Hindi Kahaniya
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Hindi Kahaniya: गांव में पंचायत लगी थी ,सभी को पंचायत के फैसले का इंतजार था। पंचायत प्रमुख विष्णु पावनी के मुंह से सुनना चाहते थे कि उसके साथ क्या हुआ और किसने किया । लेकिन पावनी नीचे सिर झुकाए रो रही थी ,उसकी आंखों का झरना रुकने का नाम नहीं ले रहा था, उसके साथ साथ उसका पूरा परिवार बस न्याय की आस में खड़ा था। मां तुलसी तो जैसे जड़बत हो अपनी लाडो की हालत देख मुरझा ही गई थी।
पावनी का बापू बिरजू पेड़ से सटा बैठा बस शून्य में में ताक रहा था ।पावनी की भाभी रेखा और भाई आकाश पावनी को थामें हुए थे।
आखिर क्या कसूर था चौदह वर्ष की मासूम पावनी का,वो तो सिर्फ तितली बन अपने अरमानों के नन्हे पंखों संग इस रंग बिरंगी दुनिया में उड़ना चाहती थी, उसके हर रंग को जीना चाहती थी,पर इस बेरहम दुनिया ने उसके वो पंख ही नोंच डाले थे।
अभी पिछले हफ्ते की ही तो बात है जब पावनी की भाभी के भाई की शादी थी,पावनी भी शादी जाना चाहती थी, पर उसकी मां हमेशा कुछ ना कुछ बहाना बनाकर उसे मना कर देती, तुलसी अपनी बेटी पावनी को अपनी आंखों से कुछ पल के लिए भी ओझल नहीं होने देना चाहती थी,ये एक एक मां की फिक्र थी या एक औरत का दर्द जो वो खुद समझती थी।
पावनी ने बहुत जिद की तो तुलसी ने कहा नहीं री लाड़ो ,अभी भाभी को जाने दे, मैं और तू बाद में चलेंगे न‌ई नवेली बहू से मिलने,उसकी मुंह दिखाई करने। इस पर पावनी नाराज हो गई , कहने लगी बाद में क्या शादी वाली मौज मस्ती मिलेगी मां ,तुम भी ना मुझे कहीं जाने ही नहीं देती हो।
तब पावनी की भाभी रेखा ने कहा मां जी आप भेज दीजिए ,मैं तो हूं ही ,साथ में इसके भैया भी इसका ध्यान रखेंगे ,आप फ़िक्र ना करो। हालांकि तुलसी का मन अभी भी गवाही नहीं देता था, पावनी को भेजने के लिए पर सभी के इतना कहने पर उसने पावनी को जाने की अनुमति दे दी। साथ ही साथ पावनी से कहा देख लाड़ो ,अपनी भाभी के संग संग ही रहना, अकेली मत जाना कहीं भी, शादी ब्याह का घर है,अपना ध्यान रखना।
ये सुनते ही पावनी खुशी से झूम‌ उठी, अपनी मां के गले में हाथ डालते हुए कहा,ठीक है मेरी प्यारी मां अब जाऊं अपने लहंगा चुन्नी ,कपड़े लगाने। पावनी ने अपना लहंगा पहन कर मां को दिखाया तो तुलसी को बिल्कुल अपनी बेटी में अपनी परछाई नजर आई, पावनी भी गाने लगी,
मां तेरी बेटी आज बिल्कुल तुझ सी नजर आती है,
देखूं जो मैं आईना, तेरी परछाई नजर आती है।
कहकर पावनी हंसने लगी, तुलसी ने अपनी बेटी की बलैया ले ली,कहा बिल्कुल पगली है तू , एकबार फिर समझाया पावनी को कि लाड़ो ध्यान रखना अपना,जरा भी भाभी से अलग मत होना, पावनी ने हंसकर कहा, क्यूं मां इतनी चिंता करती है,अब मैं बड़ी हो गई हूं,तुम फिक्र मत करो।
तुलसी ने मन ही मन कहा इस बात की ही तो फिक्र है मेरी लाड़ो,सयानी होती बेटी पर इस दुनिया की नजर सबसे पहले जाती है।
बस फिर क्या था , अपनी मां से अनुमति मिलने पर पावनी भी खुशी-खुशी तैयार हो भाभी के संग ब्याह में आ गई। बरात में भी नाचती गाती किशोर उम्र की पावनी गुलाबी रंग के लहंगे में अलग ही सुंदर दिखाई दे रही थी। जैसे ही बरात जनमासे में पहुंची , रस्में होने लगीं, जयमाला के बाद फेरों की तैयारी होने लगी। तभी पावनी ने अपनी भाभी से कहा भाभी मैं अभी बाथरूम तक होकर आती हूं। भाभी ने भी कहा ठीक है,पर कुछ समय बाद पावनी की भाभी ने ध्यान करा कि पावनी उसके आसपास कहीं दिखाई नहीं दे रही है तो उसे चिंता हुई, उसने अपने पति से कहा। सबने इधर-उधर ढूंढा,पर पावनी ना मिली,दुल्हन की विदाई कराने का भी समय आ गया, पर पावनी का कहीं अता-पता नहीं था।

