manto ki kahani, chugad

Manto Story in Hindi: लड़कों और लड़कियों के प्रेम की चर्चा चल रही थी। प्रकाश, जो बहुत देर से चुपचाप बैठा अंदर ही अंदर किसी गहरी सोच में गुम था, एकदम फट पड़ा।

‘सब बकवास है। सौ में से निन्यानवे रोमांस निहायत ही भौंडे, लचर और बेहूदा ढंग के हुआ करते हैं। बाकी एक रह जाता है। इसमें आप अपनी शायरी रख लीजिए या अपनी अक्ल और समझ भर दीजिए। मुझे हैरत है…..तुम सब खासे तजुर्बेकार हो। ..औरत आदमी के मुकाबले में ज्यादा समझदार हो। जो सच्चाई है, वह तुम्हारी आंखों से ओझल भी नहीं। फिर यह क्या बेवकूफी है कि तुम बराबर इस बात पर जोर दिए जा रहे हो कि औरत को लुभाने के लिए नर्म-नाजुक शायरी, खूबसूरत शक्ल, सुंदर कपड़े, इत्र…..लैंवेंडर और जाने किस-किस खुराफत की जरूरत है। और मेरी समझ में यह चीज तो बिल्कुल नहीं आती कि किसी औरत से इश्क करने से पहले, तमाम पहलू सोच कर कोई स्कीम बनाई जाए।’

चौधरी ने जवाब दिया, ‘हर काम करने से पहले आदमी को सोचना पड़ता ही है।’

प्रकाश ने फौरन कहा, ‘मानता हूं, लेकिन यह रोमांस लड़ाना मेरे नजदीक कोई काम नहीं। यह एक…यह एक……मेरा मतलब है, रोमांस मकान बनाना नहीं जो आपको पहले नक्शा बनवाना पड़े। एक लड़की या औरत अचानक आपके सामने आती है। आपके दिल में कुछ गड़बड़-सी होती है। फिर यह ख्वाहिश होती है कि वह आपके साथ लेटी हो।….इसे आप काम कहते हैं? यह एक …यह एक हैवानीतलब है, जिसे पूरा करने के लिए जानवरों के पास ऐसे तरीके ही इस्तेमाल करने चाहिए। जब एक कुत्ता किसी कुतिया से इश्क लड़ाना चाहता है तो वह बैठ कर स्कीम तैयार नहीं करता। इसी तरह, जब सांड बू सूंघ कर गाय के पास जाता है तो उसे अपने बदन पर इत्र नहीं लगाना पड़ता। बुनियादी तौर पर हम सब जानवर हैं, इसलिए इश्क या रोमांस में, जो दुनिया की सबसे तलब है, इंसानियत का ज्यादा दखल नहीं होना चाहिए।

मैंने कहा, ‘तो इसका मतलब, यह हुआ कि मूर्तियां या तस्वीरें बनाना, शेरों-शायरी करना-ये सब फाइन आर्ट, महज बेकाम के काम हैं।’

प्रकाश ने सिगरेट सुलगाई और अपने जोश को दबाते हुए कहा, ‘महज बेकार नहीं। मैं समझ गया, तुम क्या कहना चाहते हो। तुम्हारा मतलब यह था कि जब सारे फन औरत की वजह से पैदा हुए हैं तो फिर इनकी पैदाइश की वजह, औरत नहीं है, बल्कि औरत के बारे में, मर्द की हद से बढ़ी हुई खुशफहमी है। मर्द जब औरत के बारे में सोचता है तो और सब कुछ भूल जाता है। वह चाहता है कि औरत को औरत न समझे-औरत को महज औरत समझने से, उसके जज्बात को ठेस पहुंचती है, इसलिए वह चाहता है कि उसे हसीन से हसीन रूप में देखे। यूरोप के देशों में जहां औरतें फैशन पर मरती हैं, उनसे जाकर पूछों कि उनके बालों, उनके कपड़ों और उनके जूतों के नित नए फैशन कौन ईजाद करता है?

