प्राचीन काल में दक्षिण भारत में महिलारोप्य नाम का एक नगर था । उसके राजा थे अमरशक्ति । अमरशक्ति बड़े योग्य, बुद्धिमान और प्रतापी राजा थे । उनके राज्य में प्रजा बड़े सुख से रहती थी और हर वक्त राजा का गुणगान करती थी । राजा अमरशक्ति भी हर क्षण प्रजा का खयाल रखते थे । राज्य का कोई भी व्यक्ति अपना दुख-दर्द या कोई भी समस्या लेकर राजदरबार में आ सकता था । राजा अमरशक्ति सबकी बात ध्यान से सुनते और सबको न्याय दिलाते थे । इस प्रकार महिलारोप्य राज्य का धन- धन्य और समृद्धि बढ़ती जाती थी । खुद राजा अमरशक्ति की कीर्ति भी तेजी से चारों दिशाओं में फैल रही थी । पर ऐसे प्रतापी राजा अमरशक्ति भी बड़े दुखी थे । उनके दुख का कारण थे उनके बेटे । राजा अमरशक्ति के तीन बेटे थे-बहुशक्ति, उग्रशक्ति तथा अनंतशक्ति । पर ये तीनों ही राजकुमार एकदम मूर्ख, अविवेकी और संस्कारविहीन थे । उन्हें देखकर राजा का हृदय दुख से भर उठता था । राजा ने राजकुमारों को सब प्रकार का ज्ञान तथा शिक्षा देने की बहुत कोशिश की, पर तीनों ही राजकुमार इतने मूढ़ और आलसी थे कि वे कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाए । इससे राजा के हृदय पर दुख का भार बढ़ता ही जाता था ।
एक दिन राजा अमरशक्ति ने मंत्री के आगे अपनी चिंता प्रकट की । उन्होंने कहा, “मंत्री जी, मुझे अपने जीवन में हर तरह का सुख और वैभव प्राप्त हुआ । पर मेरा हृदय अंदर ही अंदर रोता है । इसका कारण हैं मेरे तीनों बेटे जो एकदम मूर्ख और अविवेकी हैं । ऐसे पुत्रों के होने का क्या लाभ, जो माता-पिता की कीर्ति को बढ़ाने की बजाय उनकी छाती पर दुख का भार बनकर बैठे हैं । मैं यह सोचकर हर पल दुखी रहता हूँ कि मेरे ये अयोग्य बेटे क्या मेरे बाद राजकाज सँभाल सकेंगे? मुझे उन पर जरा भी विश्वास नहीं है । और इसलिए मैं इतना चिंतित और अशांत हूँ । पता नहीं मेरे इस दुख का कोई इलाज है भी या नहीं? या मैं यही दुख लेकर इस संसार से जाऊँगा!”

राजा अमरशक्ति का मंत्री बड़ा योग्य और समझदार था । राजा की बात सुनकर उसने कहा, “महाराज, यह बात आपकी ठीक है कि अयोग्य संतान माता-पिता के लिए दुख-भार और चिंता का कारण बन जाते है । पर ऐसा तो नहीं कि इन राजकुमारों को उचित शिक्षा देकर योग्य न बनाया जा सके । हमारे राज्य में एक से बढ़कर एक विद्वान हैं । मेरा सुझाव है कि हम उन्हें दरबार में आमंत्रित करें, फिर उनसे समस्या का समाधान पूछें । वे जरूर कोई न कोई रास्ता निकालेंगे । “मंत्री की इस बात से राजा अमरशक्ति को थोड़ा चैन मिला । उन्होंने अपने आपको धीरज बंधाया कि शायद इसी तरह कोई न कोई रास्ता निकल आएगा । उनके अयोग्य बेटे भी शिक्षा प्राप्त कर गुणवान, नीतिज्ञ और हर तरह से समझदार बन सकते हैं ।”
