भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
सरिआपडा भारतीय राज्य ओडिशा में ढेंकानाल जिले का एक छोटा-सा गाँव है। बेटी कल्पना का जन्म 18 जुलाई को उनके पिता गुननिधि दास और मां शैलबाला के घर हुआ था।
माहेश्वरी, अपने पिता की कुलदेवी है। उनका मंदिर सरिआपडा में बांकामुंडी पहाड़ी पर है। पिताजी हमेशा पूजा करने के लिए पहाड़ी पर जाते थे। उस समय कल्पना की उम्र 12 साल थी। ज्यादातर समय कल्पना पिता जी के साथ उसी मंदिर को जाती थी। कल्पना की माँ परेशान हो जाती थी क्योंकि छोटी-सी बच्ची है और कितना ऊँचा पहाड़ है। कांटे, पत्थर और घुमावदार सड़कें। ऐसे में पहाड़ पर कैसे चढ़ पाएगी वो।
इससे पहले कि पिताजी कुछ कह पाते, कल्पना ने कहा- “आप इतने परेशान क्यों हैं?” क्या मैं इतनी छोटी हूं? मैं पहाड़ियों पर चढ़ने की आदी हो गई हूं। अब मैं बड़ी हो गई हूं। देखो, मेरे पैर देखो! मेरे पैर देखो! कितने शक्त हो गए हैं। कल्पना की बातें सुनकर पिताजी भी हंस पड़े।
माँ ने कहा, अच्छा! जरा ये बताओ कि तुम क्या करते हो वहां रोज-रोज जा के? कल्पना कहती है- “मैं फूल तोड़ के लाती हूँ। मंदिर के प्रांगण में झाडू लगा के साफ करती हूं। जब पिता जी पूजा करते हैं तो मैं देवी मां के सामने अपने हाथ जोड़ के ध्यान में बैठ जाती हूं।”
माँ ने फिर पूछा, “अच्छा देवी मां के ध्यान में बैठ के क्या बोलती है तू?”
मैं ये कहती हूं देवी मां से कि, यह छोटी पहाड़ी नहीं, मैं हिमालय पर चढ़ना चाहती हूं और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर पैर रखना भी चाहती हूं।
बेटी की बातें सुनकर मां आश्चर्य हो कर बैठ गई। इतनी छोटी-सी लड़की और वो एवरेस्ट पर चढ़ने की योजना बना रही है।
सच में कल्पना का यह विचार एक दिन सच हो जाएगा- कौन जानता था। एक कहावत है- यदि आप कुछ करने की ठान लेते हो मन में तो तरीके अपने-आप आ जाते हैं।
ढेंकानाल एक खूबसूरत पहाड़ी के बीच में है। इन सभी पहाड़ियों पर चढ़ना बहुत मुश्किल है। फिर भी वह इन सभी पहाड़ियों पर चढ़ जाती है। ढेंकनाल शहर से थोड़े ही दूर में, प्रसिद्ध महादेव बाबा चंद्रशेखरजी का मंदिर एक पहाड़ पर ही है, जिस का नाम कपिलस है। 1352 सीढ़ियां चढ़ने के बाद शीर्ष में बाबा कपिलेश्वर का अवस्थान है। अधिकांश दिन वह इस कपिलास पहाड़ी पर चढ़ के आती थी।
उन्होंने पहली बार पर्वतारोहण के लिए दार्जिलिंग के हिमालय पर्वत संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त किया। 2003 में, उन्होंने सतनाम पर्वत पर चढ़ाई की। उन्होंने पहली बार 2004 में 35 साल की उम्र में एवरेस्ट पर चढ़ाई की, लेकिन असफल रही। यह 2006 में भी विफल रही, लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति के सामने सब कुछ हार मान लेता है।
10 अप्रैल, 2008 को वो यात्रा शुरू की और 21 अप्रैल सुबह 11:45 बजे एवरेस्ट पहुंच कर विजयी बनी। उस दिन की खुशी और आनंद सिर्फ कल्पना ने ही महसूस की थी। वह ओड़िशा की पहली महिला एवरेस्ट पर्वतारोही थीं। इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़ के भी देखा नहीं। सिर्फ और सिर्फ सफलता की सीढ़ी चढ़ती गई वो।
अक्टूबर, 2016 में अफ्रीका में माउंट किलीमांझा, जनवरी, 2015 में दक्षिण अमेरिका में अकाम्बुआ पर्वत, जुलाई, 2015 में यूरोप में माउंट एल्बस और ऑस्ट्रेलिया में माउंट कोसिस्कुस्को।
अबला है पर कमजोर नहीं है। महिला सशक्तीकरण का संदेश लेकर कल्पना को फिर से एवरेस्ट जाने के लिए मन ने इच्छा जागी। वह एक अलग महिला थी। उन्होंने एक बार जो ठान लिया, उसे वो पूरा करने का संकल्प लेती थी।
ओडिशा के राज्यपाल डॉ. गणेशीलाल के द्वारा हस्ताक्षरित पांच साड़ियां ले के कल्पना अपनी मंजिल की ओर चल पड़ी। वह प्रत्येक बेस कैंप में साड़ी पहनेंगी।
ओडिशा के प्रभु श्री जगन्नाथ जी से कृपा भिक्षा के लिए पूरी जा के उनके दर्शन लाभ किए।
सभी के आशीर्वाद के साथ, वह 23 मई, 2016 को दोपहर 12 बजे फिर से एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची। साड़ी पहन के एवरेस्ट चढ़कर भारतीय महिलाओं के गौरव को बरकरार रखा। हालांकि, वह कभी नहीं लौटी। सेरपा की बाहों में हमेशा के लिए सो गई। चूंकि कल्पना शिव की पूजा करती थी, इसलिए उन्होंने हमेशा शिव के नाम का जाप किया। शायद इसीलिए भगवान शिव ने कल्पना को अपने साथ हिमालय में रखा।
वह आज मरने के बाद भी सभी के दिलों में अमर है। कुछ कर गुजरने का जो उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति थी, वो प्रेरणा बन के हमारे छोटे-छोटे बच्चों के मन में साहस भर दें। बस यही कामना है।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
