श्रीराम और पशु-पक्षी
shriram aur pashu pakshi

Shri Ram Katha: कहते हैं श्रीराम एक ऐसा पवित्र आश्रय है जिसमें पशु-पक्षी अथवा किसी भी योनि के प्राणी उसमें आश्रय पा जाते हंै।भारत के उत्तरी भाग में एक प्रसिद्ध मठ था जो कलिंजर के नाम से जाना जाता था, वहां श्री राम का राज्य था, रामचंद्र जी लक्ष्मण के साथ वार्ता कर रहे थे, एक द्वारपाल आकर बोला-‘महाराज एक कुत्ता आया है और मनुष्य की भाषा में कह रहा है वह आपसे न्याय मांगने आया है। श्रीराम ने उसे बुलवाया व पूछा कि क्या हुआ? उसने कहा- ‘प्र्रभू स्वार्थ-सिद्ध नामक एक ब्राह्मïण ने मेरे सिर पर प्रहार किया है उसे दंड दीजिए।

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ब्राह्मïण को बुलवाया गया वह बोला-‘हे राघव मैं भूखा था भोजन हेतु बैठा इससे पूर्व यह श्वान आकर बैठ गया, मेरे कहने पर भी न हटा, क्रोध में आकर मैंने इसे मारा, भगवान राम ने सभी सभासदों से ब्राह्मïणों के दंड की व्यवस्था पूछी, सभी ने कहा ‘ब्राह्मïण अपध्य होता है आप ही उचित दंड की व्यवस्था करा दें। कुत्ता इसी बीच बोला-‘भगवान आप इसे कलिंज का मठाधीश बना दें।
कुत्ते की बात सुनकर सभी को आश्चर्य हुआ भगवान तो समझ गये पर लोग शिक्षण हेतु सबके समक्ष कुत्ते से ही कारण पूछा कि एक भिक्षावृत्ति से मुक्ति दिलाकर इसे वह मठाधीश क्यों बनाना चाहता है?
कुत्ता बोला- ‘भगवान मैं भी पिछले जन्म में कलिंजर का मठाधीश था बड़े अच्छे-अच्छे पकवान मिलते, मैं पूजा अर्चना करता पर चढ़ावे की सामग्री में मैं व मेरा परिवार खाता इसी कारण मुझे श्वान की योनि मिली, जो व्यक्ति देव, बालक स्त्री तथा भिक्षुक के लिए अर्पित धन, खाद्य सामग्री का संकीर्ण स्वार्थ के साथ उपभोग करता है वह नरकगामी होता है।
हंस भी श्वेत है और गिद्ध भी परंतु दोनों अपने कर्मों के कारण जगत में स्थान पाते हंै पर गिद्धों में भी अच्छी प्रजातियां पायी जाती हैं।
पंख कटे जटायु को गोद में लेकर भगवान राम ने उसका अभिषेक आंसुओं से किया स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-‘तात्ï। तुम जानते थे रावण दुर्द्धर्ष और महाबलवान है फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया?
अपनी आंखों से मोती ढुलकाते हुए जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा- ‘प्रभू मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था जब अन्याय के प्रति प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती।
भगवान राम ने कहा- ‘तात् तुम धन्य हो। तुम्हारी जैसी संस्कारवान आत्माओं से संसार को कल्याण का मार्गदर्शन मिलेगा।
यह प्रसंग उस समय का है जब रामचन्द्र जी सीता की खोज में इधर-उधर भटक रहे थे ऐसे ही चलते हुए राम का पैर एक नन्हीं सी गिलहरी पर पड़ा, सीता को खोजते हुए राम के चरणों को धरती की अपेक्षा मखमल सी अनुभूति हुई, उन्होंने एक पल को अपना चरण टेके रखा और नीचे की ओर देखा गिलहरी को देखते ही भगवान विस्मय में पड़ गये उन्होंने स्नेह से गिलहरी को उठाकर हाथ फेरा और बोले ‘मेरा पांव तुझ पर पड़ा तुझे कितना दर्द हुआ होगा? गिलहरी ने कहा ‘प्रभू आपके चरणों के दर्शन कितने दुर्लभ हैं संत महात्मा इन चरणों की पूजा करते नहीं थकते ये मेरा सौभाग्य है मुझे इन चरणों की सेवा का एक पल मिला भगवान ने कहा ‘फिर भी दर्द तो हुआ ही होगा? तू चिल्लाई क्यों नहीं?