चौधरी ने बेतकल्लुफी के साथ अपने खास अंदाज में प्रकाश के कंधे पर हौले से हाथ मारा, ‘तुम बहक गए हो, यार। जूतों के डिजाइन कौन बनाता है, सांड गाय के पास जाता है तो उसे लैवेंडर नहीं लगाना पड़ता। यहां बातें हो रही थीं कि लड़कों और लड़कियों के वही रोमांस कामयाब होते हैं जो शरीफाना लाइनों पर शुरू हों।’

प्रकाश के होठों के कोने, तन्ज से सिकुड़ गए, ‘चौधरी साहब किबला, आप बिल्कुल बकवास करते हैं। शराफत को रखिए आप अपने सिगरेट के डिब्बे में और ईमान से कहिए, वह लौंडिया, जिसके लिए आप पूरे एक बरस तक, रूमालों को बेहतरीन से बेहतरीन लैवेंडर लगा कर, स्कीमें बनाते रहे, क्या आपको मिल गई थी?’

चौधरी ने कुछ खिसिया कर जवाब दिया, ‘नहीं।’

‘क्यों?’

‘वह….वह किसी और से मुहब्बत करती थी।’

‘किस्से?-एक उल्लू के पट्ठे से- एक फेरी वाले बजाज से, जिसको न तो गालिब के शेर याद थे, न कृश्न चंदर की कहानियां। जो आपके मुकाबले में लैवेंडर लगे रूमाल से नहीं, बल्कि अपने मैले तहमद से नाक साफ करता था।’ प्रकाश हंसा, ‘चौधरी साहब, मुझे अच्छी तरह याद है, आप बड़ी मेहनत से उसे खत लिखा करते थे।

आसमान के तमाम तारे आपने चिपका दिये थे चांद की सारी चांदनी समेट उनमें फैला दी-पर इस फेरी वाले बजाज ने उस लड़की की, जिसकी समझ की ऊंचाई के गीत आप हर वक्त गाते थे, जिसकी तबीयत की नफासत पर आप मर मिटे थे, एक आंख मार कर, अपने थानों की गठढ़ी में बांधा और चलता बना-इसका जवाब है आपके पास?’

चौधरी मिनमिनाया, ‘मेरा ख्याल है, जिन लाइनों पर मैं चल रहा था, गलत थी। जितना कुछ मैंने उसके नफसियात को पढ़ा था, वह दुरुस्त साबित न हुआ।’

प्रकाश मुस्कराया, “चौधरी साहब, जिन लाइनों पर आप चल रहे थे, यकीनन गलत थीं। उसका नफसियाती मुतालअ भी जो आपने किया था, सौ फीसदी गलत था। और जो कुछ आप कहना चाहते हैं, वह भी ठीक नहीं है। इसलिए कि आपको लाइन बनाने और नफसियाती मुतालअ की जहमत उठानी ही नहीं चाहिए थी। नोट बुक निकाल कर उसमें लिख लीजिए कि सौ में सौ मक्खियां शहद की तरह भागी आएंगी और सौ में से निन्यानवे लड़कियां भौंडेपन की तरफ खिंचेगी।”

प्रकाश के लहजे में एक ऐसा तन्ज था, जिसका रुख चौधरी की तरफ उतना नहीं था, जितना खुद उसकी अपनी तरफ था।

चौधरी ने सिर हिलाया और कहा-“तुम्हारी फिलासफी मैं कभी नहीं समझ सकता।”

‘कोशिश करो और समझो। कोई ऐसी मुश्किल चीज नहीं है। किस्सा यह है कि एक आसान बात को तुमने मुश्किल बना दिया है। तुम आर्टिस्ट हो और नोट बुक निकाल कर यह भी लिख लो कि आर्टिस्ट अव्वल दर्जे के बेवकूफ होते हैं। मुझे बहुत तरस आता है उन पर। कमबख्तों की बेवकूफी में भी सच्चाई और प्यार होता है। दुनिया भर के मसले हल कर देंगे, पर जब किसी औरत से मुठभेड़ होगी तो जनाब ऐसे चक्कर में फंस जाएंगे कि एक गज दूर खड़ी औरत तक पहुंचने के लिए पेशावर का टिकट लेंगे और वहां पहुंच कर सोचेंगे, यह औरत आंखों से ओझल कैसे हो गई? चौधरी साहब किबला! निकालिए अपनी नोट बुक और लिख लीजिए कि आप अव्वल दर्जे के चुगद हैं।

चौधरी चुप रहा और मुझे एक बार फिर यह महसूस हुआ कि प्रकाश चौधरी को आइना बनाकर, उसमें अपनी शक्ल देख रहा है और खुद को गालियां दे रहा है। मैंने उससे कहा, ‘प्रकाश, ऐसा लगता है, चौधरी की बजाय, तुम अपने आपको गालियां दे रहे हो।’

