Hindi Kahnai: “घर के बाहर बने हुए बगीचे में झूले पर बैठकर पेड़ – पौधों को निहारते हुए श्री राजीव अग्रवाल जी स्वयं से किसी गहरे विषय पर परिचर्चा करने में इतने व्यस्त हो चुके थे कि उनको आसपास के वातावरण में हो रही किसी भी घटना का कोई भी ध्यान नहीं था। श्री राजीव अग्रवाल जी प्रतिदिन सुबह और शाम को बगीचे में आकर झूले पर बैठकर स्वयं से ही बातें किया करते थे मगर आज वह कुछ ज्यादा गंभीर नज़र आ रहे थे “। कुछ देर बाद बगीचे में श्री विकास शर्मा जी आते हैं और श्री राजीव अग्रवाल जी को व्यस्त देखकर उनके पास पहुंचकर कहते हैं – ” कैसे हो अग्रवाल जी क्या हुआ आज कुछ गंभीर नज़र आ रहे हैं “। राजीव जी कहते हैं – ” शर्मा जी हमारा यह जीवन कितना कुछ कहता है यह जीवन एक नाटक होता है जिसमें हम सिर्फ एक कलाकार की भूमिका निभाते हैं हमारा यह जीवन हमारे ” कर्मों की विरासत ” होता है जिसमें हमारे अच्छे कर्मों और बुरे कर्मों का हिसाब होता है। इसलिए हमें ईश्वर के प्रति अपनी ” कृतज्ञता ” व्यक्त करते रहना चाहिए। अपनी इस भावना के द्वारा हम अपने कर्मों को बेहतर कर सकते हैं “। शर्मा जी इन सभी बातों को सुनकर कहते हैं – ” यह आपने सही बताया है अग्रवाल जी हमारे कर्मों के द्वारा ही हमारा जीवन अच्छा या बुरा बनता है। जीवन एक रेलगाड़ी है जिसमें बहुत लोग आते हैं कुछ खास बनते हैं कुछ सिर्फ औपचारिकता होते हैं हमारा व्यवहार इनके प्रति वास्तविकता में हमारा दर्पण होता है “। मगर आज के आधुनिकरण में यह सिर्फ सुविचार है और कुछ नहीं।
अग्रवाल जी ने पिछले पच्चीस वर्षों से सरकारी विद्यालय में प्राचार्य के रूप में अपनी सेवा देकर राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाकर समाज को उज्ज्वल भविष्य दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने बच्चों को नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए अच्छे कर्मों का पालन करने और उनके महत्व को बताने के लिए स्वयं भी उनका अनुसरण किया है। मगर समाज की आधुनिकरण की प्रक्रिया ने यह सभी नियमों और नैतिकता , संस्कार और ” कृतज्ञता ” को बहुत पीछे छोड़कर स्वार्थ और लालच को आगे लाकर खड़ा कर दिया है। यह हमारा जीवन ” कर्मों की विरासत ” है। यह अब सिर्फ एक सुविचार बनकर रह गया है। बच्चों को शिक्षा देने वाले अग्रवाल जी आज उन्हीं बच्चों के सामने स्वयं को एक विद्यार्थी के रूप में देखने लगे हैं। अग्रवाल जी अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं और अब वरिष्ठ नागरिक पेंशन लेने के लिए विभाग और बैंक के दरवाजे पर दस्तक देते रहते हैं। उनके द्वारा शिक्षित बच्चों ने उनकी शिक्षाओं का अब मज़ाक बनाना शुरू कर दिया है। रिश्वत की मांग अब अग्रवाल जी से सामने से होती है उन्हीं बच्चों के द्वारा जिन्हें कभी उन्होंने रिश्वत और भ्रष्टाचार से दूर रहने का पाठ पढ़ाया था। यह बात अग्रवाल जी किसी से कहने में डर रहे थे क्योंकि यह समाज उन्हें यह सब एक आम बात और सरकारी प्रक्रिया का हिस्सा कहकर स्वीकार करने की सलाह देने लगेगा।
मगर अग्रवाल जी की आत्मा इसे स्वीकार करने को मना कर रही थी। एक शिक्षक समाज का निर्माता होता है। अगर शिक्षक ही ऐसी चीजों को स्वीकार करने लगेगा तो फिर वह बच्चों को क्या शिक्षा देगा और फिर कैसे समाज का निर्माण करेगा। इन सब बातों को अग्रवाल जी सोचकर दुखी होने लगते हैं। अभी दो वर्षों पहले ही श्री राजीव अग्रवाल जी अपनी धर्मपत्नी शारदा अग्रवाल जी के साथ इस नए शहर में रहने आए हैं। इनका बेटा राहुल सरकारी इंजीनियर है और दूसरे शहर में नौकरी करता है और बेटी खुशी डॉक्टर है जो सरकारी हॉस्पिटल में सर्जन है। अग्रवाल जी ने अपने बच्चों को इन सभी बातों से दूर ही रखा है क्योंकि वह अपने बच्चों का समय खराब नहीं करना चाहते। शारदा जी ने अग्रवाल जी से कहा – “हमें अपने बच्चों की सहायता लेनी चाहिए आखिर वह हमारे ही बच्चे हैं वह हमारी बातों को अवश्य समझेंगे “। मगर अग्रवाल जी कहते हैं – ” आपको लगता है कि मैंने उनसे बात करने की कोशिश नहीं की मगर मेरी आत्मा बहुत दुखी है अपनी शिक्षा को हारते हुए देखकर और ” कर्मों की विरासत ” और ” कृतज्ञता ” के बीच में स्वयं को अकेला खड़ा हुआ देखकर। “। कुछ दिनों बाद उनका बेटा राहुल उनसे मिलने के लिए घर आ जाता है और शारदा जी उसे सभी बातें बताना चाहती हैं मगर अग्रवाल जी को यह सब अच्छा नहीं लगता है और वह नाराज़ होने लगते हैं। राहुल अपनी छोटी बहन खुशी को फोन करता है और उसे घर आने के लिए बोलकर पिताजी को समझाने का प्रयास करता है।
