Mulla Nasruddin ki kahaniya: सुबह की अपेक्षा इस समय बाज़ार में भीड़ कम थी। दोपहर होने वाली थी। गर्मी से बचने और नफा-नुकसान का हिसाब लगाने लोग कहवाख़ानों की ओर जा रहे थे।
कोड़ों और बदन के बेढंगेपन को दिखाते हुए भिखमंगों ने आवाज़ लगाई, ‘ ओ नेक आदमी, अल्लाह के नाम पर हमें भी कुछ मिल जाए । ‘
नसरुद्दीन चिढ़कर बोला, ‘अलग हटाओ अपने हाथ। मैं भी उतना ही ग़रीब हूँ, जितने तुम। मैं खुद किसी ऐसे आदमी की तलाश में हूँ, जो मुझे चार सौ तंके दे सके। ‘
भिखमंगे यह समझकर कि नसरुद्दीन उन्हें ताने दे रहा है, उन्होंने उस पर गालियों की बौछार शुरू कर दी।
नसरुद्दीन उनकी गालियों को अनसुना करके एक ऐसे कहवाखाने में चला गया, जहाँ रेशमी गद्दे और कालीन नहीं थे। गधे को खूँटे से बाँधने के बजाय वह उसे सीढ़ियों पर चढ़कर ले गया।
लोगों ने बड़े आश्चर्य और ख़ामोशी से उसका स्वागत किया। नसरुद्दीन ने ज़ीन से बँधे थैले में से कुरान निकाली और गधे के सामने रख दी। कहवाख़ाने के लोग एक-दूसरे को ताकने लगे। गधे ने लकड़ी के फ़र्श पर ज़ोर से खुर पटका।
‘अच्छा? इतनी जल्दी ?’ नसरुद्दीन ने पन्ना पलटते तो तारीफ़ हुए कहा, ‘तू के काबिल तरक्की कर रहा है।’
कहवाख़ाने का मसखरा तुदियल मालिक वहाँ आ गया। बोला, ‘सुन भले आदमी, क्या यह गधा लाने की जगह है? और यह पाक किताब तुमने इसके सामने क्यों रखी है?’
‘मैं इस गधे को धर्म – कर्म सिखा रहा हूँ।’ नसरुद्दीन ने बड़े इत्मीनान से कहा, ‘हम कुरान ख़त्म कर रहे हैं। बहुत जल्दी शरीयत पढ़ना शुरू कर देंगे । ‘
कहवाख़ाने में फुसफुसाहट होने लगी। लोग तमाशा देखने के लिए इकट्ठे हो गए। कहवाख़ाने के मालिक की आँखें फटी रह गईं। मुँह खुला रह गया। अपनी ज़िंदगी में ऐसी आश्चर्यजनक बात उसने कभी नहीं देखी-सुनी थी।
तभी गधे ने फिर खुर पटका।
पन्ना पलटते हुए नसरुद्दीन ने कहा, ‘अच्छा! ठीक है। बिल्कुल ठीक है। बस ज़रा सी कसर रह गई है बेटे । फिर तू मदरसे में उस्ताद बनने के काबिल हो जाएगा। बस, यह किताब के पन्ने अपने आप नहीं पलट सकता। किसी को इसकी मदद करनी पड़ती है । अल्लाह ने इसे बहुत जहीन बनाया है। बड़ी अच्छी याददाश्त है इसकी। बस, इसे उँगलियाँ देना भूल गया । ‘
लोग कहवे के प्याले छोड़कर पास आ गए। थोड़ी सी देर में काफ़ी भीड़ इकट्ठी हो गई।
नसरुद्दीन समझाने लगा, ‘यह कोई मामूली गधा नहीं है। अमीर का गधा है। एक दिन अमीर ने मुझे बुलाकर कहा, ‘क्या तुम मेरे गधे को धर्म-कर्म सिखा सकते हो, ताकि यह भी उतना ही सीख जाए, जितना मैं जानता हूँ।’ मैंने गधे को देखकर कहा, ‘महान अमीर, यह गधा उतना ही बुद्धिमान है, जितने आप हैं, या आपके वज़ीर लेकिन इसे दीनियात सिखाने में बीस बरस लगेंगे। अमीर ने ख़ज़ाने से सोने के पाँच हज़ार तंके मुझे दिलवाकर कहा, ‘गधे को ले जाओ और पढ़ाओ । अगर यह बीस साल के बाद दीनियात न सीख पाया और इसे कुरान जबानी याद ‘न हुई तो मैं तुम्हारा सिर कटवा दूँगा । ‘
कहवाख़ाने के मालिक ने कहा, ‘तो तुम अपने सिर को अलविदा कह लो । गधे को दीनियात और कुरान पढ़ते क्या किसी ने देखा-सुना है?’