उम्मीद के खिलाफ उसने जवाब दिया-“तुम बिल्कुल ठीक कहते हो, इसलिए मैं भी एक आर्टिस्ट हूं, यानी जब दो और दो, चार बनते हैं तो मैं खुश नहीं होता। मैं भी किबला चौधरी साहब की तरह अमृतसर के कंपनी बाग में औरत से मिल कर फ्रटियर मेल से पेशावर जाता है और वहां आंखें मल-मल कर सोचता है मेरी महबूबा गायब कहां हो गई।’ यह कह कर प्रकाश खूब हंसा, फिर चौधरी से मुखातिब हुआ-‘चौधरी साहब, किबला, हाथ मिलाइए। हम दोनों फिसड्डी घोड़े हैं। इस दौड़ में सिर्फ वही कामयाब होगा, जिसके जहन में सिर्फ एक ही चीज हो कि उसे दौड़ना है। यह नहीं कि काम और वक्त का सवाल हल करने बैठ जाए-इतने कदमों में अतना फाला तय होता है तो उतने कदमों में कितना फासला तय होगा। इश्क ज्योमेट्ररी है न अलजबरा, बस बकवास है, इसलिए उसमें फंसने वाले को बकवास ही से मदद लेनी चाहिए।’

चौधरी ने ऊबे हुए स्वर में कहा, ‘क्या बकवास करते हो!’

‘तो सुनो, प्रकाश जम कर बैठ गया, ‘मैं तुम्हें एक सच्चा वाकया सुनाता हूं। मेरा एक दोस्त है। मैं उसका नाम नहीं बताऊंगा। दो बरस हुए, वह एक जरूरी काम से चम्बा गया। दो दिन के बाद लौट कर उसे डलहौजी चला जाना था। उसके फौरन बाद अमृतसर पहुंचना था, पर वह तीन महीने तक लापता रहा। न उसने घर खता लिखा, न मुझे। जब लौटा तो उसने बताया कि वह तीन महीने चम्बा ही में रहा। वहां की एक हसीन लड़की से उसे इश्क हो गया था।’

चौधरी ने पूछा, ‘नाकाम रहा होगा?’

प्रकाश के होंठों पर एक मायनीचखेज मुस्कराहट उभरी, ‘नहीं-नहीं, वह कामयाब रहा। जिंदगी में उसे एक शानदार तजुरबा हासिल हुआ। तीन महीने वह चम्बा की सर्दी में ठिठुरता और लड़की से इश्क करता रहा। वापस डलहौजी आने वाला था कि पहाड़ी की एक पगडंडी पर उस काफिर जमाल हसीना से उसकी मुठभेड़ हुई।

सारी दुनिया परछा गई। उसको इश्क हो गया था। किबला चौधरी साहब, सुनिये पंद्रह दिनों तक लगातार वह बेचारा अपने इश्क को चम्बा की जमा देने वाली फिजा में, दिल के अंदर दबाए, छिप-छिप कर दूर से उस लड़की को देखता रहा, पर उसके पास जाकर उससे बात करने की हिम्मत न कर सका।

दिन बीतने पर वह सोचता कि दूरी कितनी अच्छी चीज है। ऊंची पहाड़ी पर वह बकरियां चरा रही है, नीचे सड़क पर इसका दिल धड़क रहा है।

आंखों के सामने वह शायराना नजारा लाइए और दाद दीजिए। इस पहाड़ी पर सच्चा आशिक खड़ा है। दूसरी पहाड़ी पर उसकी हसीन महबूबा। बीच में पानी का नाला बह रहा है। सुबहानल्लाहा! कैसा दिलकश नजारा है। चौधरी साहब, किबला….

चौधरी ने टोका, ‘बकवास मत करो। जो वाकया है, उसे बयान कर दो।’

