daamul ka kaidee by munshi premchand
daamul ka kaidee by munshi premchand

युवक ने फिर कहा- ‘वह मजदूरी घटाने पर तुले हुए हैं, चाहे कोई काम करे या न करे। इस मिल में इस साल दस लाख का फायदा हुआ है। वह हम लोगों ही की मेहनत का फल है लेकिन फिर भी हमारी मजदूरी काटी जा रही है। धनवानों का पेट कभी नहीं भरता। हम निर्बल हैं, निःसहाय हैं, हमारी कौन सुनेगा? व्यापार-मण्डल उनकी ओर है, सरकार उनकी ओर है, मिल के हिस्सेदार उनकी ओर हैं, हमारा कौन है? हमारा उद्धार तो भगवान् ही करेंगे।’

एक मजदूर बोला- ‘सेठजी तो भगवान के बड़े भगत हैं।’

युवक ने मुस्कराकर कहा- ‘हाँ बहुत बड़े भक्त हैं। यहाँ किसी ठाकुर द्वारे में उनके ठाकुर द्वारे की-सी सजावट नहीं है, कहीं ऐसी झाँकी नहीं बनती। उसी भक्ति का प्रताप है कि आज नगर में इनका इतना सम्मान है। औरों का माल पड़ा सड़ता है, इनका माल गोदाम में नहीं जाने पाता। वही भक्त-राज हमारी मजदूरी घटा रहे हैं। मिल में अगर घाटा हो, तो हम आधी मजदूरी पर काम करेंगे लेकिन जब लाखों का लाभ हो रहा है, तो किस नीति से हमारी मजदूरी घटायी जा रही है? हम अन्याय नहीं सह सकते। प्रण कर लो कि किसी बाहरी आदमी को मिल में घुसने न देंगे, चाहे वह अपने साथ फौज लेकर ही क्यों न आए। कुछ परवाह नहीं, हमारे ऊपर लाठियाँ बरसे, गोलियाँ चलें।

एक तरफ से आवाज आई- ‘सेठजी।’

सभी पीछे फिर-फिर कर सेठजी की तरफ देखने लगे। सभी के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। कितने ही तो डरकर कांस्टेबल से मिल के अन्दर जाने के लिए चिरौरी करने लगे, कुछ लोग रुई की गाँठों की आड़ में जा छिपे। थोड़े से आदमी कुछ सहमे हुए-पर जैसे जान हथेली पर लिए-युवक के साथ खड़े रहे।

सेठजी ने मोटर से उतरते हुए कांसटेबल को बुलाकर कहा- ‘इन आदमियों को मारकर बाहर निकाल दो, इसी दम।’

मजदूरों पर डण्डे पड़ने लगे। दस-पाँच तो गिर पड़े, बाकी अपनी-अपनी जान लेकर भागे। वह युवक दो आदमियों के साथ अभी तक डटा खड़ा रहा।

प्रभुता असहिष्णु होती है। सेठजी खुद आ जाएँ फिर भी ये लोग सामने खड़े रहें, यह तो खुला हुआ विद्रोह है। यह बेअदबी कौन सह सकता है? जरा इस लड़ाई को देखो। देह पर साबित कपड़े भी नहीं हैं, मगर जमा खड़ा है, मानो मैं कुछ हूँ ही नहीं। समझता होगा, यह मेरा कर ही क्या सकते हैं।

सेठजी ने रिवाल्वर निकाल लिया और समूह के निकट आकर उसे निकल जाने का हुक्म दिया, पर वह समूह अचल खड़ा था।

सेठजी उन्मत्त हो गए। यह हेकड़ी! तुरन्त हेड कांस्टेबल को बुलाकर हुक्म दिया- ‘इन आदमियों को गिरफ्तार कर लो।’ कांस्टेबल ने इन तीनों आदमियों को रस्सियों से जकड़ दिया और उन्हें फाटक की ओर ले चले। इनका गिरफ्तार होना था कि एक हजार आदमियों का दल ठेला मारकर मिल से निकल आया और कैदियों की तरफ लपका। कांस्टेबल ने देखा, बंदूक चलाने पर भी जान न बचेगी, तो मुलजिमों को छोड़ दिया और भाग खड़े हुए। सेठजी को ऐसा क्रोध आ रहा था कि इन सारे आदमियों को तोप से उड़ा दें। क्रोध में आत्मरक्षा की भी उन्हें परवाह न थी। कैदियों को सिपाही से छुड़ाकर वह जनसमूह सेठजी की ओर आ रहा था। सेठजी ने समझा-सब- के-सब मेरी जान लेने आ रहे हैं। अच्छा! वह लौंडा गोपी सभी के आगे है। यही यहाँ भी उनका नेता बना हुआ है। मेरे सामने कैसा भीगी बिल्ली बना हुआ था, पर यहाँ सबके आगे-आगे चल रहा है।

सेठजी अब भी समझौता कर सकते थे, पर यों दबकर विद्रोहियों से दान माँगना उन्हें असह्य था।

इतने में देखते हैं कि वह बढ़ता हुआ समूह बीच ही में रुक गया। युवक ने उन आदमियों से कुछ सलाह की और तब अकेला सेठजी की तरफ चला। सेठजी ने मन में कहा- शायद मुझसे प्राणदान की शर्त तय करने आ रहा है। सभी ने आपस में यही सलाह की है। जरा देखो, कितने निश्शंक भाव से चला आता है, जैसे कोई विजयी सेनापति हो। ये कांस्टेबल कैसे दुम दबाकर भाग खड़े हुए, लेकिन तुम्हें तो नहीं छोड़ता बच्चा, जो कुछ हो, देखा जाएगा, जब तक मेरे पास यह रिवाल्वर है, तुम मेरा क्या कर सकते हो। तुम्हारे सामने तो घुटना न टेकूंगा।