गिलहरी बोली ‘प्रभु कोई और मुझ पर पांव रखता तो मैं चीखती और आपको पुकारती भी। किंतु जब आप का ही पैर पड़ा तो मैं किसे पुकारती? श्री राम ने गिलहरी की पीठ पर बड़े प्यार से उंगलियां फेरीं गिलहरी इतनी नन्हीं थी कि तीन उंगलियां ही उसकी पीठ पर फिर सकी, कब रामायण में इसका वर्णन है, तीन धारियों वाली गिलहरियां दूसरे देशों में नहीं मिलती।
एक लोककथा आती है एक बहेलिया पहुंचे हुए संत से दीक्षा लेने पहुंचा संत का नियम था गुरुदक्षिणा में अहिंसा व्रत निभाने की प्रतिज्ञा कराते थे, बहेलिये का निर्वाह पक्षी पकड़ने पर ही चलता था वह उसके लिए तैयार न हुआ निराश लौटते देखकर संत ने उसे सरल उपाय सुझाया और क्रमश: धीरे-धीरे कदम बढ़ाने का मार्ग बताया। उन्होंने कहा तुम कम से कम एक पक्षी पर दया करने का व्रत निभाओ बहेलिया तैयार हुआ उसने सर्वप्रथम कौआ न मारने का व्रत लिया, बहेलिया अहिंसा तत्त्व पर विचार करता रहा, धीरे-धीरे अहिंसा की परिधि बढ़ती गयी कुछ दिन में वह पूर्ण अहिंसाधारी संत बन गया।
मनुष्य एक बहुत ही स्वार्थी जीव है अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर मनुष्य को बुरे से बुरा कर्म करने में देर नहीं लगती।

रुरु नाम का एक स्वर्णमृग था। वह मनुष्य की तरह बातचीत कर सकता था और करुण भाव उसकी सबसे बड़ी विशेषता थी, एक दिन उसने एक डूबते हुए आदमी को बचाया उस आदमी ने धन्यवाद देना चाहा, तो उसने कहा कि अगर सच में धन्यवाद देना चाहते हैं तो किसी को नहीं बताना कि तुम्हें किसी स्वर्णमृग ने बचाया है लोग जब मेरे बारे में जानेंगे तो निस्संदेह मेरा शिकार करना चाहेंगे। कालांतर में उस राज्य की रानी ने स्वप्न में रुरु के साक्षात दर्शन कर लिये, उसकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रानी को उसे पाने की लालसा हुई, राजा ने उसे ढूंढकर लाने के लिए कहा, राजा ने इसके लिए रुरु मृग लाने वाले को जागीर और विपुल धन देने की घोषणा कर दी।
घोषणा उस व्यक्ति ने भी सुनी जिसे रुरु ने बचाया था बिना एक क्षण गंवाए वह राजा के दरबार में पहुंचा और रुरु के बारे में सब कुछ बता दिया, सिपाहियों ने उसकी निशानदेही पर रुरु को ढूंढ निकाला। चारों तरफ से घिरे रुरु ने कहा राजन तुम मुझे मार डालो परंतु पहले तुम मुझे ये बताओ तुम्हें मेरा ठिकाना कैसे पता चला, राजा ने उस व्यक्ति की तरफ इशारा किया जिसकी जान रुरु ने बचायी थी। रुरु के मुख से तभी एक वाक्य हठात निकला कि बहती हुई लकड़ी को बचा लेना ठीक है जिसका कोई उपयोग नहीं पर मनुष्य को निकालना ठीक नहीं राजन ने जब इस का कारण पूछा तो रुरु ने उस व्यक्ति के डूबने और बचाये जाने की पूरी कहानी सुनाई, उसकी कहानी ने राजा की करुणा को जगा दिया और उस व्यक्ति की कृतहनता पर राजा को रोष आया, राजा ने जब उसे दंड देना चाहा तो मृग ने रोक दिया और अपने प्राण त्याग दिये।
