इस संसार में अधिकांश व्यक्ति पूरे जीवन लोभ लालच में पड़े रहते हैं। इसी कारण उनका संपूर्ण जीवन यूं ही व्यतीत हो जाता है और वे कभी भी संतुष्ट नहीं होते। वे हमेशा कहते रहते हैं-हमें यह नहीं मिला, वह नहीं मिला। संसार के हर व्यक्ति में चाहे वह अमीर हो या गरीब, साधु संन्यासी हो या वैरागी। सब लोगों में कुछ न कुछ लोभ-लालच समाया हुआ है।
वे सब अपने कर्मों का परिणाम चाहते हैं। उन्हें इच्छा रहती है कि जल्दी से जल्दी उन्हें उनके कर्मों का प्रतिफल प्राप्त हो जाए। जो लोग वास्तविक सुख और आनंद चाहते हैं कि वे कभी परिणाम की इच्छा नहीं रखते। वे तो अपने कर्मों को करते जाते हैं। फल कब मिलेगा और कैसा मिलेगा? इसकी प्रतीक्षा नहीं करते।
अर्जुन को शिक्षा-संदेश देते हुए भगवान कृष्ण ने कहा था, ‘वत्स तुम तो अपने कर्मों का संपादन करते रहो। यह इच्छा बिल्कुल नहीं करो, इसका क्या प्रतिफल मिलेगा। ‘अर्जुन अपने कर्मों को करते रहे उन्हें उसका प्रतिफल अच्छे रूप में ही प्राप्त हुआ। हमारे बहुत से क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद, सुभाषचन्द्र, भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव, राजगुरु आदि भी निरंतर अपने कर्मों में संलग्न रहे। वे तो भारत की स्वाधीनता के लिए लड़ते रहे। उन्होंने कभी अपने लिए कुछ भी अपेक्षा नहीं की।
उन्हें यह भी चिंता न थी उनके कार्यों का उन्हें क्या प्रतिफल मिलेगा। वास्तव में यदि हम सुखी जीवन जीना चाहते हैं तो हमें अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त करनी होगी। हमारी इच्छाएं ही हमें लोभ-लालच का पाठ पढ़ाती हैं। अमीर व्यक्ति अपनी इच्छाओं के कारण कुछ ज्यादा ही परेशान रहते हैं क्योंकि उन्हें इच्छाओं ने अपना दास बना लिया होता है। यह तो निर्विवाद रूप से सत्य है जो व्यक्ति लोभ और लालच से जुड़ा उसके मन में असीमित इच्छाएं जन्म लेंगी। ये इच्छाएं ही उसके सुखी जीवन जीने में बाधक बन जाती हैं।
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