unmaad by munshi premchand
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मजहर- अजी कुछ न पूछो, पछाड़ें खा रही थी, मानो मैं उसका गला घोंट दूँगा। मेरी पालकी से निकलकर भागी जाती थी, पर मैंने जोर से पकड़कर अपनी बगल में बैठा लिया। तब मुझे दाँत काटने दौड़ी।

मिस जेनी ने जोर से कहकहा मारा और मारे हँसी के लोट गई। बोली- हारेबल! हारेबल! क्या अब भी दाँत काटती है?

मनहर- वह अब इस संसार में नहीं है, जेनी! मैं उससे खूब काम लेता था। मैं सोता था, तो वह मेरे बदन में चम्पी लगाती थी, मेरे सिर में तेल डालती थी, पंखा झलती थी।

जेनी- मुझे तो विश्वास नहीं आता। बिलकुल मूर्ख थी।

मनहर- कुछ न पूछो। दिन में किसी के सामने मुझसे बोलती भी न थीं, मगर मैं उसका पीछा करता रहता था।

जेनी- ओ नॉटी बवाय तुम बड़े शरीर हो। थी तो रूपवती?

मनहर- हाँ, उसका मुँह तुम्हारे तलवों-जैसा था।

जेनी- नानसेंस। तुम ऐसी औरत के पीछे कभी न दौड़ते।

मनहर- उस वक्त मैं भी मूर्ख था, जेनी।

जेनी- ऐसी मूर्ख लड़की से तुमने विवाह क्यों किया?

मनहर-विवाह न करता, तो माँ-बाप जहर खा लेते।

जेनी- वह तुम्हें प्यार कैसे करने लगी?

मजहर- और करती क्या? मेरे सिवा दूसरा था ही कौन? घर से बाहर न निकलने पाती थी, मगर प्यार हममें से किसी को न था। वह मेरी आत्मा और हृदय को संतुष्ट न कर सकती थी, जेनी मुझे उन दिनों की याद आती है, तो ऐसा मालूम होता है कि कोई भयंकर स्वप्न था। उफ़! अगर वह स्त्री आज जीवित होती, तो मैं किसी अँधेरे दफ्तर में बैठा कलम घिसता होता। इस देश में आकर मुझे यथार्थ ज्ञान का हुआ कि संसार में स्त्री का क्या स्थान है! उसका क्या दायित्व है! और जीवन उसके कारण कितना आनंदप्रद हो जाता है! और जिस दिन तुम्हारे दर्शन हुए, वह तो मेरी जिंदगी का सबसे मुबारक दिन था। याद है तुम्हें यह दिन? तुम्हारी वह सूरत मेरी आँखों में अब भी फिर रही है।

जेनी- अब मैं चली जाऊंगी। तुम मेरी खुशामद करने लगे।

मजदूर-दल के भारत-सचिव थे लॉर्ड बारबरा, और उनके प्राइवेट सेक्रेट्री थे मि. कावर्ड। लॉर्ड बारबरा भारत के सच्चे मित्र समझे जाते थे। जब कंजरवेटिव और लिबरल दलों का अधिकार था, तो लॉर्ड बारबरा भारत की बड़े जोरों से वकालत करते थे। वह मन्त्रियों पर ऐसे-ऐसे कटाक्ष करते थे कि उन बेचारों को कोई जवाब न सूझता। एक बार वह हिन्दुस्तान आये थे और यहाँ कांग्रेस में शरीक भी हुए थे। उस समय उनकी उदार वक्तृताओं ने समस्त देश में आशा और उत्साह की एक लहर दौड़ा दी, काँग्रेस के जलसे के बाद वह जिस शहर में गए, जनता ने उनके रास्ते में आँखें बिछायी, उनकी गाड़ियाँ खींची, उन पर फूल बरसाए। चारों ओर से यही आवाज आती थी- यह है भारत का उद्धार करने वाला। लोगों को विश्वास हो गया कि भारत के सौभाग्य से अगर कभी लॉर्ड बारबरा को अधिकार प्राप्त हुआ, तो वह दिन भारत के इतिहास में मुबारक होगा।