श्रीमदभागवत में अवधूत की कथा है उनके चौबीस गुरुओं में एक चील भी थी और एक मधुमक्खी। एक जगह धीवर मछली पकड़ रहे थे एक चील झपटकर मछली ले गयी, ढेरों कौए उसके पीछे लग गये जब तक मछली छूटकर जमीन पर नहीं गिर पड़ी तब तक चील को कौओं ने चैन नहीं लेने दिया, चील शांति से बैठकर सोचने लगी कि सारे विवाद की जड़ मछली थी अब तो मेरे पास नहीं है तो निश्चिंत हूं।
अवधूत ने चील से शिक्षा ली कि जब तक मछली साथ रहेगी यानी वासना मन में रहेगी संस्कार भी लदते जायेंगे। वासना का तग होते ही कर्मों का क्षय होने लगता है उसने अपनी आचार्य मधुमक्खी से प्रेरणा ली कि मधु संचय हेतु श्रम करती है परंतु छत्ता कोई दूसरा आकर तोड़ ले जाता है अत: संचय नहीं करना चाहिए ईश्वर पर अवलंबित रहे।
मनुष्यों में कुछ प्रजातियां अगर बुरी हैं तो कुछ अच्छी भी, गुलिक नाम का एक व्याध पशु पक्षियों का शिकार करता और लोगों को लूटता भी उसके नाम का बड़ा आतंक था। गांव में एक मंदिर था, उसके पुजारी सत्यजीत अत्यन्त सदाचारी, धार्मिक, त्यागी व उदार थे। एक दिन गुलिक मंदिर में आ गया और उसने भगवान के आभूषणों को उतार देने के लिए कहा सत्यजीत के मना करने पर गुलिक ने मारने के लिए कटार निकाल ली, भयभीत होने की अपेक्षा सत्यजीत की आंखों में उसके लिए करुणा उमड़ पड़ी उनकी आंखें नम हो गईं जब गुलिक ने इसका कारण पूछा सत्यजीत बोले क्या तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन आदि जीवित हैं गुलिक के न कहने पर सत्यजीत बोले फिर ये पाप किसके लिए एकत्र कर रहे हो? जीवन की इस छोटी सी अवधि में श्रेष्ठï कर्मों की पूंजी जमाकर अपना इहलोक और परलोक दोनों ही क्यों नहीं संवार लेते। उनके वचनों को सुनकर गुलिक फूट-फूट कर रो पड़ा उसके जीवन की दिशा बदल गई।
पशु-पक्षियों के आचरण से मनुष्य बहुत कुछ सीख सकता है। महापुरुषों ने इसे स्वीकार भी किया है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे ‘साधक दो प्रकार के होते हैं एक बंदर के बच्चे जैसे, दूसरे बिल्ली के बच्चे जैसे परंतु बंदर का बच्चा केवल मां को पकड़े रहता है। इसी तरह कुछ साधक सोचते हैं, हमें इतना जप करना चाहिए इतनी देर तक तपस्या करनी चाहिए तब ईश्वर मिलेंगे पर बिल्ली का बच्चा खुद अपनी मां को नहीं पुकारता वह तो बस मीऊं-मीऊं कहकर मां को पुकारता है मां चाहे रख दे इसी तरह साधक हिसाब-किताब करके भजन नहीं करते वह तो व्याकुल होकर ईश्वर को पुकारते रहते हैं, ईश्वर किसी को रुदन करते हुए नहीं देख सकते अंतत: दर्शन दे देते हैं।
इसीलिए कहा गया है-
‘वृक्ष कबहु नहीं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर॥

मनुष्य एक बहुत ही स्वार्थी जीव है अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर मनुष्य को बुरे से बुरा कर्म करने में देर नहीं लगती। पशु-पक्षियों के आचरण से मनुष्य बहुत कुछ सीख सकता है। महापुरुषों ने इसे स्वीकार भी किया है।