चौधरी ने दीर्घ निःश्वास छोड़कर करुण स्वर में कहा – न जाने नारायण कब मौत देंगे। भाई की तीन लड़कियां ब्याही। कभी भूलकर भी उनके द्वार का मुंह नहीं देखा। परमात्मा ने अब तक तो टेक निबाही है, पर अब न जाने मिट्टी की क्या दुर्दशा होने वाली है।
झगडू साहू ‘लेखा जौ-जौ बख्शीश-सौ-सौ’ के सिद्धांत पर चलते थे। सूद की एक कौड़ी भी छोड़ना उनके लिए हराम था। यदि एक महीने का एक दिन भी लग जाता तो पूरे महीने का सूद वसूल कर लेते। परन्तु नवरात्र में नित्य दुर्गा पाठ करते थे। पितृ-पक्ष में रोज ब्राह्मणों को सीधा बांटते थे। बनियों की धर्म में बड़ी निष्ठा होती है। यदि कोई दीन ब्राह्मण लड़की ब्याहने के लिए उनके सामने हाथ पसारता तो वह खाली हाथ न लौटता, भीख मांगने वाले ब्राह्मणों को चाहे वह कितने ही संडे-मुसंडे हों, उनके दरवाजे पर फटकार नहीं सुननी पड़ती थी। उनके धर्म-शास्त्र में कन्या के गांव के कुएं का पानी पीने से प्यासों मर जाना अच्छा था। वह स्वयं इस सिद्धांत के भक्त थे और इस सिद्धांत के अन्य पक्षपाती उनके लिए महामान्य देवता थे। वे पिघल गए। मन में सोचा, मनुष्य तो कभी ओछे विचारों को मन में नहीं लाया।
निर्दय काल की लेकर से अधर्म मार्ग पर उतर आया है, तो उसके धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य-धर्म है। यह विचार मन में आते ही झगडू साहू गद्दी से मसनद के सहारे उठ बैठे और दृढ़ स्वर से कहा – वही परमात्मा जिसने अब तक तुम्हारी टेक निबाही है, अब भी निबाहेंगे। लड़की के गहने लड़की को दे दो। लड़की जैसी तुम्हारी है वैसी मेरी भी है। यह लो रुपये। आज काम चलाओ जब हाथ में रुपये आ जायें, दे देना।
चौधरी पर इस सहानुभूति का गहरा असर पड़ा। वह जोर-जोर से रोने लगा। उसे अपने भावों की धुन में कृष्ण भगवान की मोहिनी मूर्ति सामने विराजमान दिखाई दी। वही झगडू जो सारे गांव में बदनाम था, जिसकी उसने खुद कई बार हाकिमों से शिकायत की थी, आज साक्षात् देवता जान पड़ता था। रुंधे हुए कंठ से गदगद हो बोला –
झगड़ू, तुमने इस समय मेरी बात, मेरी लाज, मेरा धर्म कहां तक कहूं मेरा सब कुछ रख लिया। मेरी डूबती नाव पार लगा दी। कृष्ण मुरारी तुम्हारे इस उपकार का फल देंगे और मैं तो तुम्हारा गुण जब तक जीऊंगा, गाता रहूंगा।