राहुल कहता है – ” पिताजी हमारा यह जीवन ” कर्मों की विरासत ” है और आप अपने बच्चों को अपनी शिक्षा , त्याग और समर्पण के लिए ” कृतज्ञता ” का अनुभव करने से दूर क्यों रख रहे हैं। कुछ दिनों बाद खुशी भी आ जाती है और वह भी अपने पिताजी को समझाने की कोशिश करती है मगर वह भी असफल हो जाती है। सुबह जब अग्रवाल जी बगीचे में झूले पर बैठे हुए थे तभी वह एक माली को फूलों के पौधों को लगाते हुए देख रहे थे अग्रवाल ही उस माली के पास पहुंच जाते हैं और उससे पूछते हैं – ” आप यह फूलों के पौधों को इस भीषण गर्मी में क्यों लगा रहे हैं आपको इन्हें सावन के मौसम में लगाने चाहिए इस भीषण गर्मी में यह अपना अस्तित्व कैसे बचाएंगे। आपकी पूरी मेहनत खराब हो जाएगी ” ? माली कहता है – ” जी इस भीषण गर्मी में इन पौधों को मैं दूसरों के लिए लगा रहा हूं। जिससे सभी सुबह और शाम अपने घर से निकलकर इस बगीचे में आकर प्रकृति के साथ बातें कर सकें और प्रकृति को इस भीषण गर्मी के लिए दोषी समझने के स्थान पर उसके लिए ” कृतज्ञता ” का अनुभव कर सकें इसमें बहुत शक्ति होती है वही शक्ति और ” कृतज्ञता ” इन पौधों को अस्तित्व में बनाए रखेगी। यह जीवन हमारे ” कर्मों की विरासत ” है और हमें यह याद रखना चाहिए ” हवा का काम चलना है और दिए का काम जलना है इसलिए हमें हमारा काम करते रहना चाहिए मतलब अच्छे कर्म और संस्कार देते रहना चाहिए।
माली की बातों को सुनकर अग्रवाल जी आश्चर्यचकित हो जाते हैं और फिर कुछ समय बाद अपने घर की ओर चल देते हैं। अग्रवाल जी रास्ते में स्वयं ही विचार करते रहते हैं हमारा यह जीवन हमारे ही ” कर्मों की विरासत ” होता है और हमें इस प्रकृति की सुंदरता के प्रति ” कृतज्ञता ” की भावना को प्राथमिकता देनी चाहिए। घर आकर अग्रवाल जी अपनी धर्मपत्नी शारदा जी को बुलाते हैं और कहते हैं – “आपने सही कहा था और हमें अपने बच्चों को सभी बातों से अवगत करा देना चाहिए “। अग्रवाल जी अपने बेटे राहुल और अपनी बेटी खुशी को बुलाते हैं और उन्हें सभी बातों से अवगत करा देते हैं। राहुल कहता है – ” पिताजी आपने हमें यह सब बातें बताकर सही किया है “। खुशी कहती है – ” पिताजी हमें खुशी है कि आपने हमें अपनी परेशानियों के बारे में बताया अब आप चिंता नहीं करें आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा और वह भी पूरी नैतिकता के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए “। अग्रवाल जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आने लगती है। घर के सभी सदस्य यह देखकर खुश होने लगते हैं। राहुल अपने दोस्तों को फोन करके पूछता है कि इस प्रक्रिया का सही रूप क्या है और यह प्रक्रिया कितने दिनों में संपूर्ण हो जाती है। खुशी अपने पिताजी की स्वास्थ्य संबंधित दस्तावेजों को एकत्रित करने लग जाती है जिससे सभी दस्तावेजों को व्यवस्थित करके जमा करा सकें।
कुछ दिनों के बाद अग्रवाल जी अपने बच्चों के साथ में विभाग में जाते हैं और अपनी बात वरिष्ठ अधिकारी को बताते हैं। विभाग में नए वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति होती हैं जो अग्रवाल जी को पहचान लेते हैं सभी दस्तावेजों का आंकलन करके वरिष्ठ अधिकारी अग्रवाल जी से कहते हैं – ” अग्रवाल जी आप चिंता नहीं करें आपके सभी दस्तावेजों का आंकलन कर लिया है और आपके सभी दस्तावेज बिल्कुल सही हैं आपने शायद पहचाना नहीं है हम आपके द्वारा शिक्षित विद्यार्थी हैं। हमें यह समझ नहीं आ रहा कि आपकी फाइल आगे क्यों नही गई ” अग्रवाल जी कहते हैं – ” सही समय का इंतजार हो रहा था क्योंकि सभी कार्यों का वास्तविकता में होना समय ही निर्धारित करता है। हमारा यह जीवन हमारे ही ” कर्मों की विरासत ” होता है और हमें सभी के प्रति अपनी ” कृतज्ञता ” की भावना रखनी चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए ” हवा का काम चलना है और दिए का काम जलना है इसलिए हमें हमारा काम करते रहना चाहिए मतलब अच्छे कर्म और संस्कार देते रहना चाहिए “। वरिष्ठ अधिकारी अग्रवाल जी को एक पत्र लिखकर देते हैं और कहते हैं – ” अग्रवाल जी यह पत्र आप बैंक के मैनेजर को दीजिएगा। आपको कल से वरिष्ठ नागरिक पेंशन मिलना शुरू हो जाएगा “।
