Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “मैं तुमसे बात करना बंद करने वाली हूँ।” दस दिनों बाद आज तय हो सका कि मिलते हैं। हमेशा की तरह ड्राइव पर।

“क्यों? क्या हुआ?” मैंने साधुता के नाते ही उससे पूछा। यूँ मुझे पता है, उसे बात बंद करनी होती तो वार्निंग की ज़रूरत ही क्या थी।

“तुम्हारे पास ना तो फोन में बात करने का टाइम है, ना मिलने का।”

“ओहो! तो डियर, तुमने चुना ही ग़लत बॉयफ्रेंड है; अब भुगतो।” मैंने हँसते और छेड़ते हुए कहा। उसकी बातों पर ज़ोर देने की नासमझी मैं करना नहीं चाहता था; आख़िरकार ज़िंदगी जली तब आँखों में काजल सजी है।

उसने जल्दी-जल्दी कहा- “नहीं ग़लत तो तुमने चुनी है। ऐसी ढूँढनी थी ना, जिसे तुम्हारे टाइम की ज़रूरत ना हो; ना ही जिसका कभी मिलने-मिलाने को दिल करे।” हाय! सीधे-सीधे दिल को ज़बान दे देना भी नापसंद है इन्हें।

“अरे डार्लिंग, उस बहुत टाइम का क्या करोगी, जिसमें मैं हंड्रेड परसेन्ट तुम्हारे साथ रह ना पाऊँ; मैं तभी तुमसे मिलता और बात करता हूँ जब पूरी तरह से तुम में खो सकूँ।” मेरी मोहब्बत और ख़्यालात, दोनों इस लाइन से मुकम्मल होते हैं।

“तो मेरा मन तुम्हारे अकॉर्डिंग चले, यही तुम्हारी शर्त है?” कोई यह ठान ही ले कि, उसे मनाए जाने की भूख है।

“नहीं डियर। तुम्हारा मन तो हमेशा रहता है, पर मेरी लिमिट्स हैं कि, मैं हमेशा इस बात के लिए अवेलेबल नहीं हो सकता। तुम्हारा प्यार मुझे ताक़त देता है, लेकिन उस ताक़त का क्या करूँगा जो मेरे लक्ष्यों की ओर मुझे ना ले जाती हो? यह सच है कि मैं अपने लक्ष्यों से बहुत ज़्यादा मोहब्बत करता हूँ, उतना ही जितना तुम्हें। और प्लीज़ तुम भी अपने कुछ लक्ष्य बनाओ, जिनमें तुम उस समय व्यस्त रह सको जब हम साथ ना हों; वरना तो शिकायतें जीवन भर चलती रहेंगी और जीवन ही शिकायत हो जाएगा।”

“तुम्हें सुधारने का एम बनाया तो है, बाकी और क्या बनाऊँ; बताओ?” मूड स्वींग और मसख़री ना ही समझने के फेर में पड़े तो अच्छा।

“शरबत का मज़ा तब कितना बढ़ जाता है जब तेज़ प्यास से दो घूँट पानी के लिए गला सूख रहा हो। कभी थोड़ी दूरी और प्यास भी तो ज़रूरी है।” हमें मूड स्वींग का प्रिविलेज हासिल नहीं।

“ठीक है। बढ़ा लो प्यास और दूरी। आज भी क्यों आए? मना कर देते। कोई ज़बरदस्ती की थी मैंने?” उसके हल्के होते मूड का फ़ायदा उठाने की फ़िराक़ में मैंने जो शरबत के प्याले भर दिए, उनका वक़्त जरा गलत हो गया।

“नाराज़ क्यों होती हो यार? मेरा वह मतलब तो नहीं था।”

“तो क्या मतलब था? दूरी चाहिए ही क्यों तुम्हें?” गुस्सा कहूँ, मोहब्बत कहूँ या अभी सामानार्थी।

मैं समझ चुका था कि, यहाँ लफ़्ज़ों की हद ख़त्म हो चुकी है। मैंने थोड़ी सुनसान सी जगह देखी और कार एक किनारे खड़ी कर कहा-“नहीं चाहिए।” और उसकी गरदन अपनी ओर खींचकर उसके होठों की नाराज़गी अपनी जीभ से पोंछ दी।