Manto Story in Hindi: भोलू और गामा दो भाई थे। बेहद मेहनती। भोलू बर्तनों पर कलई करने का काम करता था। सुबह धौंकनी सिर पर रख कर निकलता और दिन भर शहर की गलियों में भांडे कलाई करा लो की आवाजें लगाता रहा था। शाम को घर लौटता तो उसकी तहमद की अंटी में तीन-चार रुपए होते।
गामा खोमचा लगाता था। उसको भी दिन भर छाबड़ी सिर पर उठाए घूमना पड़ता था। तीन-चार रुपए वह भी कमा लेता था, लेकिन उसे शराब की लत थी। सबको मालूम था कि वह पीता है और इसी के सहारे जीता है।
भोलू ने अपने से दो साल बड़े भाई गामा को बहुत समझाया कि देख, यह शराब की लत बहुत बुरी है। शादीशुदा हो, बचाकर रखो तो भाभी ठाठ से रहा करे, नंगी-बुच्ची अच्छी लगती है तुम्हें अपनी घरवाली?
गामा इस कान से सुनता उस कान उड़ा देता। भोलू भी जब थक-हार गया, तो कहना-सुनना ही छोड़ दिया।
दोनों शरणार्थी थे। एक बड़ी बिल्डिंग के साथ सर्वेंट क्वार्टर थे। इन पर जहां औरों ने कब्जा जमा रखा था, वहां इन दोनों भाइयों ने भी दूसरी मंजिल पर एक क्वार्टर अपने रहने के लिए कब्जा लिया था।
सर्दियां आराम से गुजर गई। गर्मियां आईं तो गामा को बहुत तकलीफ हुई। भोलू तो ऊपर कोठे पर खाट बिछा कर सो जाता, पर गामा क्या करता? बीबी थी और ऊपर पर्दे का कोई बंदोबस्त ही न था। एक गामा ही को यह तकलीफ न थी, उन क्वार्टरों में जो भी शादीशुदा था, इसी मुसीबत में फंसा था।
कल्लन को एक बात सूझी। उसने कोठे पर कोने में अपनी और अपनी बीवी की चारपाई के इर्द-गिर्द टाट तान दिया। इस तरह पर्दे का इंतजाम हो गया। कल्लन की देखा-देखी दूसरों ने भी इस तरकीब से काम लिया। भोलू ने भाई की मदद की और कुछ ही दिनों में बांस वगैरह गाड़ कर, टाट और कंबल जोड़ कर पर्दे का इंतजाम कर दिया। यों हवा तो रुक जाती थी, पर नीचे क्वार्टर के दोजख से हर हालत में यह जगह बेहतर थी। ऊपर कोठे पर सोने से भोलू की तबीयत में एक अजीब क्रांति आ गई। वह शादी-ब्याह का बिल्कुल कायल नहीं था। उसने दिल में निश्चय कर रखा था कि वह यह जंजाल कभी नहीं पालेगा। जब कभी गामा उसके ब्याह की बात छेड़ता तो वह कहा करता, ‘न भाई, मैं अपने निरोए पिंडे पर जोंकें नहीं लगवाना चाहता।’ लेकिन जब गर्मियां आई और उसने ऊपर खाट बिछा कर सोना शुरू किया तो दस-पंद्रह दिन ही में उसके विचार बदल गए।
एक शाम को दीने के भटियारखाने में उसने अपने भाई से कहा, ‘मेरी शादी कर दो, नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगा।’
गामा ने जब यह सुना तो उसने कहा, ‘यह क्या मजाक सूझा है तुम्हें?’
भोलू बहुत गंभीर हो गया, ‘तुम्हें मालूम नहीं, पंद्रह रातें हो गई हैं मुझे जागते हुए।’
गामा ने पूछा, ‘क्यों, क्या हुआ?’
