Hindi Kahaniya: मैं आपके साथ अपना एक किस्सा शेयर करने वाली हूं बात आज से 23 साल पुरानी हैं। मेरे बड़े भैया की शादी हुई थी फरीदाबाद में मैं अपनी भाभी को लेने के लिए पग फेरे में उसके साथ गई तब मैं कक्षा 12 में पढ़ती थी। जब हम भाभी को लेकर घर लौट रहे थे तो सब हमें शगुन के तौर पर सभी कुछ ना कुछ पैसे दे रहे हैं।
सबसे पैसे लेते हुए मुझे थोड़ी सी हिचक हो रही थी। हमें छोड़ने मेरी भाभी के भाई साथ में आए थे रेलवे स्टेशन पर वह टिकट लेने गए और कुछ देर बाद आकर कुछ पैसे निकाल कर मुझे देने लगे मेरे दिमाग में यही आया कि यह भी मुझे जाते वक्त शगुन के तौर पर पैसे दे रहे हैं मैंने कहा “नहीं भैया मुझे नहीं चाहिए”
आंटी ने मुझे दे दिए हैं”मैंने उनसे कहा उन्होंने फिर मुझे पैसे देने की कोशिश की उन्होंने कहा ले पकड़ तो सही उनके इतना कहते ही मैंने फिर से अपनी बात दोहराई नहीं मुझे नहीं लेने उन्होंने फिर मुझसे कहा रीना पैसे पकड़ तो सही और मैंने फिर उनकी बात को काटते कहा नहीं भैया मैं नहीं लूंगी आंटी ने मुझे दे दिए अब मैं आपसे नहीं लूंगी मेरे पास उस वक्त काफी सारे लोग भी खड़े थे। तब उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा “टिकट की खिड़की पर बहुत भीड़ है, क्या तुम जाकर सब की टिकट ले आओगी यह पैसे मैं उसी के लिए दे रहा हूं। उनका इतनी बात सुनते ही मैं चुप हो गई और चुपचाप उनसे पैसे पकड़कर टिकट लेने चली गई। उस वक्त मैं सचमुच इतना शर्मिंदा हुई थी मुझे लगा आज मेरी अच्छी खासी चौप हो गई है। और जब मैं टिकट लेकर वापस आई तो सब उसी बात पर हंस रहे थे और मेरी इतनी हिम्मत भी नहीं हुई कि मैं आंख उठाकर सबकी तरफ देख लूं। उस दिन मैं वाकई शर्म से लाल हो गई थी।
यह भी देखे-मैं पास हो गई