एक बार मुल्ला नसरुद्दीन अपनी बहन से मिलने उसके गाँव जा रहा था। रास्ते में उसे डाकुओं ने घेर लिया। डकैत नसरुद्दीन और उसकी बुद्धिमत्ता से भली-भांति परिचित थे। उन्हें मालूम था कि उसके पास ज्यादा कुछ सामान नहीं है, फिर भी डाकुओं का सरदार उसकी बुद्धिमत्ता को परखना चाहता था।
उसने नसरुद्दीन को एक कद्दू देते हुए कहा कि तुम्हें इस कद्दू का सही वजन बताना है। यदि तुमने इसका गलत वजन बताया तो तुम्हारा सारा धन लूट लिया जाएगा और यदि तुमने इसका सही वजन बता दिया तो हम तुम्हें जाने देंगे। नसरुद्दीन ने एक पल भी गंवाए बिना उन्होंने कहा कि कद्दू का वजन सरदार के सिर के वजन के बराबर है।
उसके इस उत्तर की शुद्धता को जांचने के लिए सरदार को अपना सिर कटवाना पड़ता। इसलिए उसके पास नसरुद्दीन की बात को सही मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। उसने हंसकर न सिर्फ नसरुद्दीन को जाने की अनुमति प्रदान की, बल्कि उसे अपनी ओर से उपहार स्वरूप कुछ अतिरिक्त स्वर्णमुद्राएं भी प्रदान कीं।
सारः संकट के समय भी वुद्धि का इस्तेमाल बहुत कारगर सिद्ध होता है।
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