‘कुछ नहीं.. दाएं-बाएं जिधर नजर डालो, कुछ न कुछ हो रहा होता है … अजीब-अजीब आवाजें आती हैं। नींद क्या आएगी, खाक!’ गामा जोर से अपनी घनी मूछों में हंसा।
भोलू शरमा गया। फिर बोला, ‘यह जो कल्लन है, उसने तो हद ही कर दी है …. साला रात भर बकवास करता रहा है …. उसकी बीवी साली की जबान भी ताल से नहीं लगी … बच्चे पड़े सो रहे हैं, मगर वह …..’ गामा हमेशा की तरह नशे में था।
भोलू चला गया तो उसने दीने के भटियारखाने में अपने सब यार-दोस्तों को चहकते हुए बताया कि उसके भाई को आजकल नींद नहीं आती। इसकी वजह जब उसने अपने खास अंदाज में बयान की तो सुनने वालों के पेट में हंसते-हंसते बल पड़ गए।
जब वे लोग भोलू से मिले तो उन्हें उसका खूब मजाक उड़ाया। कोई उससे पूछता, ‘हां भई, कल्लन अपनी बांकी से क्या बातें करता है? कोई कहता, ‘मियां, मुफ्त में मजे लेते हो …. सारी रात फिल्में देखते रहते हो … सौ फीसदी बोलने और गाने वाली।’ कुछ ने उससे गंदे-गंदे मजाक किए। भोलू चिढ़ गया।
दूसरे दिन उसने गामा को उस वक्त पकड़ा, जब गामा नशे में नहीं था। उसने गामा से कहा, ‘तुमने मेरा मजाक बना दिया है …. देखो, जो कुछ मैंने तुमसे कहा है, झूठ नहीं है। मैं इंसान हूं। खुदा की कसम, मुझे नींद नहीं आती। आज बीस दिन हो गए हैं मुझे जागते हुए … तुम मेरी शादी का बंदोबस्त कर दो, वरना कसम पाक की, मेरा खाना खराब हो जाएगा। भाभी के पास मेरा पांच सौ रुपया जमा है…. जल्दी कर दो बंदोबस्त।’
गामा ने मूंछ मरोड़ कर पहले कुछ सोचा, फिर कहा, ‘अच्छा, हो जाएगा बंदोबस्त! तुम्हारी भाभी से आज ही बात करता हूं कि वह अपनी मिलने वालियों से पूछे।’
डेढ़ महीने के अंदर बात पक्की हो गई। समद कलईगर की लड़की आयशा गामा की बीबी को बहुत पसंद आई। खूबसूरत थी, घर का कामकाज जानती थी। वैसे समद भी शरीफ था। मुहल्ले वाले उसकी इज्जत करते थे। भोलू मेहनती था, तंदुरुस्त था। जून के मध्य में ही शादी की तारीख निश्चित हो गई। समद ने बहुत कहा कि वह इन गर्मियों में लड़की नहीं ब्याहेगा, पर गामा ने जब बहुत जोर दिया तब वह मान गया।
शादी से चार दिन पहले भोलू ने अपनी दुल्हन के लिए ऊपर कोठे पर टाट के पर्दे का बंदोबस्त किया। बांस बड़ी मजबूती से फर्श पर गाड़ा। टाट खूब कस कर लगाया। चारपाइयों पर नए खेस बिछाए। नई सुराही मुंडेर पर रखी। शीशे का गिलास बाजार से खरीदा। सब काम उसने बड़े शौक से किए।
रात को जब वह टाट के पर्दे में घिर कर सोया तो उसको अजबी सा लगा। वह खुली हवा में सोने का आदी था, मगर अब उसको आदत डालनी थी। यह वजह थी कि शादी से चार दिन पहले ही उसने यों सोना शुरू कर दिया।
पहली रात जब वह लेटा और उसने अपनी बीवी के बारे में सोचा तो वह पसीने में तर-बतर हो गया। उसके कानों में वे आवाजें गूंजने लगीं, जो उसे सोने नहीं देती थीं और उसके दिमाग में परेशान ख्याल दौड़ाती थीं।
‘क्या हम भी ऐसी ही आवाजें पैदा करेंगे? …. क्या आसपास के लोग हमारी आवाजें भी सुनेंगे? …. क्या वे भी इसी तरह रातें जाग-जाग कर काटेंगे? किसी ने अगर झांक कर देख लिया तो क्या होगा?’
