ek din chaubis ghante
ek din chaubis ghante

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

अपनी आँखों के ऊपर बाएं हाथ से आड़ बनाते हुए उसने पूछा, “कौन है?”

जैसे ही वह बोली वैसे ही “तुम अंदर आ जाओ अम्मा। कोई भी आए तुम्हें क्या करना! आने वाले के बारे में पहले आकर मालूम करके आपको क्या करना है?” अम्मा को डांट कर नडेशन ने “आइए बालू” कहकर मेरा स्वागत किया।

“बालू है क्या! कौन-सा बालू? कोई नया नाम लग रहा है? तुम्हारे ऑफिस का दोस्त है क्या?”

“हाँ, आपको बताना जरूरी है क्या? उनकी पूरी जन्मपत्री बना कर दूं? अंदर आओ ना अम्मा!” मुझे बड़ी परेशानी हुई।

“आपकी अम्मा है क्या नडेशन?”

“हाँ यह है तो बहुत अच्छी, पर इनका बक-बक करना सहन नहीं होता। आप यहां आकर बैठिए।”

उस बात को ध्यान न देकर मैं बोला- “नमस्कार मामी। मैं मिस्टर नडेशन के ऑफिस का दोस्त हूँ। हमारी पहचान थोड़े दिन पहले ही हुई। मैं नया बदली होकर यहां आया हूँ। आज यहां आकर थोड़ी देर बात कर, खाना खाकर हम दोनों ने दोपहर में एक अंग्रेजी पिक्चर देखने का सोचा है।”

“ऐसा है क्या बहुत प्रसन्नता हुई। बच्चों की जैसे स्कूल की शनिवार को छुट्टी रहती है वैसे ही आजकल ऑफिस की भी होने लगी है ना! इसलिए दोपहर का शो जा सकते हो” हँसते हुए वह बोली। उनकी हँसी में एक मित्रता का भाव था। सुनने वालों को भी हँसने के लिए प्रेरित करें, ऐसा नडेशन बोला- “अभी आप चुप नहीं रहोगी अम्मा?”

“आप इसे गलत ना समझना बालू” यह कहने की उन्हें जरूरत ही नहीं थी।

“इसमें गलत क्या है? आप बिलकुल सही कह रही हो” मैं बोला।

उसकी अम्मा की उम्र 60 साल के लगभग होगी। गेहुँआ रंग, दुबला बदन, पर चेहरे पर रौनक थी। आंखें जरूर भौंहों के अंदर गड्ढे में धंसी हुई एक रेखा जैसे दिखीं। बाल पूरे सफेद थे। इस उम्र में इतने पूरे सफेद होने की जरूरत तो नहीं थी। सिर की सफेदी जैसे माथे में आ गई हो वैसे माथे पर भभूति लगा रखी थी। हँसते समय पूरे दांत दिखे जो सही सलामत थे, ऐसा लग रहा था सफेद बालों में न जचने वाला यौवन।

“तुम्हारी शादी हो गई क्या?” दोनों आँखों को भींच कर मुझे देखते हुए पूछा।

“अम्मा” कहकर नडेशन ने डांटा।

“अभी नहीं” मैं बोला।

“मैंने सोचा- तुम्हारे साथ एक लड़की नहीं आई ना? शादी हुई होती तो नडेशन तुम दोनों को जोड़े से बुलाता। क्योंकि इसकी शादी हो गई है ना इसलिए बोली। तुम्हारी शादी हो गई होती तो तुम दोनों दोस्त पिक्चर जाने के बदले चार जने अर्थात दोनों जोड़े से जाते कि नहीं?”

नडेशन ने मजबूती से माँ को पकड़कर “अंदर आओ अम्मा।”

“छोड़ दे मुझे… क्यों बालू तुम कितने साल के हो? तुम्हारे भाई बहन कितने है? माँ-बाप है क्या?” ।

इस बार नडेशन मुंह से कुछ ना बोल कर अम्मा को खींच कर अंदर कमरे में धकेलते हुए ले गया और बोला “तेरी वजह से मैं शर्मिंदा हूँ।” कहकर घूरने और डांटने लगा।

“मैंने ऐसा क्या किया? जो तेरा अपमान हो गया? वह लड़का अच्छा है, ऐसा लगता है। थोड़ी देर उस लड़के से बात नहीं कर सकती क्या?” मुझे उसकी अम्मा की आवाज सुनाई दी।

