भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
कीर्ति अब बड़ी हो गई है। वह खुद नहीं कह रही, सब कह रहे थे। वह तो तब छोटी थी, जब नर्सरी में पढ़ती थी। मम्मी की उंगली पकड़ने के लिए उसे हाथ यों लंबा करना पड़ता था। कीर्ति की मम्मी बड़ी अजीब है, जब बदमाशी करो तो नहीं डाँटती। घुटनों के बल बैठकर, कंधे पर हाथ रखकर न जाने क्या-क्या समझाती है। पर जब मम्मी का मूड खराब होता है ना, तब खूब डाँटती है। कीर्ति को अपनी मम्मी बहुत अच्छी लगती है। तब और ज्यादा अच्छी लगती है जब वह स्कूल में कीर्ति को लेने जाती है। अक्सर जब वह फोन पर बातें करती है तो कीर्ति दौड़ कर मम्मी के घुटनों को गले लगा लेती है। एक दिन तो गिरते-गिरते बची थी।
वह जानती है कि एक दिन वह मम्मी जितनी लंबी हो जाएगी। बुआ नानी भी उस दिन कह रही थी, “किरण, यह तेरी बेटी है न, एक दिन बहुत बड़ी बनेगी। इसका नाम भी कीर्ति है, यह कोई बड़ा काम जरूर करेगी।”
मम्मी बोली, “यही आशीर्वाद रखना बुआ जी, पता नहीं मैं अच्छी माँ बन पाऊँगी या नहीं।” कीर्ति को कुछ समझ में नहीं आया। यह तीन अलग चीजें हैं, पर एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं क्या…? कीर्ति का बड़ा बनना, कोई बड़ा काम करना और मम्मी का अच्छी माँ बनना। पर उसके बालमन में कुछ चलने लगा। वह सोचने लगी- मम्मी तो बहुत अच्छी माँ है, पर सबसे अच्छी वह तब लगती है जब वह साड़ी पहनती है। वह जब जींस पहनती हैं ना, तब बहुत स्मार्ट लगती है, इंग्लिश की टीचर रीता मैम से भी ज्यादा स्मार्ट। जब अलमारी से साड़ी निकाल के पहनती है ना, और उसके गले मिलती है ना, इतनी अच्छी खुशबू आती है और मम्मी इतनी प्यारी लगती है कि गोद से उतरने का ही मन नहीं करता।
कीर्ति अच्छी बच्ची है, स्कूल में सभी कहते हैं। समय पर होमवर्क कर लेती है। बातें बस तभी करती है जब टीचर न हो। इतना सबकुछ करने के बाद प्रथम तो रोशन आता है, पर उसका घर ऊँचा तो नहीं है। वह कुछ ना कुछ शरारत करता रहता है और उसे खूब डाँट पड़ती है। कीर्ति को उदास देखकर नीला मैडम कहती है- प्रथम आने में क्या रखा है कीर्ति? तुम्हारा नाम कीर्ति है ना? तुम कुछ ऊँचा जरूर करोगी।
कीर्ति के मन में फिर वही सवाल- यह कुछ बड़ा करना क्या होता है और ऊँचा करना क्या होता है? “उफ!” वह क्या करे? क्या प्रथम आना इतनी बड़ी बात है? खैर, कीर्ति को उससे क्या लेना-देना? उसे तो कुछ बड़ा करना है या फिर ऊँचा करना है, जो रोशन ने नहीं किया।
आज तो छुट्टी है, मम्मी को तैयार होते देख कीर्ति ने पूछा, “मम्मी, आप कहीं जा रही हो?” “हाँ कीर्ति, तुम जल्दी से नाश्ता कर लो, कुछ जरूरी मीटिंग है इसलिए दफ्तर जाना ही है।” किरण जल्दी-जल्दी नाश्ता बनाते हुए आगे बोली- दोपहर का खाना पापा खिला देंगे। कीर्ति आँखें बड़ी कर बोली, “और मुझे बीच में भूख लगी तो?” “बेटा बिस्किट्स है। चिंता मत करो और पापा को परेशान मत करना।” कहते हुए एक लंबी सांस लेकर गाड़ी में बैठ गई।
12:30 बजे फोन आये कई सारे। 1:30 बजे अलार्म भी बजा, पर मीटिंग इतनी लंबी चली कि फोन साइलेंट पर ही रह गया। 2:00 बजे मीटिंग खत्म होते ही जब फोन निकाला तो देखा कि 12 मिस्ड कॉल है। उसमें से 6 कीर्ति के पापा परम की ओर दो पड़ोसी की। उसने फोन किया, पर फोन पर परम की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, किरण को और डर लग गया।
“किरण! फोन क्यों नहीं उठाती हो। कीर्ति नहीं मिल रही है,” परम ने कहा।
“बेकार की बात मत करो। कीर्ति नहीं मिल रही है, क्या मतलब है तुम्हारा? खेल रही होगी पड़ोस के आंगन में। बिटू की मम्मी से पूछा?” किरण ने घबराकर कहा। सबसे पूछ लिया है। वे सब यहीं हैं। तुम आ जाओ बस मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है,” परम का स्वर रुआँसा हो आया।
“हाँ, हाँ आती हूं। तुम चिंता मत करो,” किरण ने कह तो दिया परन्तु वह भी अन्दर से डरी हुई थी। घर पहुँचते ही किरण ने आवाज लगाईकीर्ति! कीर्ति बेटा! कहीं सो तो नहीं गई बच्ची?
