Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “कोमल बेचारी तो परेशान हो गई है, ऐसी कन्जरवेटिव फैमिली में उसकी शादी हुई है।” मोबाइल पर्स में रखते हुए उसने आइसक्रीम मेरी ओर बढ़ाई। हम सिटी मॉल की एक बेंच पर बैठे, मूवी का टाइम हो जाने का इंतज़ार कर रहे थे।

“वही कोमल ना, जो अपने साथ मूवी आई थी एक बार?” मैंने तीन-चार साल पहले की बात याद की।

“आई थी..हाँ वही।” उसने भी याद किया।

“क्या हुआ उसको?”

“कल रात फोन आया था उसका। उसके ससुराल वाले एकदम से परेशान कर रहे हैं कि, बच्चों को संभालने में दिक्क़त हो रही है, जॉब छोड़ दो।”

“दिक्क़त हो रही है तो कुछ दिन छोड़ कर फिर कर लेगी, उसमें क्या है?”

“नहीं ना, यह सब चाल है। एक बार छूटने के बाद दुबारा कहाँ मिले कहाँ नहीं और एक्चुली ना उन लोगों को शुरू से ही पसंद नहीं है कि यह जॉब करे। बस घर संभाले। अभी ही इतनी प्रॉब्लम करते हैं, फिर कहाँ करने देंगे। उसके पति की इनकम अच्छी है, तो इसकी कम सैलरी की कोई वैल्यू ही नहीं है।”

“हा…हा…हा…अच्छी इनकम है तो कोमल को क्यों करनी है जॉब?”

“अरे! अभी अपनी ज़रूरतों के लिए किसी पर डिपेंड तो नहीं। और घर में बंद होने के लिए इतना पढ़ी-लिखी थी। उसके भी तो कुछ सपने हैं।”

“हाँ सपने तो हैं, पर उसने बच्चों के सपने क्यों देखे, जब संभालने की ज़िम्मेदारी लेनी नहीं थी?” मैंने बेपरवाही से कहा।

“बच्चे और घर, अकेले इसकी ज़िम्मेदारी तो नहीं। सास कुछ करना नहीं चाहती और पतिदेव को बिज़नेस से फ़ुर्सत नहीं।”

“ओके, उससे कहना अपने पति का नम्बर मुझे भेजे, मैं बात करता हूँ उससे।” मुझे खुराफ़ात सूझी।

“तुम क्या बात करोगे?” उसने आँखें तरेरी।

“उसकी जगह मैं होता तो जो करता; वह उसे बता दूँगा।” तिलिस्मी मुस्कान अपने होठों पर खेलने दी।

“क्या करते? सुनूँ तो ज़रा मैं भी।”

“यही कि उससे कहता तुम्हारी इच्छा है तो तुम बाहर का संभालो, कोई प्रॉब्लम नहीं। मैं घर संभाल लूँगा। बच्चे मुझे प्यारे हैं और उनको पढ़ाना भी पसंद है मुझे, नहलाना, तैयार करना भी।”

“इसका मतलब अपना काम बंद कर देगा वह?” आइसक्रीम कोन मुँह में जाने से उसने रोकते हुए कहा।

“हाँ तो क्या दिक्क़त है? उसे कमाने में इन्टरेस्ट है तो मुझे घर संभालने में।” मैंने कोमल के पति की ओर से कहा।

“ऐसे थोड़ी ना चलता है,काम तो सबको बाँटकर करने चाहिए ना।”

“वाह बेट्टा! वह अपने काम में किसी की हेल्प चाह रहा है क्या? तो कोमल का नौकरी करना उसका सेकेण्ड्री काम है, घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी तो उसे लेनी ही चाहिए। अपने शौकों के लिए बच्चों से कैसे आँख फेरी जा सकती है?” मेरी आवाज़ थोड़ी तपी।

“तुम उसका सपोर्ट कर रहे हो?”

“तो क्या चाहती हो, ज़बरदस्ती कोमल के सपोर्ट में बोलूँ? हर समय की अपनी माँग होती है, उन्हें समय पर पूरा भी किया जाना होता है। मैं नहीं कह रहा उसे घर में बंद रहने या काम नहीं करने के लिए। पर समय की माँग भी तो उसे समझनी होगी और अपना काम तो उसे हरगिज़ नहीं छोड़ना चाहिए, लेकिन कम समय का काम ढूँढना चाहिए उसे।”

“बात कराऊँ उससे?” उसने चिढ़ते हुए कहा।

“नहीं। तुम्हारी दोस्त है, तुम ही समझाना उसे; अगर ख़ुद समझ पायी हो।”

“चलो, अब टाइम हो ही गया है।” उसने उठते हुए कहा।

हम दूसरों के सवाल भूलते, अपने रस्ते पर आगे बढ़ गए। यूँ भी दूसरों के सवालों के क़त्लेआम का चस्का हमें हुनर की तरह है।