Hindi Story: दरवाज़े के बाईं ओर की दीवार पर लगी नेमप्लेट को दो बार अच्छी तरह पढ़ने के बाद बड़े झिझकते-से हाथों से शरद ने कुंडी खटखटाई।‘कौ..न?’ एक दहाड़ता-सा स्वर दरवाज़े से टकराकर बिखर गया। शरद की समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे। एक बार तो मन हुआ कि चुपचाप चल दे और होटल में टिक जाए पर रिक्शा जा चुका था। तभी भीतर से खड़ाऊँ की खटपट-खटपट करीब आती लगी और भड़ाक् से दरवाज़ा खुला।
धोती को तहमद की तरह लपेटे, बनियान पहने, ललाट पर लंबा-सा तिलक लगाए जो व्यक्ति सामने दिखाई दिया, वही ठाकुर ताऊजी हैं, यह समझते शरद को देर नहीं लगी। उसके चेहरे पर फैला प्रश्नवाचक भाव और अधिक गहरा होता, उसके पहले ही शरद ने बड़ी नम्रता से हाथ जोड़कर कहा, ‘नमस्ते ताऊजी।’
क्षणांश के लिए घनी भौंहों के नीचे आँखों के कटोरे कुछ सिकुड़े, ललाट की तीन सलवटें कुछ और अधिक उभर आईं। सामने रखे सामान की ओर उड़ती-सी नज़र डालकर उन्होंने फिर शरद के चेहरे की ओर देखा और अनुमान लगाते-से स्वर में बोले, ‘कौ……न, तुम पन्ना हो क्या? ’बहुत दिनों बाद अपने बचपन का नाम सुनकर शरद को हँसी आ गई। मुस्कराता-सा बोला, ‘जी हाँ।’ और इसके साथ ही सामनेवाले व्यक्ति का तिलक फैल गया, चेहरे के सारे तनाव ढीले पड़ गए और शरद ने अपनी पीठ पर एक स्नेहिल स्पर्श महसूस किया, ‘कमाल है भाई। कोई खबर नहीं, सूचना नहीं। मैं ताँगा भेज देता लेने के लिए। आओ…आओ…’
शरद ने अपना सूटकेस और बैग उठाते हुए कहा, ‘मैंने सोचा, घर तो ढूँढ ही लूँगा, सवेरे-सवेरे बेकार ही तकलीफ होगी।’ ‘वाह, इसमें तकलीफ़ की क्या बात है भला।’ फिर शरद को सामान उठाते देखकर कुछ परेशान से बोले, ‘अरे, सामान यहीं रख दो, अभी तुम्हारा कमरा ठीक हो जाएगा तो वहीं पहुँच जाएगा।’ और फिर ज़रा व्यस्त भाव से भीतर की ओर झाँककर बोले, ‘सुनती हो मोटू की माँ, देखो तो कौन आया है?’ मोटू की माँ ने सुना या नहीं, इसकी तनिक भी चिंता किए बिना शरद की पीठ पर हाथ रखकर वे उसे भीतर ले गए। शरद को पिताजी की बात याद आई, ‘आदर्श परिवार किसी को देखना हो तो ठाकुर साहब को देखे। क्या डिसिप्लिन है, क्या बच्चे हैं।’ और शरद ने एक उड़ती-सी नज़र कमरे पर डाली।
‘बैठो,’ और ताऊजी खिड़कियाँ खोलने लगे, ‘रामेश्वर मज़े में है, तुम्हारी अम्मा, बाल-बच्चे?’ शरद ‘जी, जी’ करता रहा। यह शायद घर की बैठक है, शरद ने अनुमान लगाया। दो तख्त जोड़कर मोटा-सा गद्दा बिछाकर रखा था, जिस पर हल्की-सी मैली हो आई थी चद्दर बिछी थी। तीन तरफ गोल तकिए पड़े थे। दीवारों पर सुनहरी फ्रेम में मढ़ी कुछ तसवीरें लगी थीं-गोपियों के साथ होली खेलते हुए कृष्ण, शिव-पार्वती। एक केलेंडर लटका था जिस पर कल की तारीख लगी हुई थी। दीवारों पर दो तरफ़ सिंदूर से स्वस्तिक चिह्न बने थे। सामने की दीवार के बीचों-बीच दीवाल-घड़ी टँगी हुई थी। तख्त से कुछ हटकर दोनों ओर की दीवारों के सामने दो-दो टीन की कुर्सियाँ रखी थीं, जिन पर रंग-बिरंगी फूल-कढ़ी सफेद गद्दियाँ बिछी थीं।‘तुम आए बड़ी खुशी हुई। पर आने से पहले तुम्हें ख़बर करनी चाहिए थी।’ शरद को कुर्सी पर बिठाकर स्वयं तख्त पर बैठते हुए उन्होंने कहा, ‘वैसे कोई एक महीना पहले रामेश्वर ने लिखा था कि पन्ना एक सप्ताह के लिए यहाँ आकर रहना चाहता है, सो यदि घर में दिक्कत हो तो किसी होटल-वोटल में इंतजाम करवा दीजिए।’
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