मैंने अपने साथ लाए ब्रिटानिया के बिस्कुट का पैकेट वहाँ जो मेज थी उस पर रख दिया। उस छोटी-सी बैठक के कमरे में मैं इधर-उधर निगाहें दौड़ाने लगा। मेज कुर्सी, एक कैलेंडर, एक कांच की अलमारी में पुस्तकें दिखी। उसके पास जाकर उनके नामों को पढ़ा। तमिल और अंग्रेजी में इतिहास तत्त्व, कविता, अनुदित कहानियाँ आदि की किताबें रखी थी। उनके अप्पा के समय की होगी क्योंकि उसके अप्पा स्कूल अध्यापक से सेवानिवृत्त हुए थे, ऐसा नडेशन ने मुझे बताया था। वे अच्छे पढ़ने वाले होंगे।

इतने में नडेशन कमरे में आया और बोला, “सॉरी बालू”

“किस लिए सॉरी? लीजिए यह बिस्कुट आपके बच्चे के लिए लेकर आया हूँ।”

“यह सब क्यों?”

“रहने दो। बच्चों के घर में खाली हाथ थोड़े ना आते हैं।”

घर के अंदर से एक युवती आई। इसके पीछे उसकी गुड्डी। उसी का मॉडल हो जैसे चार-पाँच साल की बच्ची आई।

“मेरी पत्नी सरोजा है। सरोजा यह मेरे नए कलिग हैं मिस्टर नडेशन” दोनों का परिचय कराया।

“वेलकम” प्रणाम मैं बोला।

“वेलकम” बैठिएगा कॉफी लेकर आ रही हूँ।

“नहीं कॉफी नहीं चाहिए। अभी थोड़ी देर में हमें खाना ही खाना है। ग्यारह बजे तो पिक्चर के लिए रवाना होना है ना?”

“बेबी यह अंकल तुम्हारे लिए बिस्कुट लाए हैं, देखा क्या?”

“आप ही दीजिएगा बालू”

मैंने कहा- “कोई कुछ दे क्या कहना चाहिए?”

“थैंक्यू” वह अम्मा के पल्लू में छुप कर बोली।

“थैंक्यू फिर?”

“थै क्यू अंकल”

“हाँ गुड गर्ल!”

“अच्छा मैं रसोई में जाकर खाना तैयार करती हूँ।” कहकर सरोजा के अंदर जाते ही साथ में उसकी मॉडल भी बिस्कुट को गले में दाबे अंदर चली गई।

“मेरी अम्मा ने आपको बहुत बोर किया। उसको मिस अंडरस्टैंड मत कीजिएगा बालू।”

मैं बैठे हुए ही बोला, “इसमें मिस अंडरस्टैंड करने का क्या है?” वह अचानक फट पड़ा।

“बड़े लोगों में कुछ बड़प्पन तो होना चाहिए? पिताजी की पेंशन के 300 रुपये हर महीने आते हैं। उसे रखकर मैं बड़ा मकान बना लूंगा, ऐसी अम्मा की सोच है। पेंशन ना भी हो तो मैं उन्हें सड़क पर तो छोडूंगा नहीं, मैं ऐसा आदमी नहीं। यहां उन्हें क्या कमी है? बालू मैं यहां अम्मा को भूखा नहीं रखता। खाना देता हूँ, साड़ी लेकर देता हूँ। कोई बुखार, सिर दर्द हुआ तो डॉक्टर के पास लेकर जाता हूँ, सरोजा अम्मा को अच्छी तरह से संभालती है। यदि वह उसे ना संभाले तो मैं सरोजा को छोड़ दूंगा क्या? इससे ज्यादा उसे और क्या चाहिए? फिर भी उन्हें मुझसे बहुत शिकायतें हैं। दोनों समय वक्त पर खाना खाकर एक कोने में बैठे नहीं रहना चाहिए? नहीं वह नहीं। कोई भी आए कोई भी बात करें तो उन्हें आगे आकर अपना नाम जरूर घुसेड़ना है। चबड़-चबड़ कर पूरे समय बात करते रहना है। अपनी बातों से चार जनों के सामने मेरी इज्जत उतारती रहती हैं। छी छी!”

