pravachanon ka saar
pravachanon ka saar

एक बहुत ज्ञानी संत थे। वह जब प्रवचन देते तो लोगों को लगता कि ज्ञान की गंगा बह रही है। बड़ी संख्या में लोग उनका प्रवचन सुनने आ और मंत्रमुग्ध होकर घंटों तक उन्हें सुनते रहते। लेकिन, वहाँ से जाने के बाद वे संत की कही सारी बातें भूल जाते। इस बात का एहसास संत को भी था।

एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और कहा कि मैं बोलते-बोलते थक चुका हूँ। अब समय आ गया है कि मैं मौनव्रत धारण करूं। इस पर शिष्यों ने उनसे कहा कि लोग उनकी कही सारी बातें भूल जाते हैं। क्यों न वे अपने अंतिम प्रवचन में कुछ ऐसा कहें जिसे लोग सरलता से अपने जीवन में उतार सकें। संत को बात जंच गई। शिष्यों ने पूरे क्षेत्र में यह समाचार प्रसारित ‘कर दिया कि संत महाराज अपना अंतिम प्रवचन देने जा रहे हैं, इसके बाद वे सदा के लिए मौनव्रत धारण कर लेंगे।

लोग निर्धारित समय पर उनका अंतिम प्रवचन सुनने चले आए। संत ने सबसे सिर्फ इतना कहा कि वर्षों के अध्ययन ने उन्हें यही सिखाया है कि सिर्फ दो बातें हमेशा याद रखो-ईश्वर और मृत्यु और दो बातें हमेशा भूलते जाओ-अपने परोपकार और दूसरों की बुराई। यह कहकर वह मौन हो गए।

सारः ज्ञानी व्यक्ति पूरे जीवन दर्शन को कुछ शब्दों में भी अभिव्यक्त कर सकते हैं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)