yadu-vansh ko shaap -  mahabharat story
yadu-vansh ko shaap -  mahabharat story

यह घटना उस समय की है, जब युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडव हस्तिनापुर लौटे। गांधारी और धृतराष्ट्र अपने सौ पुत्रों को खोकर शोकमग्न थे। जब पांडव उनसे मिलने आए तो गांधारी क्रोध से भर उठी। वह उन्हें शाप देने का विचार कर रही थी कि महर्षि व्यास वहां आ पहुंचे। उन्होंने गांधारी को सांत्वना दी। तत्पश्चात् अनेक प्रकार से समझा-बुझाकर पांडवों को शाप देने से रोक दिया।

यद्यपि गांधारी ने पांडवों को शाप देने का विचार त्याग दिया था, तथापि उसके मन में अब भी क्रोध था। माता को क्रोधित देख युधिष्ठिर स्वयं को धिक्कारते हुए गांधारी के चरण छूने लगे। तभी गांधारी की क्रोध भरी दृष्टि पट्टी में से होकर युधिष्ठिर के नखों पर पड़ी। इसके फलस्वरूप उनके लाल-लाल नख पल-भर में काले पड़ गए। यह देखकर शेष पांडव भयभीत हो गए और माता कहकर उसके चरणों में गिर पड़े।

इससे गांधारी का क्रोध शांत हो गया और उसने पांडवों को गले से लगा लिया। इसके बाद वह श्रीकृष्ण से बोली-“कृष्ण ! पांडव और कौरव आपसी कलह के कारण नष्ट हुए हैं, परंतु तुमने समर्थ होते हुए भी इनकी उपेक्षा क्यों कर दी? तुम दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर सुलह करवा सकते थे, लेकिन तुमने सदा कौरव-वंश के नाश के बारे में ही सोचा। इसलिए मैं शाप देती हूं कि जिस प्रकार कौरव और पांडव परस्पर कलह से नष्ट हुए, उसी प्रकार तुम और तुम्हारा वंश भी परस्पर कलह से नष्ट हो जाएगा।”

श्रीकृष्ण जानते थे कि गांधारी का यह शाप भविष्य में घटित होने वाली घटना का आरंभ है। अतः उन्होंने उस शाप को हंसते हुए स्वीकार कर लिया।