Hitopadesh ki Kahani : राजपुत्रों को लेकर पंडित विष्णुशर्मा प्रासाद के ऊपर सुख से बैठकर भूमिका के रूप में उनसे कहने लगे, “कुमारो ! बुद्धिमानों का समय काव्यशास्त्र का अध्ययन करने में जाया करता है किंतु मूर्खों का समय दुख में, निद्रा में या फिर लड़ाई झगड़े में व्यतीत होता है।
“इसलिए मैं आप लोगों के मनोरंजन के लिए कौआ और कछुए आदि की विचित्र कहानी सुना रहा हूँ ।”
राजकुमारों ने एक स्वर से कहा, “भगवन! कहिए ।”
विष्णुशर्मा ने कहा, “इस समय मैं प्रथम आपको मित्र लाभ का प्रकरण सुना रहा हूँ । उसके प्रथम श्लोक में कहा है कि साधना रहित और धन से हीन, किंतु बुद्धिमान और परस्पर प्रगाढ़ मित्रता वाले जन उन कौए कछुए और मृग की भाँति तुरंत अपना काम बना लेते हैं । “
राजकुमारों ने प्रश्न किया, “यह कैसे?”
विष्णुशर्मा ने कहना आरंभ कियाः
गोदावरी नदी के तट पर एक बहुत बड़ा सेमर का वृक्ष था। उस वृक्ष पर विविध दिशाओं से पक्षी आकर रात्रि में निवास किया करते थे। एक दिन की बात है कि रात बीत चली थी, प्रभात होने लगा था, उस समय लघुपतनक नाम का कौआ, जो उस वृक्ष पर ही रहता था, जागा। उसने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई तो देखता क्या है कि यमराज के समान भयानक रूप वाला एक बहेलिया चला आ रहा है।
उस बहेलिये को देख कर कौआ सोचने लगा कि आज तो प्रातःकाल उठते ही अपशकुन हो गया है। न जाने इस का क्या कुपरिणाम होगा। ऐसा मन में सोचकर वह कौआ भी व्याकुलतापूर्वक उस बहेलिये के पीछे-पीछे चल पड़ा।
मूर्खों को प्रतिदिन हजारों शोक के और सैकड़ों भय के स्थान दिखाई दे जाते हैं, किन्तु पंडितों को नहीं। क्योंकि पंडितों को तो न कहीं भय होता है और न शोक ।
और विषयी पुरुषों को इतना तो अवश्य करना चाहिए कि प्रातः काल उठकर वे यह सोचें कि महान् भय सामने उपस्थित है। मरण, व्याधि और शोक इनमें से न जाने आज अपने ऊपर क्या आ पड़ेगा ।
बहेलिये का पीछा करते हुए कौए ने देखा कि उसने एक स्थान पर चावल बिखेर दिये हैं और उनके उपर अपना जाल भी बिछा दिया है। किन्तु बहेलिया स्वयं दूर जाकर बैठ गया है ।
उसी समय कबूतरों का राजा चित्रग्रीव अपने परिवार सहित आकाश मार्ग से उड़ता हुआ उधर आया तो उसने उन चावलकणों को वहां पर बिखरा देखा। कबूतरों ने भी उन चावलों को देखा तो उनके मुख में पानी भरने लगा। यह अनुभव कर चित्रग्रीव ने उनसे कहा, “तुम लोग इन चावलों पर ललचा रहे हो । किन्तु सोचो तो सही कि इस बीहड़ वन में ये चावल किस प्रकार आ सकते हैं । निश्चय ही दाल में कुछ काला है। मुझे इसमें किसी प्रकार का कल्याण दिखाई नहीं देता । यदि हम इन चावलों के लोभ में पड़ गये तो हमारी वही दशा होगी जैसी कि कंकणों के लोभ में पड़कर एक पथिक दुस्तर दल- दल में फंस गया और अन्त में अवसर पाकर बूढ़े बाघ ने उसको मार ही डाला । “
कबूतरों ने पूछा, “वह किस प्रकार ?”
चित्रग्रीव बोला, “सुनो, सुनाता हूं।”
