Mulla Nasruddin
Mulla Nasruddin

Mulla Nasruddin ki kahaniya: बाज़ार में खूब चहल-पहल थी। ख़रीदने-बेचने का यही ख़ास वक्त था । जैसे-जैसे सूरज आसमान पर चढ़ता जा रहा था, ख़रीदने, बेचने और अदला-बदली का व्यापार बढ़ता चला जा रहा था। गर्मी की वजह से लोग छप्परदार कतारों की घनी, महकती छाँव में जा रहे थे। चारों ओर साफ़े, खलअतें और रंगी हुई दाढ़ियाँ चमक रही थीं। पालिशदार ताँगा कौंधता सा लगता था और यह कौंध चमड़े के कालीनों पर पड़ सर्राफों के सोने के ज़ेवरों की दमक के सामने फीकी पड़ जाती थी।
नसरुद्दीन ने उसी कहवाख़ाने के सामने गधा रोका, जिसके बरामदे में खड़े होकर महीना भर पहले उसने बुखारा के निवासियों से अपील की थी कि वे नयाज को जाफ़र के जुल्मों से बचाएँ। इसी थोड़े से अरसे में उसने कहवाख़ाने के खुशमिजाज, सीधे और भरोसे के योग्य ईमानदार मालिक से दोस्ती कर ली थी।
मौका देखकर नसरुद्दीन ने पुकारा, ‘अली!’
कहवाख़ाने के मालिक ने चारों ओर नज़रें दौड़ाईं। वह चकरा गया था। उसे पुकारा था किसी मर्दानी आवाज़ ने लेकिन उसे दिखाई दे रही थी एक औरत ।’
अपना नकाब हटाए बिना मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, ‘मैं हूँ अली। अल्लाह के वास्ते इस तरह मत घूरो। क्या तुम जासूसों की मौजूदगी भूल गए ?’
अली ने चारों ओर बड़ी सावधानी से नज़रें दौड़ाईं और फिर उसे पिछवाड़े के एक कमरे में ले गया, जहाँ ईंधन और फालतू सामान भरा पड़ा था। बाज़ार का शोरगुल बहुत ही हल्का-हल्का सुनाई दे रहा था।
नसरुद्दीन ने कहा, ‘अली, मेरा गधा रख लो। इसे खिला-पिलाकर तैयार रखना, क्योंकि किसी भी पल मुझे इसकी ज़रूरत पड़ सकती है। मेरे बारे में किसी से जिक्र तक मत करना । ‘
‘लेकिन तुमने औरतों के कपड़े क्यों पहन रखे हैं?’ अली ने दरवाज़ा बंद करते हुए पूछा।

‘मैं महल में जा रहा हूँ। ‘
‘पागल हो गए हो क्या ? अपना सिर शेर के मुँह में देने जा रहे हो?’
‘यह तो करना ही होगा अली। तुम्हें जल्दी ही मालूम हो जाएगा कि ऐसा करना क्यों ज़रूरी है। मैं खुद ही ख़तरनाक मुहिम पर जा रहा हूँ। आओ, गले मिल लें। क्योंकि अगर मैं…।’

वे दोनों गले मिले। कहवाखाने के मालिक की आँखों से मचलकर आँसू ढलककर उसके गालों पर बहने लगे। उसने नसरुद्दीन को विदा कर दिया और अपनी लंबी साँसों को रोकते हुए अपने ग्राहकों की ओर चला गया।

पहरेदारों ने नसरुद्दीन को रोका तो वह औरतों की आवाज़ में कहने लगा, ‘मैं बहुत बुढ़िया हूँ, और गुलाब का इत्र लाई हूँ । मुझे हरम में जाने दो। माल बेचने के बाद मुनाफे में से तुम्हें भी हिस्सा दूँगी । ‘

भाग बुढ़िया, जा बाज़ार में जा। वहीं बेच अपना माल ।’ सिपाहियों ने उसे धता बताई।

अपने उद्देश्य में असफल हो जाने पर मुल्ला नसरुद्दीन बहुत ही दुखी और गंभीर हो उठा। उसके पास समय कम था, क्योंकि दोपहर के बाद सूरज ढलने लगा था। उसने महल के चारों ओर चक्कर लगाया। चीनी चूने से दीवार के पत्थर इतनी मजबूती से जमाए गए थे कि कहीं एक छेद तक दिखाई नहीं दिया। नालियों के मुँह पर लोहे की जालियाँ पड़ी थीं।
नसरुद्दीन ने अपने आपसे कहा, ‘मुझे महल में जाना ही है। अगर तकदीर से अमीर ने मेरी मंगेतर छीन ली है तो मेरी तकदीर में उसे वापस पाना क्यों नहीं? मेरी बात ज़रूर पूरी होगी । ‘
वह बाज़ार में लौट गया।
नसरुद्दीन की नज़र से कुछ भी चूकता नहीं था। उसके आँख, कान और दिमाग़ बेहद सधे हुए थे।

