ‘यह घटना उनके बचपन की है। एक बार इंस्पेक्टर महोदय उस स्कूल में मुआयना करने आए, जिसमें महात्मा गांधी पढ़ाई करते थे। उन्होंने विद्यार्थियों को एक सवाल बोला। सारे बच्चे हंसी-खुशी सवाल निकालने लगे। महात्मा गांधी को तो वह सवाल आता नहीं था, अतः चुपचाप बैठे रहे। कक्षा में उपस्थित अध्यापक महात्मा गांधी के पास आए और इशारे से उनको अन्य बच्चे से सवाल नकल करने को कहा। जानते हो महात्मा गांधी ने क्या किया?’
‘क्या, मैडम?’ सामूहिक स्वर उभरे।
कक्षाध्यापिका बोलीं- ‘गांधी जे ने ऐसा नहीं किया और अपने सिद्धान्त पर अडिग रहे। बाद में इंस्पेक्टर महोदय ने महात्मा गांधी की ईमानदारी की प्रशंसा की।’
विद्यार्थियों ने तालियां बजाईं। तभी अपराध-बोध से ग्रसित संयम अपनी जगह से उठा और कक्षाध्यापिका के पास आकर रूआंसे स्वर में बोला- ‘मुझे माफ कर दीजिए मैडम। मैंने एक सवाल संयोगिता की अभ्यास-पुस्तिका से नकल किया है। भविष्य में कभी ऐसा नहीं करू्रंगा और महात्मा गांधी के सिद्धान्तों पर ही चलूंगा।’
‘शाबास!’ कक्षाध्यापिका ने संयम की पीठ थपथपाई। वार्षिकोत्सव में पूरे विद्यालय के विद्यार्थियों के समक्ष संयम के इस प्रायश्चित के गुण की सराहना करते हुए उसे पुरस्कृत भी किया। वास्तव में महापुरुषों का जीवन अनुकरणीय होता है। उनके जीवन से कोई भी सबक ले सकता है, जैसे संयम को मिला सबक।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
