Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “फंस गई है बेचारी सृष्टि।” उसने मोबाइल पर बात जल्दी ख़त्म की। आज हम तीन घंटो की ड्राइव पर थे और उसे पता है कि, अगर मेरा मूड ऑफ नहीं करना है, तो मेरे वक़्त का क़त्लेआम वह किसी और से बतियाते हुए नहीं मचा सकती।

“क्या हुआ उसे? उसकी बरबादी को छःसात महीने ही तो हुए ना?” मैंने जानबूझ कर बरबादी कहा।

“हाँ तबाही ही है शादी। पति को किसी चीज से कोई मतलब नहीं। बस काम से काम। सुबह से रात तक तो बाहर ही रहते हैं; इससे भी कोई मतलब नहीं। सास-ससुर ऐसे महान हैं कि दस मिनट भी बात कर लो तो दस मीनमेख निकाल देंगे। बुड्ढा रिटायर होकर बैठा है लेकिन चैन नहीं है, हमेशा उसका फ़रमाइशी प्रोग्राम चलता रहता है; पाँच-सात और बुड्ढों का जमावड़ा भी लगा लेता है और सास का एकसूत्रीय कार्यक्रम है पति के कान भरने का।”

“ये कौन सी नई बात है। घर-घर में बहुओं को यही शिकायतें होती हैं।”

“ऐसा नहीं है यार, कितने ही परिवार ऐसे हैं जो लाइफ़ को इन्जॉय करते हुए मस्ती में जीते हैं। इसी बेचारी की क़िस्मत ख़राब है जो फँस गई। इतनी सुन्दर थी, सात महीने में ही डल सी पड़ गई है।”

“अच्छा बताओ सृष्टि फंस गई, फंसाई गई या ख़ुद ही फंसना चाहती थी?”

“फंसना कौन चाहता है, उसके माँ-बाप ने सब अच्छा देख समझ कर ही रिश्ता किया था ना।”

“हा…हा…हा…कैसी ग़ज़ब बात करती हो। जो देखा था, वह तो एैज़ इट इज़ मिला न? जो नहीं देखा था, वह तो कैसा भी हो सकता है। तुम्हारे हिसाब से तो लड़की को घर लाने से पहले यह भी बताना चाहिए कि, बुढ़ऊ अपने कितने दोस्तों को घर बुलाएगा और बुढ़िया तो स्क्रीप्ट ही लिख के दे दे कि, माता इससे ज़्यादा नहीं कहेंगे। पति कितने दिन बाहर घुमाने ले जाएगा, कितने दिन मूवी और कितने दिन रेस्टोरेन्ट। तुम पूरा एग्रीमेन्ट लिखना शुरू कर दो; कहीं कोई ऐसी चीज़ ना हो जाए, जिसके बारे में तुमने बात साफ़-साफ़ ना की हो।”

“मेरे कहने का यह मतलब नहीं। पर छोटी सी लाइफ़ क्यों इन सब फ़िज़ूल की उलझनों में निकाली जाए?”

“तो तुम क्या समझती हो, बगैर मेहनत और जद्दोजहद के तुम लोगों को दूसरे की जायदाद की मालिक बन जाने का हक़ तुम्हारे सेक्स, बच्चे पैदा करने और पापा का घर छोड़ कर आ जाने से ही मिल जाना चाहिए?”

“हाउस वाइफ और क्या कर सकती है? कुछ और करने की उसको छूट भी कहाँ मिलती है?”

“तुम लोगों का यह मिल जाने का नज़रिया ही तुम्हारा दुश्मन है। कभी इससे कुछ चाहिए, कभी उससे; तो हालात से समझौता कर साँस ही घसीटो। अरे! किसी से कुछ नहीं चाहिए यार। ज़ीरो से शुरुआत करने की औकात हो, तभी कुछ पा लेने का अरमान रखो। मिला हुआ तुम्हें ख़ैरात की तरह नहीं लगता?”

“छोड़ो यार ये सब बातें, काहे को अपना सर खपाना। ये बताओ आज की प्लानिंग क्या है?” मैंने उसके चेहरे पर ज़िंदगी जी लेने की चमक देखी और आँखों में बीयर के केन की टिमटिमाहट।

उलझनों से लदी ज़िंदगी के मकड़जाल सवालों पर, झाड़ू फेर पाना ही शायद वह कारनामा है जहाँ से जवाबों की ज़रूरत को बौना होते देखा जा सकता है और जीया जा सकता है मासूमियत से भरी दुनिया में। वही कंगाल मासूमियत, जो ज़िंदा भी है आज; तो नादान, गवारूं समझ में सांसे गिन रही है।