sach ammi
sach ammi

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

अली के घर बकरी ब्याई, तो वह बहुत खुश हुआ। वह पूरे मुहल्ले में दौड़-दौड़ कर यह खुशखबरी सुना आया। स्कूल के दोस्तों को भी बताया और तो और उसने मोहल्ले के लड़कों को बुलाकर उसका नामकरण भी कर दिया। सबने सोच-विचार कर उसका नाम टिल्लू रखा। टिल्लू इसलिए क्योंकि वह बकरा था।

टिल्लू धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। वह अपना नाम भी पहचानने लगा। अली जब उसे आवाज लगाता, वह कमर टेढ़ी करके मटकता हुआ भागता चला आता। सारा दिन उसके साथ ही खेलता रहता। अपनी मां के पास तो बस दूध पीने के लिए ही जाता।

सुबह-सुबह जब अली स्कूल जाने के लिए तैयार होता तो वह उसके आस-पास ही घूमने लगता। जिधर-जिधर वह जाता, उधर-उधर वह भी चल देता। जब वह बस्ता लेकर निकलता तो टिल्लू भी उसके पीछे हो लेता। अली उसे उसकी मां के पास छोड़ता, लेकिन वह फिर चला आता । तब उसे एक छोटी-सी रस्सी में बांध दिया जाता और वह मजबूर होकर अली को जाते हुए देखता रहता।

एक दिन टिल्लू ने चालाकी दिखाई। अली के तैयार होने के बाद भी अपनी मां के पास बैठा रहा। अली को ताज्जुब हुआ— “ऐं, आज यह मेरे पास क्यों नहीं आया?’ फिर सोचा, ‘शायद समझदार हो गया है इसलिए मुझे तंग नहीं किया।

जब अली टिल्लू से टाटा-बाय करके चला गया, तब टिल्लू उठकर धीरे-धीरे उसके पीछे चल पड़ा। स्कूल नजदीक आते ही वह एक झाड़ी में छुप गया। अली अंदर बस्ता रख कर प्रार्थना करने चला गया। टिल्लू इसी बीच अंदर चला गया। फिर एक-एक कर सारे बस्ते देखने लगा । अली का बस्ता मिलते ही वह उस सीट के नीचे बैठ गया ।

कुछ देर बाद बच्चे कक्षा में आने लगे। अली उसे देख कर चौंक गया। वह उसे भगा भी नहीं सकता था, क्योंकि खो जाने का डर था। उसने उसे वहीं पर बैठा रहने दिया और साथियों से कहा कि टिल्लू के बारे में ‘टीचर’ से कुछ मत कहना। लेकिन जब टीचर आए तो सारे बच्चे खड़े हो गए। टिल्लू भी ‘में-में करते हुए खड़ा हो गया। बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। टीचर ने बच्चों को शांत करवाया और टिल्लू तथा अली दोनों को कक्षा से बाहर निकालते हुए कहा, “आज तुम कक्षा में नहीं बैठ सकते। तुम्हारी यही सजा है, अगर फिर कभी बकरा या बकरी लाए तो स्कूल से नाम काट दिया जाएगा।”

अली चुपचाप घर चला आया। टिल्लू भी पीछे-पीछे आ गया। अली गुस्से में अपना बस्ता पटक कर लेट गया। टिल्लू समझ गया कि अली उससे गुस्सा है। इसलिए वह उसे मनाने लगा। कभी पैंट खींचता, कभी हाथ चाटता और कभी बालों को नोच-नोच कर उसे सहलाता। लेकिन जब फिर भी अली आंखें मूंदे लेटा रहा तो वह भी गुस्सा होकर एक कोने में बैठ गया। उसकी इस हरकत पर अली को हंसी आ गई। वह खुश होकर उसके साथ खेलने लगा।

टिल्लू अब बड़ा हो गया था। उसके काले-काले रेशम जैसे बाल सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेते। बहुत से लोग उसे खरीदना चाहते, पर बिकाऊ न होने पर दुखी मन से वापस लौट जाते।

बकरीद नजदीक आ गई थी। अली अब उदास रहने लगा था, क्योंकि इस बार टिल्लू को भी कटना था। उसने अपने अब्बू से कहा, “अब्बू इस बार दावत मत करना। टिल्लू को मैं बहुत प्यार करता हूं।”

अब्बू ने उसे समझाते हुए कहा, “बेटे बकरी-बकरों को तो कटना ही पड़ता है। इनकी जाति ही ऐसी है अगर काटेंगे नहीं, खाएंगे नहीं तो करेंगे क्या?”

अब्बू आप भी तो इसे बहुत प्यार करते हैं। कल ही तो अम्मी से कह रहे थे कि टिल्लू को अपने बच्चे की तरह पाला है।” अली ने रुआंसे होते हुए कहा था। अब्बू ने अली को अपनी गोद में बिठाते हुए कहा, “बेटा! सो तो है, इसका गम तो हमें भी होगा, लेकिन हर साल हम दावत करते हैं, अगर इस बार नहीं हुई तो बड़ी बदनामी होगी।”

अली अब्बू की गोद में बैठे-बैठे ही रो पड़ा। अम्मी जो पास बैठी चावल बीन रही थीं, पास आकर अली का हाथ पकड़कर अब्बू की गोद से उतारते हुए कहा, तुझे एक बार में समझ नहीं आता, चल जा अपने कमरे में।

अली ने दौड़कर टिल्लू को पकड़ लिया और फूट-फूट कर रोने लगा। बोला- “मैं इसे नहीं कटने दूंगा। आप चाहे जो कर लें।”

अम्मी ने इसी बात पर अली को दो-तीन चांटे लगाए। तब तक अब्बू ने बचा लिया। अम्मी बोलीं- “ये पागल हो गया है। अपने बाप की बेइज्जती कराने पर आमादा है। इससे कह दो बकरा कटेगा और जरूर कटेगा। इसीलिए इसे पाला-पोसा है।”

अली काफी देर तक अब्बू से लिपट कर रोता रहा। फिर बिना खाए-पिए ही सो गया। दूसरे दिन जब वह देर तक सोता रहा तो अब्बू और अम्मी उसे जगाने गए। वह काफी सहमा हुआ था। उसने बड़ी मासूमियत से अपने अब्बू की तरफ मुंह करके कहा, “अब्बू , क्या मुझे भी पाल-पोस कर एक दिन काट डालेंगे?”

यह सुनते ही अम्मी का दिल ‘धक् से हो गया। वह उसे उठाकर रोने लगी और सीने से लगाकर चूमते-चाटते हुए बोली, “नहीं बेटा, तुझे काटने के लिए नहीं पाल रही। तेरे टिल्लू को भी नहीं काटा जाएगा। तू जा उसके साथ खेल । अब उसे कुछ नहीं होगा।”

अली को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ। उसने कहा, “सच अम्मी!”

“हां बेटा, हां बिल्कुल सच, अब टिल्लू नहीं कटेगा।” अब्बू ने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।

अली अपने अम्मी-अब्बू को चूमते हुए बोला, “मेरे प्यारे अब्बू, मेरी प्यारी अम्मी।” और फिर चारपाई से कूदकर टिल्लू के पास पहुंच गया।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’