badla faisla
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

जरा-सी गरदन उठा कर न्यायाधीश मानिक्वली नाचियार ने चश्में को ऊपर कर देखा। “तुम…..तुम जोसफ हो ना!”

“हाँ जी!”

“हम्म.! क्या बात है?”

“मैं! आपके पास न्याय माँगने आया हूँ। अम्मा…!” न्यायाधीश नाचियार को हंसी आई। फिर भी होंठ तक नहीं लाई। अनुभव ने उनके चेहरे को पत्थर जैसे कड़ा बना दिया।

“आगे बोलो” जैसे ही ऊपर देखा, वह सिर खुजाते हुए बोला, “अम्मा, दो शादी करके भी मैं बिना घर के, बिना खाने के फिर रहा हूँ…क्यों? मुझे न्याय दिलाइए माँ…” शायद बातों की आवाज सुन अन्दर से एस्थर बाहर आई। इसे देख…

“इधर क्यों… आया?” चीखी। फिर नाचियार के हाथ दिखाने पर चुप हो गई। आगे बोलने के लिए न्यायाधीश ने जोसफ की ओर देख इशारा किया।

“अम्मा, गलती तो है! बुद्धि खराब होने से दूसरी को लेकर आया परन्तु, इसने तो उसे घर के अंदर लेकर, मुझे ही घर से निकाल दिया। अब दोनों जन मिलकर मुझे ही भगाती हैं। अब आप बताइये माँ!” वह आँखें ऊपर करके बातें कर रहा था। उसकी आँखों से ही झूठ साफ दिख रहा था।

“अम्मा……वह” कुछ कहने आई एस्थर को हाथ ऊँचा कर न्यायाधीश ने एस्थर को चुप किया।

“हुम…ऐसा…ऐसी…..गलती कर दी! पहली पत्नी के जिंदा रहते हुए भी दूसरी शादी करके अब आकर मुझसे ही न्याय माँग रहे हो……….जोसफ!”

“अम्मा! वह नहीं, वह क्या……नहीं” इस तरह हकला रहा था तो नाचियार ने एस्थर को देखा।

“अम्मा, माफ कीजिए…आपको भी ये बात नहीं बतायी मैंने, कह कर एस्थर ने सिर झुका लिया। फिर, अम्मा…उस दिन आपने जब पूछा था कि ये कौन है तो…मैंने आपसे सच छुपा लिया था….” न्यायाधीश को भी सब बातें याद आ गई।

माथे पर बड़ी बिंदी, उसके ऊपर भभूति लगा, खूब हल्दी लगाने से पीले हुए चमकते चेहरे और सूती की साड़ी पहने दुबली-पतली-सी लड़की, हाथ में छोटा-सा बच्चा लिए हुए एस्थर को ढूंढती आई थी। “मेरी शादी 16 साल में ही कर दी गई। 20 साल की उम्र में मेरे एक बेटा व एक बेटी हो गए। वे भी पढ़-लिख कर काम करने लगे। उनकी शादी कर दी। वो अब बाल-बच्चे वाले हो गए। अब और क्या कमी है अम्मा! भगवान ने स्वास्थ्य भी अच्छा दे रखा है। हाथ पैरों में दम है अभी। काम पर जाता है, मन्दिर जाता है… सत्संग में जाता है, शहर में घूमता-फिरता है…जाने दो ऐसा सोच कर मैंने छोड़ दिया। मैंने न्याय नहीं माँगा’ अम्मा।

“अचानक इस लड़की को लेकर घर के बाहर खड़ा हो गया अम्मा। ये हाथ में एक छोटा-सा बच्चा लिए थी। ये मेरा आदमी मेरे लिए भी सच्चा नहीं और उस लड़की के लिए भी सच्चा नहीं!” बोलते हुए एस्थर का गला भर आया।

“इस आदमी से शादी कर मैंने क्या सुख पाया? ऐसा काम करके बिना संकोच खड़ा है……..बहू, दामाद, समधी जिन्होंने चाव से शादी की वे सब क्या सोचेंगे…मैं आत्महत्या कर मरना ही चाहती हूँ अम्मा।”

“अब इसको ले आकर, शहद जैसी मीठी बातें कर रहा है अम्मा।”

“वह लड़की एक अनाथ लड़की है। काम पर जाते समय रास्ते में कुछ बदमाश लड़कों ने इसे परेशान किया। तब मेरे पति ने इसे उनसे बचाया। फिर कहने लगा “मैं भी अनाथ हूँ” झूठ बोला। वह भी छोटी लड़की है। डरी हुई बिना कुछ सोचे इनके कहने में आ गई। औरतों को धोखा देने के लिए आदमी को पाठ पढाना तो पडता है कि नहीं……? फिर एक बात है अम्मा, इस लड़की को बिना कुछ बताये ही उसे घर लेकर आ गए। उसे मेरे सामने खड़ा करके उसे बोले “ये मेरी पहली पत्नी है, उस लड़की ने जिस नजर से इनको देखा, उस निगाह को देखना मुश्किल था”

इनके हाथों को झटक कर वो एकदम से दूर जाकर खड़ी हो गई और उसने एक प्रश्न पूछा-…….तब मैं समझी वह लड़की अच्छी है, इन्होंने ही उसे धोखा दिया।

एस्थर के ये बोलते ही मानिक्वली नाचियार की दिलचस्पी बढ़ती गई। सात-आठ साल से ज्यादा हो गए, एस्थर यहां पर ठीक तरह से अपना काम परा करती है। और आज…… गस्से से उबलती बातें सुन कर उन्हें आश्चर्य हो रहा था।