घर में मिट्ट की माँ समेत तीन चार लोग और थे। सबकी तरफ एक नजर फेरते हुए परम से बोली- अच्छा बताओ, थोड़ी देर पहले कीर्ति क्या कर रही थी?
परम ने बताया- कीर्ति पौधों से बातें कर रही थी, जो वह हमेशा करती है।
“और तुम क्या कर रहे थे?”
“मैं फोन पर था। जरूरी काम था इसीलिए कीर्ति से कहा था कि तुम बाहर जाकर खेलो,” यह सुनकर किरण ने परम से कहा- तो बाहर जाकर के बुलाओ न।
घर के तीन-चार लोग एक साथ बोल पड़े- सब ने बुलाया पर कीर्ति का कोई पता नहीं चला।
“अब बहुत हो गया किरण, पुलिस को फोन करो,” परम परेशान होकर बोला।
“अभी रुको!” कहती हुई किरण खुद ही बाहर निकली और कीर्ति को पुकारते हुए इधर-उधर ढूंढने लगी।
पड़ोस के और किरण के घर के बीच में एक पानी की टंकी है। साल में एक बार उसकी सफाई होती है। उसके नीचे के घास-फूस वाली जगह को कोई साफ नहीं करता। घास के साथ कुछ जंगली फूल भी लगे थे। किरण आगे बढ़ी, कहीं कीर्ति झाड़ों के बीच में तो नहीं है। कुछ फूलों की पंखुड़ियाँ बिखरी थीं। जैसे किसी ने एक-एक पंखुड़ी निकाली हो। पर यह क्या? यह तो घर के पीले गुलाब की पंखुड़ी है। “यहीं कहीं थी”, किरण चिल्ला कर बोली। “देखो-देखो, ये गुलाब की पंखुड़ियाँ वही लाई होगी।
“कीर्ति! कीर्ति बेटा…!” किरण के साथ सब अपनी-अपनी जगह से चिल्लाने लगे।
तभी सभी को सुनाई दिया, “मैं यहाँ हूँ मम्मी।”
यह देखकर बिट्ट की मम्मी कहने लगी, “मेरा बेटा ऐसा करता तो समझ में आता, पर कीर्ति जैसी शांत लड़की कैसे चढ़ गई इतनी बड़ी टंकी के ऊपर कुछ हो जाता तो? परमेश्वर ने कीर्ति से पूछा, “बेटा हम इतनी देर से पुकार रहे थे, तुमने आवाज क्यों नहीं दी?
“टंकी के ऊपर ना पापा बहुत गद्देदार जगह है एलिस इन वंडरलैंड के मैदान की तरह। हवा भी चल रही थी। मुझे न नींद आ गई। अब भूख लगी तो नींद खुल गई।” परम को समझ में आ गया कीर्ति ऊपर जमे काई की बात कर रही थी। उसने पूछा- तुम वहाँ कैसे पहुँच गई? कीर्ति कुछ नहीं बोली। सिर झुकाए बैठी रही।
तभी किरण ने पूछा, “तुम तो बरामदे में खेल रही थी न?”
“मम्मी, मुझे डैजी चैन बनाने थे जैसे एलिस की सिस्टर बनाती है ना और वहाँ पानी की टंकी के नीचे ढेर सारे फूल खिले थे। मैं तो वही चुनने गई थी।”
“पर तुम तो कितनी समझदार हो। तुम ऊपर क्यों चढ़ी? लोहे की सीढ़ी से गिर भी सकती थी,” किरण की बात पर कीर्ति ने भोलेपन से कहाआप सभी तो कहते हैं कि मुझे कुछ बड़ा करना है तो यह टैंक ऊँचा भी है और बड़ा भी। मेरा नाम कीर्ति है ना? मैंने बड़ा काम किया।,” यह सुनकर सब हँसने लगे।
कीर्ति को समझ में नहीं आया इस बात पर इतनी जोर से हँसने की क्या बात है। सोचा- यह बड़े भी ना, कितने नासमझ होते हैं।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