जहाँ जौहरियों और अत्तारों के टोले मिलते थे, वहाँ उसके कानों में जो आवाज़ पड़ी, उसे सुनकर वह चौंक पड़ा।

‘तुम कहती हो कि तुम्हारे शौहर ने तुम्हें प्यार करना छोड़ दिया है। वह तुम्हारे साथ सोता तक नहीं है। तुम्हारी इस मुसीबत का एक इलाज है। लेकिन इसके लिए मुझे नसरुद्दीन से मशवरा करना पड़ेगा। तुमने सुना होगा, वह यहीं है। पता लगाओ कहाँ है। फिर मुझे ख़बर दे देना। फिर हम दोनों मिलकर तुम्हारे शौहर को तुम्हारे पास ले आएँगे । ‘

नसरुद्दीन और निकट पहुँचा तो उसे दाग़ों से भरा चेहरा दिखाई दिया। चाँदी का एक सिक्का लिए
एक औरत उसके सामने खड़ी थी। ज्योतिषी बना जासूस नम्दे पर मनके फैलाए एक बहुत पुरानी किताब के पन्ने पलट रहा था। “लेकिन अगर तू नसरुद्दीन की तलाश करने में कामयाब न हुई तो तुझ पर लानत बरसेगी।
तेरा शौहर तुझे हमेशा के लिए छोड़ देगा।’

मुल्ला नसरुद्दीन ने सोच लिया कि इस ज्योतिषी को थोड़ा सा सबक देना बुरा न होगा। वह कमरे के सामने बैठ गया ।

‘दूसरों की तकदीर देखने वाले अक्लमंद, मुझे मेरी किस्मत के बारे में बताओ। ‘

ज्योतिषी ने मनके बिखेर दिए। फिर इस तरह बोला जैसे भयभीत हो उठा हो, ‘ऐ हय, तुझ पर खुदा की मार है और मौत अपना काला पंजा तेरे सिर पर उठा चुकी है। ‘

आसपास खड़े कई तमाशबीन पास आ गए।

मौत का वार बचाने में मैं तेरी मदद कर सकता हूँ लेकिन यह काम अकेले नहीं हो सकता। मुझे नसरुद्दीन से मशवरा करना होगा। अगर तू उसे खोजकर मुझे बता सके तो तेरी जान बच जाएगी। ‘

‘अच्छी बात है, मैं नसरुद्दीन को तुम्हारे पास ले आऊँगी । ‘
‘कहाँ?’
‘यहीं, एकदम पास। ‘

‘लेकिन कहाँ, मैं तो उसे देख नहीं पा रहा हूँ। ‘

‘तुम अपने आपको ज्योतिषी कहते हो? क्या तुम हिसाब नहीं लगा सकते ? सोच नहीं सकते? लो यह रहा नसरुद्दीन। और फिर उसने झटके से नकाब हटा दिया। नसरुद्दीन का चेहरा देखते ही ज्योतिषी घबराकर पीछे हट गया।
नसरुद्दीन ने फिर दोहराया, ‘यह रहा वह। बोल, मुझसे किस बारे में मशवरा करना चाहता था? तू झूठा है। तू ज्योतिषी नहीं, अमीर के जासूसों में से एक है। ऐ मुसलमानो, इसका यक़ीन मत करो। यह आदमी तुम्हें धोखा दे रहा है। यहाँ बैठकर यह सिर्फ़ नसरुद्दीन का पता लगाने की कोशिश कर रहा है। ‘
जासूस ने इधर-उधर नज़रें दौड़ाई। लेकिन दूर तक कोई सिपाही दिखाई नहीं दिया। निराशा से रुआँसा होकर वह नसरुद्दीन को जाते देखता रहा। उसके आसपास खड़ी भीड़ क्रोध से भर उठी और पास सिमट आई। चारों ओर से आवाज़ें उठने लगीं, ‘जासूस-जासूस ! अमीर का जासूस ! गंदा कुत्ता ! ‘

जासूस उठा और अपना नमदा समेटने लगा। उसके हाथ काँप रहे थे। फिर वह जितनी तेज़ी से दौड़ सकता था, दौड़ता हुआ महल की ओर भाग गया।

ये कहानी ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Mullah Nasruddin(मुल्ला नसरुद्दीन)