भोलू पहले से भी ज्यादा परेशान हो गया। हर वक्त उसको यही बात सताती रहती थी कि टाट का पर्दा भी कोई पर्दा है। फिर चारों तरफ लोग बिखरे पड़े हैं। रात की खामोशी में हल्की-सी सरगर्मी भी दूसरे कोनों तक पहुंच जाती थी। लोग कैसे यह नंगी जिंदगी बसर करते हैं? …. एक कोठा है, इस चारपाई पर बीवी लेटी है, उस चारपाई पर शौहर पड़ा है। सैकड़ों आंखें, सैकड़ों कान आसपास खुले हैं। नजर न आने पर भी आदमी सब कुछ देख लेता है। हल्की-सी आहट पूरी तस्वीर बन कर सामने आ जाती है …. यह टाट का पर्दा क्या है? सूरज निकलता है तो उसकी रोशनी सारी चीजें बेनकाब कर देती है। वह सामने कल्लन अपनी बीवी की छातियां दबा रहा है। वह कोने में उसका अपना भाई गामा लेटा है। तहमद खुल कर एक ओर पड़ा है। इधर ईदू हलवाई की कुंवारी बेटी शादां का पेट छिदरे टाट से झांक-झांक कर देख रहा है।
शादी का दिन आया तो भोलू का जी चाहा, वह कहीं भाग जाए, पर कहां जाता? अब तो वह जकड़ा जा चुका था। गायब हो जाता तो इस समय जरूर खुदकुशी कर लेता। उस लड़की पर जाने क्या बीतती! और तूफान मचता वह अलग।
‘अच्छा, जो होता है, होने दो, हमारे साथी और भी तो हैं धीरे-धीरे आदत हो जाएगी मुझे भी।’ भोलू ने अपने आपको ढाढस दिया और अपनी नई-नवेली दुल्हन की डोली घर ले आया।
क्वार्टरों में चहल-पहल पैदा हो गई। लोगों ने भोलू और गामा को खूब बधाइयां दी। भोलू के जो खास दोस्त थे, उन्होंने उसको छेड़ा और पहली रात के लिए कुछ सफल गुर बताए। भोलू चुपचाप सुनता रहा।
उसकी भाभी ने ऊपर कोठे पर टाट के पर्दे के नीचे बिस्तर का बंदोबस्त कर दिया। गामा ने मोतिया के चार बड़े-बड़े हार तकिए के पास रख दिए। एक दोस्त उसके लिए जलेबियों वाला दूध ले आय।
देर तक वह नीचे क्वार्टर में अपनी दुल्हन के पास बैठा रहा। वह बेचारी शर्म के मारे, सिर झुकाए, घूंघट काढ़े सिमटी हुई थी। सख्त गर्मी थी। भोलू का नया कुर्ता उसके जिस्म के साथ पसीने से चिपका हुआ था। वह पंखा झल रहा था, पर हवा जैसे बिल्कुल गायब हो गई थी। भोलू ने पहले सोचा था कि वह ऊपर कोठे पर नहीं जाएगा, नीचे क्वार्टर में ही रात काटेगा, पर जब गर्मी इन्तहा को पहुंच गई तब वह उठा और उसने दुल्हन से चलने को कहा।
रात आधी से ज्यादा गुजर चुकी थी। सारे क्वार्टर खामोशी में लिपटे हुए थे। भोलू को इस बात का संतोष था कि सब लोग सो रहे होंगे। काई उसको नहीं देखेगा। चुपचाप, दबे पांव, वह अपने टाट के पर्दे के पीछे, अपनी दुल्हन समेत घुस जाएगा और सुबह मुंह-अंधेरे ही नीचे उतर जाएगा।