युवक समीप आ गया और कुछ बोलना ही चाहता था कि सेठजी ने रिवाल्वर निकालकर फायर कर दिया। युवक भूमि पर गिर पड़ा और हाथ-पाँव फेंकने लगा।

उसके गिरते ही मजदूरों में उत्तेजना फैल गई। अभी तक उनमें हिंसा-भाव न था। वे केवल सेठजी को यह दिखा देना चाहते थे कि तुम हमारी मजदूरी काटकर शान्त नहीं बैठ सकते, किन्तु हिंसा ने हिंसा को उद्दीप्त कर दिया। सेठजी ने देखा, प्राण संकट में है और समतल भूमि पर वह रिवाल्वर से भी देर तक प्राण-रक्षा नहीं कर सकते, पर भागने का कहीं स्थान न था। जब कुछ न सूझा, तो वह रुई की गाँठ पर चढ़ गए और रिवाल्वर दिखा-दिखाकर नीचे वालों को ऊपर चढ़ने से रोकने लगे। नीचे पाँच-छह सौ आदमियों का घेरा था। ऊपर सेठजी अकेले रिवाल्वर लिए खड़े थे। कहीं से कोई मदद नहीं आ रही है और प्रतिक्षण प्राणों की आशा क्षीण होती जा रही है। कांस्टेबल ने भी अफसरों को यहाँ की परिस्थिति नहीं बतलाई, नहीं तो क्या अब तक कोई न आता? केवल पाँच गोलियों से कब तक जान बचेगी? एक क्षण में ये सब समाप्त हो जाएँगी। भूल हुई, मुझे बंदूक और कारतूस लेकर आना चाहिए था। फिर देखता इनकी बहादुरी। एक-एक को भूनकर रख देता, मगर क्या जानता था कि यहाँ इतनी भयंकर परिस्थिति आ खड़ी होगी। नीचे के एक आदमी ने कहा- लगा दो गाँठों में आग। निकालो तो एक माचिस। रुई से धन कमाया है, रुई की चिता पर जले।

तुरन्त एक आदमी ने जेब से दियासलाई निकाली और आग लगाना ही चाहता था कि सहसा वही जख्मी युवक पीछे से आकर सामने खड़ा हो गया। उसके पाँव में पट्टी बँधी हुई थी, फिर भी रक्त बह रहा था। उसका मुख पीला पड़ गया था और उसके तनाव से मालूम होता था कि युवक को असह्य वेदना हो रही है। उसे देखते ही लोगों ने चारों तरफ से आकर घेर लिया। हिंसा के उन्माद में भी अपने नेता को जीता-जागता देखकर उनके हर्ष की सीमा न रही। जयघोष से आकाश गूंज उठा- ‘गोपीनाथ की जय’।

जख्मी गोपीनाथ ने हाथ उठाकर सबको शांत हो जाने का संकेत करके कहा- ‘भाइयों, मैं तुमसे एक शब्द कहने आया हूँ। कह नहीं सकता, बचूँगा या नहीं। सम्भव है, तुमसे यह मेरा अन्तिम निवेदन हो। तुम क्या करने जा रहे हो? दरिद्र में नारायण का निवास है, क्या इसे मिथ्या करना चाहते हो। धनी को अपने धन का मद हो सकता है। तुम्हें किस बात का अभिमान है? तुम्हारे झोपड़ों में क्रोध और अहंकार के लिए कहाँ स्थान है। मैं तुमसे हाथ जोड़कर कहता हूँ तुम लोग यहाँ से हट जाओ। अगर तुम्हें मुझसे कुछ स्नेह है, अगर मैंने तुम्हारी कुछ सेवा की है, तो अपने घर जाओ और सेठजी को घर जाने दो।

चारों तरफ से आपत्तिजनक आवाजें आने लगीं, लेकिन गोपीनाथ का विरोध करने का साहस किसी में न हुआ। धीरे-धीरे लोग वहाँ से हट गए। मैदान साफ हो गया, तो गोपीनाथ ने विनम्र भाव से सेठजी से कहा- ‘सरकार, अब आप चले जाएँ। मैं जानता हूँ आपने धोखे से मारा। मैं केवल यही कहने आपके पास जा रहा था, जो अब कह रहा हूँ। मेरा दुर्भाग्य था कि आपको भ्रम हुआ। ईश्वर की यही इच्छा थी।’

सेठजी को गोपीनाथ पर कुछ श्रद्धा होने लगी। नीचे उतरने में कुछ शंका अवश्य है पर ऊपर भी तो प्राण बचने की कोई आशा नहीं है। यह इधर-उधर सशंक नेत्रों से ताकते हुए उतरते हैं। जन-समूह कुल दस गज के अंतर पर खड़ा है। प्रत्येक मनुष्य की आँखों में विद्रोह और हिंसा भरी हुई है। कुछ लोग दबी जबान से-पर सेठजी को सुनाकर-अशिष्ट आलोचनाएँ कर रहे हैं, पर किसी में इतना साहस नहीं है कि उनके सामने आ सके। उस मरते हुए युवक के आदेश में इतनी शक्ति है।

सेठजी मोटर पर बैठकर चले ही थे कि गोपी जमीन पर गिर पड़ा।