लेकिन अधिकार पाते ही लॉर्ड बारबरा में एक विचित्र परिवर्तन हो गया। उनके सारे सद्भाव, उनकी उदारता, न्यायपरायणता, सहानुभूति-ये सभी अधिकार के भँवर, में पड़ गए। और अब लॉर्ड बारबरा और उनके पूर्वाधिकारी के व्यवहार में लेशमात्र भी अन्तर न था। वह भी वही कर रहे थे, जो उनके पहले के लोग कर चुके थे। वही दमन था, वही जातिगत अभिमान, वही कट्टरता, वही संकीर्णता। देवता अधिकार के सिंहासन पर पाँव रखते ही अपना देवत्व खो बैठा था। अपने दो साल के अधिकार-काल में उन्होंने सैकड़ों ही अफसर नियुक्त किए थे, पर उनमें एक भी हिन्दुस्तानी न था। भारतवासी निराश होकर उन्हें ‘डाइहार्ड’, ‘धन का उपासक’ और ‘साम्राज्यवाद का पुजारी’ कहने लगे थे। यह खुला हुआ रहस्य था कि जो कुछ करते थे, मि. कावर्ड करते थे। हक यह था कि लॉर्ड बारबरा नीयत के इतने शेर थे, जितने दिल के कमजोर। हालांकि परिणाम दोनों दशाओं में एक- सा था।

यह मि. कावर्ड एक ही महापुरुष थे। उनकी उम्र चालीस से अधिक गुजर चुकी थी, पर अभी तक उन्होंने विवाह न किया था। शायद उनका खयाल था कि राजनीति के क्षेत्र में रहकर वैवाहिक जीवन का आनंद नहीं उठा सकते। वास्तव में वह नवीनता के मधुप थे। उन्हें नित्य नए विनोद और आकर्षण, नित्य नए विलास और उल्लास की टोह रहती थी। दूसरों के लगाए हुए बाग की सैर करके आप चित्त को प्रसन्न कर लेना, इससे कहीं सरल था कि अपना बाग आप लगाए और उसकी रक्षा और सजावट में अपना सिर खपाएं। उनकी व्यावहारिक और व्यापारिक दृष्टि से यह लटका उससे कहीं आसान था।

दोपहर का समय था। मि. कावर्ड नाश्ता करके सिगार पी रहे थे कि मिस जेनी रोज के आने की खबर हुई। उन्होंने तुरन्त आईने के सामने खड़े होकर अपनी सूरत देखी, बिखरे हुए बालों को सँवारा, बहुमूल्य इत्र मला और मुख से स्वागत की सहास छवि दर्शाते हुए कमरे से निकलकर मिस रोज से हाथ मिलाया। जेनी ने कमरे में कदम रखते ही कहा- अब मैं समझ गई कि क्यों कोई सुन्दरी तुम्हारी बात नहीं पूछती, आप अपने वादों को पूरा करना नहीं जानते। मि. कावर्ड ने जेनी के लिए एक कुर्सी खींचते हुए कहा- मुझे बहुत खेद है मिस रोज, कि मैं कल अपना वादा पूरा न कर सका। प्राइवेट सेक्रेट्रिरियों का जीवन कुत्तों के जीवन से भी हेय है। बार-बार चाहता था कि दफ्तर से उठूं पर एक-न-एक कॉल ऐसा आ जाता था कि फिर रुक जाना पड़ता था। मैं तुमसे क्षमा माँगता हूँ। बॉल में तुम्हें खूब आनंद आया होगा?