भोर होने को आई ,सब तरफ खोजा ,पर पावनी कहीं मिल ही नहीं रही थी। तभी पावनी को ढूंढते ढूंढते रास्ते में पावनी की गुलाबी चुन्नी खेतों की तरफ रेलवे ट्रैक के आसपास झाड़ियों में अटकी दिखाई दी, चुन्नी बुरी तरह फट चुकी थी, किसी अनहोनी की आशंका से सभी उस तरफ दौड़े पर अनहोनी हो चुकी थी, पावनी रेलवे ट्रैक के पास क्षत विक्षत अवस्था में पड़ी थी, उसके शरीर पर बेल्ट से पीटने के चोटों के निशान थे, उसके शरीर से खून रिस रहा था जिसे चूहे खा रहे थे।
सभी पर जैसे ब्रजपात सा हुआ, कुछ समय बाद पावनी के शरीर की चोटों का इलाज तो हो चुका था, लेकिन उसके मासूम दिल पर जो चोट लगी थी उसका इलाज कहीं नहीं था। हर दम चहकने वाली पावनी चहकना भूल चुकी थी,वो एकदम शांत हो चुकी थी। पावनी की मां उसे देखती तो लगता जैसे उसकी परछाई आज मर चुकी है, जैसे जिस्म के साथ साथ आत्मा तक तार तार हो चुकी है, उसकी हंसती मुस्कुराती बेटी की आत्मा भीतर तक छलनी हो चुकी थी,उसमें ना वो जीने की उमंग है ना कोई उत्साह।
बस हर समय शून्य में देखती रहती।

एक दिन मां ने पूछा पावनी क्या तू उसे पहचानती है, तब पावनी ने खामोशी से उसका जवाब हां में दिया। तब मां ने पूछा लाड़ो क्या तू उसे सजा दिलाना चाहती है,तब उसकी मासूम आंखों से आंसू झरने लगे,मां ने अपनी लाड़ो को कलेजे से लगा लिया।

आरोपी लड़का ऊंची जात का गांव के प्रधान का भतीजा था। पंचायत ने दोनों पक्षों में सुलह करानी चाही ,कहा प्रधान जी दो लाख रुपए देने को तैयार हैं इस मामले को निपटाने के लिए।
बता पावनी बेटा क्या कहती है, जैसा कहेगी वैसा ही होगा।

ये सुनकर पावनी पर बिजली सी टूट पड़ी, जो पावनी अभी तक शांत बैठी थी, वो अब दुर्गा बन चुकी थी, उसने गरजते हुए कहा मुझे न्याय चाहिए बस न्याय…

जिस तरह इस राक्षस ने मेरा भक्षण किया है, जो दर्द मैंने सहा है उसे भी वो दर्द मिले ,बस इतना ही चाहती हूं।सारा गांव पावनी को की ओर देख रहा था।

पावनी ने आकर कहा इसे ऐसी सजा मिले जिससे यह तो क्या कोई भी इसके जैसा करने से पहले सौ बार सोचे।
पावनी ने कहा इसे नंगा करके सारे गांव के सामने बेल्ट से तब तक पीटा जाए ,जब तक कि ये अधमरा ना हो जाए।
फिर इसके आधे शरीर को मिट्टी में दबा कर जब तक छोड़ दिया जाए, जब तक सांप बिच्छू के डंक से इसकी मृत्यु न हो जाए।

अब पंचायत में चारों तरफ सन्नाटा था, थी तो सिर्फ एक आवाज पावनी के मौन आसूंओं की।आज तुलसी को लगा कि उसकी परछाई आज फिर से खड़ी है ,जीने की कुछ इस बाकी है,वो अपनी लाड़ली को अपने कलेजे से लगा लेती है।