‘बुखारा में ऐसे गधों की कमी नहीं है। मुझे सोने के पाँच हज़ार तंके चाहिए और ऐसे अच्छे गधे रोज़-रोज़ तो मिलते नहीं। मेरे सिर के कटने की फ़िक्र मत करो दोस्त। क्योंकि बीस सालों में हम में से एक न एक ज़रूर मर जाएगा। या तो मैं, या अमीर का यह गधा । और तब यह पता लगाने में बहुत देर हो चुकी होगी कि दीनियात जाननेवाला सबसे बड़ा विद्वान कौन है। ‘
कहवाख़ाना ज़ोरदार कहकहों से गूंज उठा। मालिक नमदे पर गिर गया। हँसते-हँसते उसके पेट में बल पड़ गए। चेहरा आँसुओं से भीग गया। वह बहुत ही हँसोड़ और खुशमिजाज था। हँसते हुए बोला, ‘सुना तुमने, हा-हा तब तक यह जानने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी कि इससे बड़ा आलिम (विद्वान) कौन है – हा-हा-हा । ‘ अचानक उसे कुछ याद आ गया। उसने कहा, ‘ठहरो, ठहरो, तुम हो कौन?
कहाँ से आए हो? तुम कहीं नसरुद्दीन तो नहीं हो?’
‘यह क्या कोई कहने की बात है। मैं नसरुद्दीन ही हूँ। बुखारा शहर के निवासियो, आपको सलाम । ‘
काफ़ी देर तक लोग ख़ामोश रहे। फिर किसी ने खुशी भरी आवाज़ में कहा, ‘नसरुद्दीन?’
फिर एक-एक करके और लोग भी चिल्ला उठे, ‘नसरुद्दीन – नसरुद्दीन।’ उनकी आवाज़ दूसरे कहवाख़ानों तक पहुँचीं और फिर सारे बाज़ार में फैल गई। शोर मच गया, ‘नसरुद्दीन – नसरुद्दीन ! ‘
‘नसरुद्दीन-नसरुद्दीन
और लोग दौड़ दौड़कर आने लगे, नसरुद्दीन का स्वागत करने लगे । किसी ने एक बोरा जई, एक गट्ठर तिपतिया घास और एक बाल्टी पानी लाकर गधे के सामने रख दिया।
‘तुम खूब आए नसरुद्दीन ! कहाँ भटकते रहे थे अब तक ?’
नसरुद्दीन ने झुक-झुककर भीड़ को सलाम करते हुए कहा, ‘मैं दस बरस तक आप लोगों से दूर रहा। आज आपसे मिलकर मेरा दिल खुशी से नाच रहा है। ‘
उसने मिट्टी का एक बर्तन उठा लिया और गाने लगा । उसने गा-गाकर अमीर के अन्याय और सूदखोर जाफ़र के अत्याचारों की कहानियाँ सुना डालीं।
नयाज कुम्हार की कहानी सुनाने के बाद उसने कहा, ‘सूदखोर और उसके जुल्म से बचाने के लिए हमें नयाज कुम्हार की मदद करनी चाहिए। आप सब उसे अच्छी तरह जानते हैं। कुछ दिनों के लिए क्या कोई मुझे चार सौ तके दे सकता है ?
‘ एक भिश्ती नंगे पैर आगे बढ़ा, ‘नसरुद्दीन, हमारे पास तंके कहाँ? हमें भारी टैक्स अदा करने पड़ते हैं। लेकिन मेरे पास यह पटका है। लगभग नया ही है। शायद इससे तुम्हें कुछ मिल जाए । ‘
उसने अपना पटका नसरुद्दीन के क़दमों में डाल दिया। भीड़ में कानाफूसी होने लगी। कुल्हाड़ी, जूतियाँ, पटके, रूमाल, लबादे उड़ उड़कर उसके क़दमों में आने लगे। कहवाख़ाने का मौजी मालिक सबसे बढ़िया कहवादानियाँ और ताँबे की तश्तरियाँ ले आया। भेंट में दी गई चीज़ों का ढेर बढ़ता चला गया।
‘बस, बहुत काफ़ी है।’ नसरुद्दीन चीख़कर बोला, ‘अब मैं नीलामी शुरू करता हूँ। यह रहा भिश्ती का पटका, जो इसे ख़रीदेगा उसे कभी प्यास नहीं सताएगी। मैं इसे सस्ते ही बेच रहा हूँ । ये रहे कुछ मरम्मत किए हुए पुराने जूते । ये ज़रूर दो बार मक्का हो जाए हैं। जो उन्हें पहनेगा उसे लगेगा कि वह जियारत कर रहा है। ये हैं चाकू और लबादे, सस्ते में ही बेच रहा हूँ। वक्त बहुत कीमती है। जल्दी करो । ‘
लेकिन वज़ीरे-आजम बख्तियार ने बड़ी मेहनत से ऐसा इंतजाम कर दिया था कि
बुखारा में रहनेवालों की जेब में ताँबे तक का फूटा सिक्का नहीं बचता था । फौरन अमीर के ख़ज़ाने में पहुँच जाता था।
