Hindi Love Story: उससे मिलते मुझे तीन महीने हो चुके थे। इन तीन महीनों में शायद पाँच बार हम मिल चुके थे, पर दोस्तों की तरह। हमारे बीच हँसी-मज़ाक फ़्लर्ट चलता था, पर वह आगे बात बढ़ने ही नहीं देती थी।
आज की शाम, हम फिर घंटे-दो घंटे की ड्राइव पर थे। ठंडी ड्राइव, ठंडी बातें इसकी पहचान थी। मैं उससे लगभग एरीटेट हो चुका था और शायद इसके साथ आख़िरी ड्राइव हो, यह सोचते हुए गया।
उसने मुझे और दिनों से ज़्यादा शांत देखते हुए पूछा- “क्या हुआ आज मूड ठीक नहीं है क्या?”
“मूड तो ठीक है, शायद तुम्हें ही मेरा साथ पसंद नहीं।”
“ऐसी तो कोई बात नहीं। साथ पसंद नहीं होता तो तुम्हारे साथ आती ही क्यों?”
दूबारा छाई हुई चुप्पी तोड़ते हुए उसने कहा-“कहीं थोड़े ज़्यादा टाइम की प्लॉनिंग करके चलें क्या?”
“नेकी और पूछ पूछ। रूम बुक करूँ कहीं?”
“तुम्हें रूम ही दिखता है बस। यही सब बातें मुझे पसंद नहीं।”
“पसंद तो तुम्हें और भी बहुत सी बातें नहीं। ड्रिंक, सिगरेट, मस्ती कुछ चाहिए ही नहीं तुम्हें। और कहीं जाओगी तो रोड पर तो रहोगी नहीं, तो रूम बुक करने की बोल कर क्या क़सूर किया मैंने?”
“अरे, तुम समझते नहीं। मैं भी तो इन्सान ही हूँ, मेरा मन क्यों नहीं होगा मस्ती करने और ख़ुश होने का। पर पापा को मैंने प्रॉमिस किया था, इस सब गलत चीजों से हमेशा दूर रहूँगी। उन्होनें इतना ट्रस्ट करके मुझे इतनी दूर जॉब के लिए भेजा है, ये सब करने के लिए नहीं।”
“मैडम! तो आप उठाओ उनके सही और गलत की परिभाषाओं का बोझ। मेरे अन्दर का इन्सान अभी ज़िंदा है और वह तुम्हारे साथ कुछ पल जीना भी चाहता है, लेकिन तुम्हारे जजमेन्ट का बोझ मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। हाँ, मैं चाहता हूँ तुम्हारे साथ एक रूम में रहना और सब वर्जित सीमाओं को लांघ जाना। पर याद रखना मैं रेपिस्ट नहीं हूँ। ख़ुद पर तुम्हें भरोसा हो या ना हो, मुझे ख़ुद पर है। मेरी परिभाषाएँ मुझे जीना सीखाती हैं और मैं ख़ुद तय करता हूँ मुझे क्या करना है।” मैंने थोड़ा तीखापन दिखाते हुए कहा।
“तुम गलत कह रहे हो यह मैं नहीं कहती, पर बचपन से ऐसे ही पली बढ़ी हूँ मैं। मेरी सोच जो बनाई गई है उससे निकलने में मुझे टाइम तो लगेगा न? और मैं ऐसी नहीं कि, मुझे जन्म देने वाले मेरे माँ-बाप से किए हुए प्रॉमिस को ब्रेक करूँ। मुझसे यह नहीं होगा।”
“तुम अपने माँ-बाप और अपना सही-गलत अपने पास रखो। उन्हें बताकर आती हो, जब मेरे साथ आती हो ड्राइव पर?”
“इसमें क्या गलत है? हम तो बस ड्राइव पर ही जाते हैं।”
“सुनो, मैं ड्राइवर नहीं तुम्हारा। और मैं अब तुम्हारे साथ कहीं जाना भी नहीं चाहता। मेरे कहने से तुम कहीं चली भी गई, तो जीवन भर तुम्हारा अपराध बोध तुम्हें खाएगा और क्या पता इसके लिए मुझे तोहमतों के कंकड़ खाने पड़ें।”
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मैं बदल तो रही हूँ, कुछ टाइम दो मुझे।”
“ठीक है, अपनी मर्ज़ी का टाइम लो। याद रखना कि, जब अपने मन को जीना चाहो तभी मेरे साथ आना। अगर तुम्हें सही-गलत; समाज के सामने और आइने के सामने एक ही चेहरा रखना हो तो सॉरी। मैं किसी बच्ची का मुज़रिम नहीं होना चाहता।”
मैंने उसकी आँखों में ओढ़ी हुई लाचारी नाचते देखी, जो ख़ुद का चेहरा जीवन के सत्य की तरह दिखाना चाहती थी; पर मैं जानता हूँ जिन्हें अपनी फ़िक्र नहीं, उनकी फ़िक्र नहीं की जानी चाहिए।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