जब वह कोठे पर पहुंचा तो बिल्कुल खामोशी थी। दुल्हन ने शरमाए हुए कदम उठाए तो पायल के रुपहले घुंघरू बजने लगे। एकदम भोलू ने महसूस किया कि चारों तरफ जो नींद बिखरी हुई थी, वह जेसे चौंक कर जाग पड़ी है। चारपाइयों पर लोग करवटें बदलने लगे। खांसने-खंखारने की आवाजें इधर-उधर उभरने लगीं। दबी-दबी सरगोशियां उस तपी हुई फिजा में तैरने लगीं। भोलू ने घबरा कर अपनी बीवी का हाथ पकड़ा और तेजी से टाट की ओट में चला गया। दबी-दबी हंसी की आवाज उसके कानों के साथ टकराई। उसकी घबराहट बढ़ गई। बीवी से बात की तो पास भी खुसर-पुसर शुरू हो गई। दूर कोने में जहां कल्लह की जगह थी, चारपाई की चर्र-चूं, चर्र-चू होने लगी। वह धीमी पड़ी तो गामा के लोहे की चापाई बोलने लगी।
ईदू हलवाई की कुंवारी लड़की शादां ने दो-तीन बार उठ कर पानी पिया। घड़े के साथ उसका गिलास टकराता तो एक धमाका सा पैदा होता। खैरे कसाई के लड़के की चारपाई से बार-बार माचिस जलाने की आवाज आती थी। भोलू अपनी दुल्हन से कोई बात न कर सका। उसे डर था कि आसपास के खुले हुए कान फौरन उसकी बात निगल जाएंगे और सारी चारपाइयां चर्र-चूं, चर्रा-चूं करने लगेंगी। दम साधे वह चुपचाप लेटा रहा।
कभी-कभी सहमी हुई निगाह से अपनी बीवी की तरफ देख लेता, जो गठरी-सी बनी दूसरी चारपाई पर लेटी थी। कुछ देर वह जागती रही, फिर सो गई।
भोलू ने चाहा कि वह भी सो जाए मगर उसे नींद न आई। थोड़ी-थोड़ी देर बाद उसके कानों में आवाजें आती थीं ….. आवाजें जो फौरन तसवीरें बनकर उसकी आंखों के सामने गुजर जाती थीं। उसके मन में बड़ी उमंगें थी, बड़ा जोश था। जब उसने शादी का इरादा किया था तो वे सारी लज्जतें, जिनसे वह अपरिचित था, उसके दिल-दिमाग में चक्कर लगाती रहती थीं।
उसे एक गर्मी महसूस होती थी-बड़ी सुखद गर्मी। मगर अब जैसी पहली रात से उसे कोई दिलचस्पी ही न थी। उसने रात में कई बार यह दिलचस्पी पैदा करने की कोशिश की, लेकिन आवाजें … वे तस्वीरें खींचने वाली आवाजें …. सब कुछ अस्त व्यस्त कर देतीं। वह अपने आपको नंगा महसूस करता, बिल्कुल नंगा, जिसको चारो ओर से लोग आंखें फाड़-फाड़ कर देख रहे हों और हंस रहे हों। सुबह चार बजे के करीब वह उठा।
बाहर निकल कर उसने ठंडे पानी का गिलास पिया। कुछ सोचा। वह झिझक, जो उसके मन में बैठ गई थी, उसको किसी हद तक दूर किया। अब ठंडी हवा चल रही थी, जो काफी तेज थी। भोलू की निगाहें कोने की तरफ घूमी। कल्लन का घिसा हुआ टाट हिल रहा था। वह अपनी बीवी के पास बिल्कुल नंग-धडंग लेटा था। भोलू को बड़ी घिन लगी साथ ही गुस्सा भी आया कि हवा ऐसे कोठों पर क्यों चलती है? चलती है तो टाटों को क्यों छेड़ती है? उसके मन में आया कि कोने पर जितने टाट हैं, सब नोंच डाले और नंगा होकर नाचने लगे।
भोलू नीचे उतर गया। जब काम पर निकला तो कई दोस्त मिले। सबने उससे पहली रात का हाल पूछा। फूजी दर्जी ने उसको दूर से ही आवाज दी, क्यों उस्ताद भोलू, कैसे रहे? कहीं हमारे नाम पर बट्टा तो नहीं लगा दिया तुमने?’
