kusangati ka kufal, hitopadesh ki kahani
kusangati ka kufal, hitopadesh ki kahani

Hitopadesh ki Kahani : उज्जयिनी के मार्ग में एक पाकड़ का वृक्ष था। वहां पर एक हंस और एक कौआ, दोनों साथ-साथ रहते थे। ग्रीष्म ऋतु की बात है कि एक दिन एक पथिक दोपहर के समय थका मांदा वहां पर आया और छाया देखकर वहां पर अपना धनुष एक ओर को रखकर सो गया ।

कुछ ही समय बाद उसके मुख पर से छाया हट गई। उसके मुख पर धूप पड़ने लगी । उस वृक्ष पर रहने वाले हंस ने उसको देखा तो उसको उस पथिक पर दया आ गई। हंस ने उसके मुख के ऊपर अपने डैने फैला दिये। इस प्रकार उसको छाया मिल गई।

पथिक गहन निद्रा में सोया हुआ था । उस अवस्था में उसका मुख खुल गया। कौवे से यह देखा न गया । कौआ पराया सुख नहीं देखता । उसने उसके मुख पर बीट कर दी और स्वयं उड़कर भाग गया। हंस को उसकी करतूत का पता भी नहीं चला।

बीट पड़ते ही पथिक हकबका कर उठ गया। उसने देखा कि उसके ऊपर हंस अपने पंख फैलाये बैठा है। उसने यही समझा कि यह बीट हंस ने ही की है। बस फिर क्या था, आव देखा न ताव, उसने अपना धनुष उठाया और हंस पर तीर चला दिया। हंस का वहीं काम तमाम हो गया।

अब आपको बटेर की कथा भी सुनाता हूं। सुनिये-