khubi par ghamand mat karo
khubi par ghamand mat karo

एक बड़ी सुंदर तितली थी। वह जब इधर से उधर उड़ती तो लोग उसकी सुंदरता को सराहते और बच्चे उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ते। उसे अपने रूप पर अहंकार हो गया। एक दिन वह एक हाथी के ऊपर आ बैठी और उसके विशाल डीलडौल का मजाक उड़ाने लगी। हाथी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अपने घमंड के आगे उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था।

उसने हाथी से कहा कि तुम्हारा डीलडौल इतना डरावना है कि बच्चे तुमसे डरते हैं। जबकि मुझे देखकर वे मुझे पकड़ने के लिए दौड़ते हैं। मेरे पास कितने रंग हैं, जबकि तुम्हारा एक ही रंग है, वो भी कितना भद्दा कोई एक खूबी तो बताओ, जो तुममें हो। हाथी को बहुत गुस्सा आया, लेकिन वह चुप रहा। तभी जोरों की हवा चलने लगी। इतनी तेज कि तितली अपना संतुलन न बनाए रख सकी और हवा के वेग में उड़ गई। हाथी बोला कि अब तुम्हें पता चल गया होगा कि मेरी क्या खूबी है।

सारः हममें से कोई भी संपूर्ण नहीं है, इसलिए किसी भी बात पर- अहंकार नहीं करना चाहिए।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)