“अम्मा एक और एक साथ होकर ग्यारह बन कर मुझे दुत्कार रहीं हैं। “तुम्हें खाना नहीं मिलेगा……..” कहती हैं । ये कौन-सा न्याय है….? जोसफ धीरे से भुनभुना कर बोला।

“अम्मा इस आदमी ने जो धोखा दिया है, उससे हम दो औरतें प्रताड़ित होकर खडी हैं। इस लड़की ने कह दिया कि इस आदमी के साथ मैं रह नहीं सकती” इसके हाथ में एक छोटा-सा बच्चा भी है! “मुझे यदि पता होता कि ये शादीशुदा है तो मैं कभी भी अपने को इसे नहीं सौंपती। मैं अनाथ हूँ, इस आदमी ने मुझे बदमाशों से बचाया और बोला- मैं भी अनाथ हूँ। अनाथ के लिए अनाथ का साथ सोच कर मैने मगंल सूत्र के लिए इसके सामने सिर झुकाया। पर मैं दूसरे के पति को बांटने वाली नीच औरत नहीं हूँ। इस छोटे से बच्चे की कसम खाती हूँ मैं इस आदमी की छाया को भी नहीं छूऊँगी, कह कर वह रोई ।

“इस आदमी के मीठा-मीठा बोलने से इस छोटी लड़की का मन पिघल गया….कसम खाकर रोने से…… मैंने उसे मेरे साथ ही रह जा बोल दिया। मेरा लड़का भी नाराज हुआ। पूरे मोहल्ले ने इसे भगाने के लिए बोला अम्मा। हमारे चर्च के पास्टर साहब भी इसे किसी होम में भेज दो बोले…….”

“क्यों अम्मा! इसने क्या गलती की? इसे क्यों भगाना चाहिए?”

“इन्होंने ही गलती की है…झूठ बोला? धोखा दिया? इसीलिए इन्हें ही घर से भगा दिया।” उसने अपना पक्का निर्णय दे दिया।

नचियार विस्मय व आश्चर्य से उसे देखने लगीं। फिर “तुम्हें कनका, उसके बच्चे को देखने में कष्ट नहीं होता एस्थर?”

“नहीं माँ! मैं भी बेवकूफ। वह भी बेवकूफ। दोनों ने धोखा खाया! उसके स्थान पर अपने को रख कर देखें तो वह जो भुगत रही है, उस दर्द व वेदना को समझ सकेगें?”

“अच्छा…जोसफ घर के अंदर नहीं आयेगा, ये बात तय होने पर क्या कनका इसके लिए राजी हो गई……..?”

“अरे…उसी ने तो इसे पहले कहा, उसने क्या कहा पता है? “इस बच्चे की कसम, अब तुम मुझे छुओगे नहीं। फिर भी तुमने छुआ तो मैं सचमुच तुम्हें मार कर, मैं भी आत्महत्या कर लूंगी, जोर से चिल्लाई कनका” उसी से मुझे उस पर दया आई व ममता भी जगी”

“फिर भी जाने दो कह कर इस आदमी को अंदर आने की अनुमति दे दी अम्मा। कनका जा रही हूँ कह कर रवाना होने लगी, तो मैंने सोचा।”

“कनका छोटी लड़की है। उसकी गोदी में छोटा बच्चा है। जिद में अकेली चली जायेगी और कुछ विपरीत हो गया तो?” हे येशु …जिसे चाहे जो समझना है समझने दो! कनका के बेटे को पालना अब मेरे जिम्मे है, मैंने सोचा। मुझे लगा जैसे मेरे जीवन को एक उद्देश्य मिल गया। इन दोनों को सक्षम बनाना है, सोच कर एक विश्वास व जिंदगी में एक उत्साह मुझमें आ गया, ऐसा मुझे लगा।” नाचियार को तो एस्थर का बोलना…….ऐसा लगा जैसे किसी ज्ञानी का प्रवचन हो।

“इस आदमी को साथ रख कर, समय-समय पर खाना देने से, ये खा-पीकर बलवान बन एक को और ढूंढेगा! इसे सड़क पर छोड़ दो…रोजाना कमा कर ही खायेगा तो फिर दूसरा रास्ता न होने पर बदमाशी नहीं करेगा। इसलिए ही हमने इसे भगा दिया…औरत की नियति में हर काल हर समय में संघर्ष ही करना लिखा है। ये तो हर किसी से हमेशा धोखा ही खाने वाली हैं। आदमी तो हमेशा ही धोखा देने वाला है। परन्तु चार जनों को अच्छा करना सिर्फ औरतों से ही हो सकता है…’ एस्थर बोलती ही गई।

उसका मन पक्षी जैसे फड़फड़ाया। एक साधारण कम पढ़ी औरत और इतने नए विचार व ऐसा चिंतन! न्यायाधीश जी सोचने को मजबूर हुई। कितनी गहरी सोच व विवेक…..एक बिलकुल ही अलग प्रकार की सोच!

ये कैसा एक विचित्र फैसला! कितने साधारण सरल ढंग से बोल रही है एस्थर। सोच-सोच कर उनका मन आश्चर्य-चकित हो रहा है। ये क्या? क्या, ये बदल रहे समय का फैसला है? उस न्यायाधीश ने दीर्घ श्वास छोड़ी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’