नडेशन के बोलने के बाद मैं क्या करूं, ना करूँ समझ कर मैं अपने शरीर को इधर-उधर हिलाता रहा। यह सब बातें मुझे क्यों बता रहा है मेरी समझ में नहीं आया। “कुछ नहीं छोडो नडेशन। कुछ भी हो, वह बड़े बुजुर्ग हैं…हमें इनसे समझौता करके चलना चाहिए।”

“बड़ी है तो थोड़ा बड़प्पन भी तो हो! बालू।”

मैंने बात को बदलकर दूसरे विषय पर बात शुरू कर दी। दुबारा सरोजा आकर बोली- “खाना तैयार है” उसके आने तक हम सामान्य विषय पर ही बात करते रहे।

नडेशन ने उठ कर अपनी माँ के कमरे की ओर झाँक कर देखा और बोला- “अम्मा खाना खाने आ रही हो?”

“तुम और वह तुम्हारा दोस्त खाना खा लो। तुम्हें ही बाहर जाना है। मैं बाद में खा लूंगी।”

हम खाना खाने बैठे। सरोजा ने मनुहार करके हमें खाना परोसा। खाना खाने के बाद नडेशन बोला “मैं जाकर डेस बदल कर रेडी होकर आता हँ बाल। ऑटो स्टैंड पास ही है। आप बैठक में जाकर बैठ जाओ। स्मोक करना चाहो तो कर लो।”

“ऐसी कोई खास बात नहीं” कहकर मैं फिर बैठक में आ गया।

पुस्तक की अलमारी खुली पड़ी थी। उसके पास नडेशन की अम्मा खड़ी हुई थी। पुस्तकों को सहला-सहला कर देख रही थी। पैरों की आहट सुन सिर घुमा कर “नडेशन” बोली।

“नहीं मामी बालू हूँ।”

“बालू है क्या? बहुत खुशी है बेटा।” आंखों को सिकोड़ कर मुझे मुस्कुरा कर देख बोली- “घर पर कोई आए तो मुझे बहुत खुशी होती है। थोड़ी बातें कर सकते हैं ना! तुम्हारी अभी तक शादी नहीं हुई? क्यों नहीं की? शादी के लिए तुम्हारी कोई बहन है क्या? तुम्हारी अम्मा-अप्पा है कि नहीं? मैं क्यों पूछ रही हूँ क्योंकि बड़े लोग हो तो वधु को देखने का जिम्मा उनका हो जाता है…” बातें करती हुई दो कदम आगे आई तो वहाँ रखी कुर्सी से टकराकर गिरने लगी, मैंने दौड़ कर उन्हें कंधे से पकड़ कर खड़ा किया।

“देखकर मामी!”

“कुर्सी थी ना? आंखों पर परदा-सा आ जाता है, कुछ दिखाई नहीं देता… घर के अंदर कुछ संभल कर चलती हूँ। फिर भी कभी-कभी टकरा जाती हूँ।” वे फिर अलमारी के पास जाकर किताबों को हाथों से सहलाने लगी। उनकी उंगलियाँ पुस्तकों के ऊपर चिपक रही थी, जैसे उन्हें अलग होने का मन न हो।

यह सब पुस्तकें नडेशन के अप्पा ने मेरे लिए खरीदी थी पता है बालू? उनको पढ़ने का शौक था- स्कूल के अध्यापक थे ना? परंतु उनसे ज्यादा तो मैं पुस्तकों के लिए पागल थी। मैं उस जमाने में एस. एस. एल. सी. थी। पढ़ना ही नहीं मेरी लिखाई भी बहुत सुंदर है। वे जब थके होते तो आराम से लेट कर मुझे पाठों के नोट्स डिक्टेट करते। मैं उन्हें लिखती। तुम्हारे अक्षर मोती जैसे हैं, कहकर मेरी तारीफ करते…।

मुस्कुराते हुए पुस्तकों को अंगुलियों से सहलाती रहीं। अंगुलियाँ बीच-बीच में कांप रही थी। पर क्यों कमजोरी की वजह से या भावातिरेक के कारण या दोनों वजह से मैं समझ नहीं पाया।

“अब… अक्षर दिखाई नहीं देते। आंखों में परदा आ गया। मनुष्य तो फिर भी थोड़ी-बहुत हल्की -सी परछाई जैसे नजर आ जाते हैं, पर अक्षर बिलकुल भी दिखाई नहीं देते.. और अभी 3 महीने से बिलकुल दिखाई नहीं देता। अक्षर के मामले में तो अंधी ही हूँ।”

“मोतियाबिंद है क्या मामी?”

“हाँ”

“उसके लिए ऑपरेशन करके चश्मा लगा लो तो ठीक हो जाएगा ना?”