अगले ही दिन मंत्री ने राज्य के पाँच सौ श्रेष्ठ विद्वानों को आमंत्रित किया । वे आकर अपने-अपने आसनों पर विराजे । तब राजा अमरशक्ति ने उनका स्वागत करते हुए कहा, “आपको एक आवश्यक कार्य के लिए मैंने कष्ट दिया है । मैं बहुत अधिक चिंता में हूँ । इसलिए कि मेरे तीनों ही बेटे अयोग्य तथा संस्कारविहीन हैं । मैं यह सोचकर दुखी रहता हूँ कि अयोग्य और गुणहीन बेटों से तो पुत्रहीन होना कहीं ज्यादा अच्छा है । आप कृपया कोई ऐसा तरीका बताएँ जिससे इन अयोग्य राजकुमारों को उचित शिक्षा देकर योग्य और समझदार बनाया जा सके । अगर आपमें से कोई इन राजकुमारों को शिक्षा देने का जिम्मा उठा ले, तो मुझे बड़ी खुशी होगी ।”
सुनकर एक क्षण के लिए वहाँ सन्नाटा सा छा गया । इसलिए कि उन राजकुमारों के आलस्य, छूता और ढिठाई के बारे में सभी जानते थे । आखिर एक विद्वान आचार्य ने कुछ देर सोच -विचार के बाद कहा, ‘’ महाराज, इस दुनिया में असंख्य ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान भरा पड़ा है । उनके अध्ययन से मनुष्य का हृदय अलोकित हो उठता है । पर राजकुमारों ने अपने अविवेक और आलस्य से वह समय व्यर्थ ही गँवा दिया, जब उन्हें पूरी लगन और गंभीरता से शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए थी । अब थोड़े समय में सभी ग्रंथों का अध्ययन करना तो असंभव कार्य है । इसलिए मेरा सुझाव है कि राजकुमारों को इन ग्रंथों के अध्ययन की बजाय व्यवहार-ज्ञान की शिक्षा दी जाए । इससे ये संसार के लोगों के स्वभाव, व्यवहार और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह जान लेंगे । तब इन्हें जीवन में किसी संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा ।”

सभा में उपस्थित सभी विद्वानों ने एक-एक करके यही बात दोहरा दी । पर किसी ने राजकुमारों को शिक्षा देने में रुचि नहीं दिखाई । इससे राजा अमरशक्ति का दुख और बढ़ गया । उन्हें लगा, अब तो ये राजकुमार जीवन भर ऐसे ही अयोग्य बने रहेंगे और महिलारोप्य राज्य का भविष्य भी अंधकारमय ही रहेगा । पर तभी उन विद्वानों के बीच से बिजली की कौंध की तरह तेजस्वी एक वयोवृद्ध विद्वान उठे । उनका नाम था विष्णुशर्मा । उन्होंने कहा, “महाराज, संसार में कुछ भी असंभव नहीं है । ये तीनों राजकुमार निश्चय ही शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे । अगर आप अनुमति दें तो मैं इन्हें छह महीने में जीवन के हर क्षेत्र में कुशल, योग्य और नीति-ज्ञान में पारंगत बना दूंगा । वे शिक्षित होकर अपना कर्तव्य-पालन और राजकाज चलाने में भी पूरी तरह योग्य हो जाएंगे । “
सुनते ही राजा ने अमरशक्ति को मानो नया जीवन मिल गया । वे भावना में बहते हुए बोले, “हे आचार्य, अगर आपने तीनों राजकुमारों को शिक्षा देकर योग्य बना दिया तो मैं आपको सौ गाँव उपहार में दूँगा ।”
विष्णुशर्मा हंसे । बोले, “महाराज, मैं सौ गांवों को लेकर क्या करूँगा? इस समय जो मेरी अवस्था है, उसमें मुझे किसी तरह की कोई लालसा नहीं रह गई है । पर हाँ मैं राजकुमारों को हर प्रकार की शिक्षा देकर योग्य बनाऊंगा। क्योंकि यह मेरा कर्त्तव्य है । मैं इस सभा में घोषणा करता हूँ कि अगर ये राजकुमार छह महीने में जीवन के हर क्षेत्र में योग्य विवेकी और प्रतिभासंपन्न न हो जाएँ, तो आप जो भी दंड मुझे देना चाहें मुझे स्वीकार्य है ।”