आगे टीन साज ने उससे बड़े भेद भरे स्वर में कहा, ‘देखो, अगर कुछ गड़बड़ है तो बता दो, एक बड़ा अच्छा नुस्खा मेरे पास मौजूद हैं।’
बाले ने उसके कंधे पर जोर का हाथ मारा, ‘कहो पहलवान, कैसा रहा दंगल?’ भोलू चुप रहा।
सुबह उसकी बीवी मायके चली गई। पांच-छह दिन के बाद वापस आई तो भोलू को फिर उसी मुसीबत का सामना करना पड़ा। कोठे पर सोने वाले जैसे उसकी बीवी के आने का इंतजार कर रहे थे।
कुछ रातें खामोश रहीं, लेकिन जब वे ऊपर सोये तो फिर वहीं खुसुर-पुसुर, चर्र-चूं, चर्र-चूं, वहीं खांसना-खंखारना, वहीं घड़े के साथ गिलास के टकराने की छनाके, करवटों पर करवटें, दबी दबी हंसी।
……भोलू सारी रात अपनी चारपाई पर लेटा आसमान की ओर देखता रहता। कभी-कभी एक ठंडी आह भर कर अपनी दुलहन को देख लेता और दिल में कुढ़ता, ‘मुझे क्या हो गया है? …. यह मुझे क्या हो गया है?’
सात रातों तक यही होता रहा। आखिर तंग आकर भोलू ने अपनी दुल्हन को मायके भेज दिया। बीच-पच्चीस दिन बीत गए तो गामा ने भोलू से कहा, ‘यार, तुम अजीब आदमी हो। नई-नई शादी और बीवी को मायके भेज दिया! इतने दिन हो गए उसे गए हुए, तुम अकेले सोते कैसे हो?’
भोलू ने सिर्फ इतना कहा, ‘ठीक है।’
गामा ने पूछा, ‘ठीक क्या है है? जो बात है, बताओ। क्या तुम्हें पसंद नहीं आई आयशा?’
‘यह बात नहीं है।’
‘यह बात नहीं है तो और क्या बात है?’
भोलू बात गोल कर गया। मगर थोड़े ही दिनों बाद उसके भाई ने फिर बात छेड़ी। भोलू उठ कर क्वार्टर के बाहर चारपाई पर जा बैठा। भीतर से उसको अपनी भाभी की आवाज सुनाई दी। वह गामा से कह रही थी, ‘तुम जो कह रहे हो कि भोलू को आयशा पसंद नहीं आई, यह गलत है।’
गामा की आवाज आई, ‘तो फिर क्या बात है? भोलू को उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं।’
‘दिलचस्पी क्या हो?’
‘क्यों?’
गामा की बीवी ने इसका जो जवाब दिया, भोलू न सुन सका, लेकिन इसके बावजूद उसको ऐसा लगा, मानो उसकी हस्ती किसी ने ओखली में डालकर कूट दी हो। गामा एकदम ऊंची आवाज से बोला, ‘नहीं, नहीं! यह तुमसे किसने कहा?’
गामा की बीवी बोली, ‘आयशा ने अपनी किसी सहेली से जिक्र किया …. बात उड़ते-उड़ते मुझ पर पहुंच गई।’
गामा मायूसी से बोला, ‘यह तो बहुत बुरा हुआ।’
भोलू के दिल में छुरी-सी उतर गई। उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया। वह उठा और कोठे पर चढ़कर, जितने टाट लगे थे, उन्हें उखाड़ने में जुट गया। ‘खट-खट, फुट-फुट’ सुनकर लोग जाग गए।
उन्होंने उसे रोकने की कोशिश की तो वह लड़ने लगा। बात बढ़ गई। कल्लन ने बांस उठा कर उसके सिर पर दे मारा। भोलू चकरा कर गिरा और बेहोश हो गया।
जब उसे होश आया, तो उसका दिमाग चल चुका था। अब वह बिल्कुल नंग-धड़ंग बाजारों में घूमता-फिरता है। कहीं टाट लटका देखता है तो उसको उतार कर तार-तार कर देता है।
