Krishna Katha: पाही माम्-पाही माम् सृष्टी सारी पुकारती
कब आओगे जगत के पालनहारी गुहारती
मेघ गरजें,बिजुरी चमके
मूसलाधार वर्षा बरसें
सायं-सीयं पवन चले
कंस का अत्याचार चरम पर पहूँचें
रात कारी-घनघोर मतवाली
कारागा़र के द्वार पर पहरा देत प्रहरी
वासुदेव व्याकुल…. दर्द से कराहती माँ”देवकी,
असुर के अंत और जगत के कल्याण की घड़ी फिर आई।
देव गण आकाश से पुष्प वृष्टि थें”कर रहें
मनमोहन जब अवतरित हुए”
शुभ घड़ी थी वो भाद्र अष्टमी “
रोहिणी नक्षत्र में जन्म लियो
जगत के पालन हारी
मूर्छित भए सब प्रहरी
खुल गए सब द्वार तब ही
लियो लाल को अपने
चल दिए वासुदेव गोकुल राह को
राह में यमुना नदी उफनती
हा हा कार करती डूब गए वसुदेव तब ही
जब तक ना चरण यमुना छू सकी श्री कृष्ण की .!
छूकर चरण स्वामी की “घट गई और घटती गई “
यमुना महारानी”शेषनाग छत्र बन गए कान्हा के
बारिश की एक बूंद ना पहुंच सकीं “
पहुंचकर गोकुल चुपके से नंद बाबा के घर गए
नंद बाबा राह देख रहे अपने मित्र वसुदेव की
दोनों ने मिलकर किया तब संतान अदला-बदली
यशोदा के गर्भ से जन्मी थी नवदुर्गा “मां काली
वचन दिया एक दूजे को दोनों मित्र ने आपस में
यह राज राज ही रहेगा मित्र हम दोनों के बीच में
सकुशल लौट आए वासुदेव लेकर कन्या को गोद में
जब भनक पड़ी तब जग गए प्रहरी
तब हा-हा कार मचा मथुरा में
कंस के कानों तक बात पहुंची
देवकी के आठवें गर्भ से जन्म लिए कन्या ने
छटपटा गया कंस बलशाली
भविष्यवाणी कैसे असत्य हुई !
छल किया फिर विष्णु ने साथ मेरे
कैसे यह घटना घटी…..??
लेकर हाथों में उस कन्या को
कंस ने दे मारा दीवार पर
छूट कर हाथों से कंस के
नवदुर्गा माँ”
कंस को दी चेतावनी
दुष्ट कंस तेरा काल आ गया है संसार में
तेरी मृत्यु निश्चित है देवकी के लाल से।।