Newton ka saralata
Newton ka saralata

लन्दन के वेस्ट मिनिस्टर के विशाल मन्दिर में सर आइजक न्यूटन की समाधि है। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष उनकी समाधि के पास जाकर कुछ समय के लिए रूक जाते हैं, क्योंकि न्यूटन महान वैज्ञानिक एवं चिन्तनशील व्यक्ति थे। न्यूटन ने केवल 22 वर्ष की अवस्था में ही बीज गणित के द्विपद सिद्धांत का अविष्कार किया। उन्होंने महान वैज्ञानिक एवं ज्योतिष शास्त्री ‘कैपलर’ के ग्रहों की गति का अध्ययन कर गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया।

सूर्य की किरणों में सात रंग क्यों हैं? सूर्य-चन्द्र की सापेक्ष गति के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा क्यों होता है? कोई वस्तु जब ठंडी होती है तो किन नियमों का पालन करती है? ऐसी ही ढेर सारी समस्याओं को न्यूटन ने सुलझाया था। आज न्यूटन की विद्या-बुद्धि पर सारे इग्लैंड को गर्व है। पर स्वयं न्यूटन को अपनी विद्या-बुद्धि पर कोई गर्व या अहंकार नहीं था।

सर आइजक न्यूटन से एक बार एक व्यक्ति मिला। उसने उनकी काफी प्रशंसा की। न्यूटन ने बड़े ही शांत स्वर में उत्तर दिया- ‘अरे, आप कहाँ की बातें कर रहे हैं? मैं तो उस शिशु के समान हूँ, जो सत्य रूपी विशाल समुद्र के किनारे बैठा हुआ केवल कंकड़ों को ही चुनता है।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)