सुनकर वहाँ उपस्थित सभी विद्वान चकित रह गए । राजा अमरशक्ति ने विष्णुशर्मा के पास जाकर क्षमा माँगते हुए कहा, “हे आचार्य, मैंने सौ गाँव उपहार में देने की बात कहकर आपकी शिक्षा का मोल लगाने की धृष्टता की । इसके लिए मैं लज्जित हूँ । आप कृपया मुझे क्षमा कर दें । मैं समझ गया हूँ कि आप महान और आदर्श शिक्षक हैं । जिस तरह सूर्य छोटे-बड़े का फर्क न करके सभी को अपना प्रकाश देता है, ऐसे ही आप भी सभी के हृदयों में ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं । आप धन्य हैं । मैं अपने तीनों बेटों को आपको सौंपता हूँ । आप उन्हें अपने ढंग से शिक्षित करें तो मुझे बड़ी खुशी होगी ।”
और सचमुच विष्णुशर्मा ने अपने निराले ढंग से तीनों राजकुमारों को शिक्षा देनी शुरू की । उनका ढंग बड़ा अद्भुत था । वे राजकुमारों को भारी-भरकम उपदेश देने की बजाय मजेदार कहानियाँ सुनाया करते थे । ये कहानियाँ ज्यादातर पशु-पक्षियों से जुड़ी हुई बड़ी अनोखी और जानदार कहानियाँ थीं ।
राजकुमार बड़ी रुचि से इन कहानियों को सुनते थे और इन कहानियों में खो जाते थे । आचार्य विष्णुशर्मा ने इन कहानियों में चुपके–चुपके ज्ञान के जो दुर्लभ मोती पिरो दिए थे, वे भी राजकुमारों के अंतःकरण को निर्मल और प्रकाशित करने लगे थे । उनका सारा आलस्य और छूता खत्म हो गई अविवेक और उजड़ता दूर हो गई । वे विनीत और कर्तव्यपरायण हो गए । साथ ही उन्हें जीवन और संसार के लोगों के व्यवहार तथा अच्छे और बुरे लोगों की समझ भी इन कहानियों के जरिए हासिल हुई । किसी बड़े से बड़े दुख और संकट का मुकाबला किस तरह धैर्य से करें? शत्रु के छल-कपट से कैसे बचें? किन्हें अपना मित्र बनाएँ, किन्हें नहीं? और अच्छे राजा के गुण क्या हों? धीरे-धीरे ये बातें भी पशु-पक्षियों के जरिए उन राजकुमारों ने सीखी । अब वे बड़ी रुचि से जीवन की गहरी और गूढ़ बातों को भी समझकर, उन पर गहराई से विचार करने लगे । और यों इन छोटी-छोटी रसपूर्ण कहानियों के जरिए वे योग्य, समझदार तथा राजकाज में निपुण हो गए ।
राजा अमरशक्ति और महिलारोप्य राज्य की प्रजा तो विष्णुशर्मा के इस चमत्कार से गदगद थी । आसपास के राज्यों में भी जिसने आचार्य विष्णुशर्मा के बारे में सुना, वह चकित हो उठा । वाकई विष्णुशर्मा की रोचक कहानियों के जरिए सीख देने का यह तरीका एकदम जादू जैसा प्रभावी और असरदार था ।
आचार्य विष्णुशर्मा ने राजकुमारों को ज्ञान देने के लिए जिन रोचक और अद्भुत कहानियों को रचा था, उनका संचयन किया गया और वही पंचतंत्र कहलाया । एक ऐसा अमर ग्रंथ जिसका रस-आनंद सारी दुनिया में फैला और लोग आज भी बड़े आदर से विष्णुशर्मा का नाम लेते हैं, जिन्होंने कहानियों के जरिए ज्ञान देने का अनूठा और अचूक तरीका खोज निकाला । कोई आश्चर्य नहीं कि आज सारी दुनिया इस अनोखे ग्रंथ और उसके रचयिता विष्णुशर्मा को बड़े आदर और सम्मान से याद करते हुए सिर झुकाती है । जैसे-जैसे समय का रथ आगे बढ़ रहा है, पंचतंत्र की इन अनोखी कहानियों का प्रकाश भी और-और निखरता ही जाता है ।