जेनी- तुम्हें तलाश करती रही। जब तुम न मिले, तो मेरा जी खराब हो गया। मैं और किसी के साथ नहीं नाची। अगर तुम्हें नहीं जाना था, तो मुझे निमन्त्रण- पत्र क्यों दिलाया था? कावर्ड ने जेनी को सिगार भेंट करते हुए कहा- तुम मुझे लज्जित कर रही हो, जेनी! मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की और क्या बात हो सकती थी कि तुम्हारे साथ नाचता हूँ। बस, यही समझ लो कि तड़प-तड़प कर रह जाता था।

जेनी ने कठोर मुस्कान के साथ कहा- तुम इसी योग्य हो कि बैचलर बने रहो। यह तुम्हारी सजा है।

कावर्ड ने अनुरक्त होकर उत्तर दिया- तुम बड़ी कठोर हो, जेनी! तुम्हीं क्या, रमणियाँ सभी कठोर होती हैं। मैं कितनी ही परवशता दिखाऊँ, तुम्हें विश्वास न आएगा। मुझे यह अरमान ही रह गया कि कोई सुन्दरी मेरे अनुराग और लगन का आदर करती।

जेनी- तुममें अनुराग हो भी तो? रमणियाँ ऐसे बहानेबाजों को मुँह नहीं लगाती।

कावर्ड-फिर बहानेबाज कहा। मजबूर क्यों नहीं कहतीं?

जेनी- मैं किसी मजबूरी को नहीं मानती। मेरे लिए यह हर्ष और गौरव की बात नहीं हो सकती कि आपको जब अपने सरकारी, अर्द्ध-सरकारी और सैर-सरकारी कामों से अवकाश मिले, तो आप मेरा मन रखने को एक क्षण के लिए अपने कोमल चरणों को कष्ट दें। मैं दफ्तर और काम के हीले नहीं सुनना चाहती। इसी कारण तुम अब तक झींक रहे हो।

कावर्ड ने गम्भीर भाव से कहा- तुम मेरे साथ अन्याय कर रही हो, जेनी। मेरे अविवाहित रहने का क्या कारण है, यह कल तक मुझे खुद न मालूम था। कल आप-ही-आप मालूम हो गया।

जेनी ने उसका परिहास करते हुए कहा- अच्छा! तो यह रहस्य आपको मालूम हो गया? तब तो आप सचमुच आत्मदर्शी हैं। जरा मैं भी सुनू क्या कारण था? कावर्ड ने उत्साह के साथ कहा- अब तक कोई ऐसी सुंदरी न मिली थी, जो मुझे उन्मत्त कर सकती।

जेनी ने कठोर परिहास के साथ कहा- मेरा खयाल था कि दुनिया में ऐसी औरत पैदा ही नहीं हुई, जो तुम्हें उन्मत्त कर सकती। तुम उन्मत्त बनाना चाहते हो, उन्मत्त बनना नहीं चाहते।

कावर्ड- तुम बड़ा अत्याचार करती हो, जेनी।

जेनी- अपने उन्माद का प्रमाण देना चाहते हो?

कावर्ड- हृदय से, जेनी! मैं उस अवसर की ताक में बैठा हूँ।

उसी दिन शाम को जेनी ने मनहर से कहा- तुम्हारे सौभाग्य पर बधाई? तुम्हें वह जगह मिल गयी।

मनहर उछलकर बोला- सच! सेक्रेट्री से कोई बातचीत हुई थी?

जेनी- सेक्रेट्री से कुछ कहने की जरूरत ही न पड़ी। सब कुछ कावर्ड के हाथ में है। मैंने उसी को चंग पर चढ़ाया। लगा मुझे इश्क जताने। पचास साल की तो उम्र है, चाँद के बाल झड़ गए हैं, गालों पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं पर अभी तक आपको इश्क का गब्त है। आप अपने को एक ही रसिक समझते हैं। उसके बूढ़े चोंचले बहुत बुरे मालूम होते थे, मगर तुम्हारे लिए सब कुछ सहना पड़ा। खैर, मेहनत सफल हो गई है। कल तुम्हें परवाना मिल जाएगा। अब सफर की तैयारी करनी चाहिए।

मनहर ने गदगद होकर कहा- तुमने मुझ पर बड़ा एहसान किया है, जेनी।