प्रकाश मुस्कराया, ‘तो सुनिए। पंद्रह दिन तक मेरा दोस्त इश्क के जोरदार हमले का असर दूर करने में लगा रहा और सोचता रहा कि उसे जल्दी वापस चला जाना चाहिए। इन पंद्रह दिनों में उसने कागज-पेंसिल लेकर तो नहीं, पर दिमाग ही दिमाग में उस लड़की से अपनी मुहब्बत का जायजा कई बार लिया। लड़की के जिस्म की हर चीज उसे पसंद थी, लेकिन सवाल यह था कि उसे हासिल कैसे करे? क्या एकदम, बिना जान-पहचान के, यह उससे बातें करना शुरू कर दे?-बिल्कुल नहीं। यह कैसे हो सकता था? क्यों, हो कैसे नहीं सकता पर मान लिया जाए कि उसने मुंह फेर लिया, जवाब दिए बिना, अपनी बकरियों को हांकती, पास से गुजर गई। जल्दबाजी कभी फलती नहीं लेकिन उससे बात किए बिना उसे हासिल कैसे किया जा सकता है? एक तरकीब है। वह यह कि उसके मन में अपने लिए प्यार पैदा किया जाए। उसको अपनी ओर खींचा जाएं हां-हां ठीक है। पर सवाल यह कि खींचा कैसे जाए-हाथ से इशारा?-नहीं, बिल्कुल पोच हैं…..सो किबला चौधरी साहब, हमारा हीरो इन पंद्रह दिनों में यही सोचता रहा। सोलहवें दिन अचानक, बावली पर उस लड़की ने उसकी ओर देखा और मुस्कुरा दी-हमारे हीरो के दिल की बांछे खिल गईं, लेकिन टांगे!-आपने अब टांगों के बारे में सोचना शुरू किया, लेकिन जब मुस्कुराहट का ख्याल आया तो अपनी टांगे अलग कर दी और उस लड़की की पिंडलियों के बारे में सोचने लगा, जो उठी हुई घघरी में से उसे दिखाई पड़ी थीं। कितनी सुडौल थीं। लेकिन वह दिन दूर नहीं, जब वह उन पर बहुत हौले-हौले हाथ फेर सकेगा।…..पंद्रह दिन और बीत गए। इधर वह मुस्कुराकर पास से गुजरती रही, उधर हमारे हीरो साहब, जवाबी मुस्कराहट की रिहर्सल करते रहे। सवा महीना हो गया और उनका इश्क सिर्फ होंठो ही पर मुस्कराता रहा। आखिर एक दिन, खुद उस लड़की ने खामोशी की मुहर तोड़ी और बड़ी अदा से एक सिगरेट मांगा। आपने सारी डिब्बी भेंट कर दी और घर आकर, सारी रात कंपकंपाहट पैदा करने वाले सपने देखते रहे। दूसरे दिन एक आदमी को डलहौजी भेजा और वहां से सिगरेटों के पंद्रह पैकेट मंगवा कर, एक छोटे से लड़के के हाथ, अपनी महबूबा को भिजवा दिए। जब उसने अपनी झोली में डाले तो आपके दिल को, दूर खड़े-खड़े ही बड़ी खुशी महसूस हुई। होते-होते वह दिन भी आ गया,जब दोनों पास-पास बैठ कर बातें करने लगे-किबला चौधरी साहब बताइए हमारा हीरो क्या बातें करता था उससे?’ चौधरी ने उसी उकताए हुए स्वर में जवाब दिया-‘मुझे पता हैं किबला चौधरी साहब। घर से चलते समय वह बातों की एक बहुत लंबी-चौड़ी सूची तैयार करता। मैं उससे यह कहूंगा, मैं उससे वह कहूंगा। जब वह नाले के पास कपड़े धोती होगी तो मैं आहिस्ता-आहिस्ता जाकर उसकी आंखें मीच लूंगा, फिर उसकी बगलों में गुदगुदी करूंगा। लेकिन जब उसके पास पहुंचता और आंखें भींचने और गुदगुदी करने का खयाल आता तो उसे शर्म आ जाती-क्या बचपना है। और वह उससे कुछ दूर हट कर बैठ जाता और भेड़ बकरियों की बातें करता रहता। कई बार उसे खयाल आया,

कब तक ये भेड़-बकरियां उसकी मुहब्बत चरती रहेंगे? दो महीने से कुछ दिन ऊपर हो गये हैं और अभी तक वह उसको हाथ तक नहीं लगा सका। लेकिन वह फिर सोचता कि हाथ लगाए कैसे? कोई बहाना तो होना चाहिए। फिर उसे ख्याल आता, बहाने से हाथ लगाना बिल्कुल बकवास है। लड़की की तरफ से उसे खामोश इजाजत मिलनी चाहिए कि वह उसके जिस्म के जिस हिस्से को भी चाहे, हाथ लगा सकता है। अब खामोश इजाजत का सवाल आ जाता। उसे कैसे पता चला सकता है उसने इजाजत दे दी है? किबला चौधरी साहब, इसकी खोज लगाते-लगाते पंद्रह दिन और बीत गए।’