“यह बात पता है डॉक्टर भी बोले। पर ऑपरेशन, चश्मा…. इन सबके लिए खर्चा होगा ना? नडेशन की इच्छा नहीं है। अब तुम्हें पुस्तक पढ़कर क्या करना है? बोलता है। बैठकर तुम्हें किसे पत्र लिखना है कहता है…. उसकी भी गलती नहीं है। हजार खर्चे हैं उसके…. पहले बहू भी नौकरी करती थी, पर बच्ची होने के बाद छोड़ दी। अब पैसों की किल्लत। कितना भी आए पूर नहीं पड़ता। बहू दुबारा गर्भवती है। बहुत से करते हैं।”

वह एक बार चुप हुई और मैं भी मौन ही था।

“फिर भी बालू… मैं बालू-बालू कहकर बुला रही हूँ, तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं?”

“वह कुछ नहीं।”

“वह तो मैं बूढ़ी हूँ। छोटों का नाम लेकर बुलाओ तो कोई गलती नहीं। मैं उन्नसठ साल की हूँ। तुम्हारी अम्मा कितने साल की होगी? नडेशन मुझे अच्छी तरह रखता है। बहू भी अच्छी है। उनसे मुझे कोई शिकायत नहीं। बस एक ही दुख है, नडेशन मुझे ठीक से समझ नहीं सका। वही एक दुख है। मुझे पेट भर खाना खिलाता है। कपड़े खरीद कर देता है। पर क्या यही एक मनुष्य के लिए सब कुछ है? एक मनुष्य के पास खाने और पहनने के समय के अलावा बाकी समय भी तो होता है। उसे मैं कैसे खर्च करूं? एक दिन में चौबीस घंटे हैं। पूरे दिन सो सकते हैं क्या? मेरी आँख का ऑपरेशन करवा दे तो फिर मैं क्यों किसी के बीच जाऊं? कृष्णा-रामा बोलकर एक कोने में हमेशा पुस्तकें पढ़ते अपने समय को काट लूंगी। अब मैं क्या करूं बोलो? आँखों की ज्योति मंद पड़ गई और हाथ कांपने लगा, पर दिमाग तो सही है ना? समय तो काटना पड़ेगा ना? रेडियो में गाना सुनती हूँ। घर में कोई आए तो उनसे बात करना शुरु कर देती हूँ। तुम ऐसे बकबक क्यों करती हो? कहकर नडेशन नाराज होता है। जो भी आते हैं तुम उनसे बेवकूफ जैसे बातें करती हो तो मुझे शर्मिंदा होना पड़ता है, वह कहता है। उसकी भी गलती नहीं। पर मैं क्या करूं बोलो…”

“क्यों बालू चले? 11:15 बजने वाला है।” कहता हुआ नडेशन घर के अंदर से आया। लूंगी और शर्ट बदलकर पेंट और टीशर्ट पहनकर बाल बना कर चेहरे पर थोड़ा पाउडर लगाकर तैयार होकर आया। “क्यों फिर अम्मा ने आपको पकड़ लिया? फिर तो बुरी तरह से बोर किया होगा आपको। अम्मा! तुम अंदर जाकर खाना खाओ, सरोजा ने तुम्हारे लिए खाना लगा दिया है।”

“अभी जा रही हूँ।”

इतने में बाहर साइकिल की घंटी की आवाज सुनाई दी।

“सर पोस्ट! कल्याणी अम्मा का मनीऑर्डर है।”

“ओ… आज 30 तारीख है ना? अम्मा तुम्हारे पेंशन का रुपया आ गया।” बोलकर नडेशन अंदर देख, “सराजो थोड़ा आकर अम्मा को बाहर तक लेकर आओगी? हमें देर हो रही है।” आवाज दी।

उसकी पत्नी मामी के कंधे को पकड़कर बाहर लेकर आई। बाहर के निकट आने के पहले ही उसकी अम्मा आंखों को नीचा कर उसके ऊपर हाथों से आड़ लगाकर, “धूप में देखा नहीं जाता” कहने लगी।

मैं और नडेशन उन लोगों को पार कर बाहर आए। तभी गली में एक खाली ऑटो को आते देख नडेशन ने “ऑटो” कहकर आवाज दी।

ऑटो आने तक कुछ देर हम खड़े रहे, तब मैंने सिर घुमा कर पढ़ने की उत्सुकता लिए मोती जैसे अक्षर की मालकिन उस बुजुर्ग महिला को देखा। जिसने बहू के सहारे से यहां आकर मनीआर्डर के लिए अंगूठा लगाया।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’