भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
एक था राजा । बहुत सनकी। बहुत अजीब । न कभी हँसता, न किसी को हँसने देता। जो हँसता, उसे फाँसी दे देता।
उसी राज्य में एक लड़की थी। वह बात-बात पर हँस पड़ती। खूब खुलकर हँसती। लोगों ने उसका नाम हँसमुखी रख दिया।
हँसमुखी की माँ उसे रोकती। कहती- “हँसना छोड़ दे। पकड़ी जाएगी तो जान से जाएगी।” पर हँसमुखी तो हँसमुखी थी। उसने हँसना नहीं छोड़ा।
एक दिन वह जोर-जोर से हँस रही थी। सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया। उसे राजा के सामने पेश किया। राजा को बहुत गुस्सा आया। बोला- “ऐ लड़की, तेरा नाम क्या है?”
“हँसमुखी।”
राजा बोला- “तुझे पता है, यहाँ हँसना मना है?”
हँसमुखी बोली- “हाँ, पता है।”
राजा तमतमा उठा- “तो फिर हँसी कैसे?”
हँसमुखी खिलखिला कर हँस पड़ी। उसकी हँसी से पूरा महल गूंज उठा । राजा आपे से बाहर हो गया । बोला- “तेरी इतनी हिम्मत! मेरे सामने भी हँस रही है?”
हँसमुखी ने कहा- “आप ही ने तो पूछा था कैसे हँसी। मैंने हँसकर बता दिया।”
“तो ठीक है। हँसने की सजा भी मिलेगी। तुझे फाँसी दी जाएगी। कोई आखिरी इच्छा हो तो बता। हम पूरी करेंगे।”
हँसमुखी बोली- “आखिरी इच्छा तो है। पर आप पूरी नहीं कर सकते।”
राजा ने कहा- “क्यों नहीं पूरी कर सकते? मैं राजा हूँ। मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है। तेरी इच्छा जरूर पूरी करूँगा।”
“तो ठीक है। आप हँसकर दिखाइए।” हँसमुखी ने आखिरी इच्छा बता दी।
राजा सोच में पड़ गया। हँसे कैसे? उसने तो हँसने पर पाबंदी लगा रखी है। लेकिन वचन दे चुका था। सो उसे हँसना पड़ा।
राजा की हँसी बिलकुल बेजान और फीकी थी। हँसमुखी बोली- “ये भी कोई हँसी है। झूठी और बनावटी। इससे मेरी इच्छा पूरी नहीं होगी।”
राजा ने कहा- “तो फिर कैसे हतूं ? इससे ज्यादा मुझे नहीं आता।”
हँसमुखी ने कहा- “कोई बात नहीं। आप मेरे साथ हँसिए। जैसे मैं हँसती हूँ।”
राजा ने कहा – “ठीक है, मैं कोशिश करता हूँ”
फिर क्या था। हँसमुखी खिलखिला कर हँस पड़ी। राजा ने भी हँसना शुरू किया। हँसमुखी हँसती जा रही थी। जोर से। और जोर से।
राजा की भी हँसी खुल चुकी थी। अब वह हँस रहा था। खूब खुलकर । दरबारियों ने देखा। सिपाहियों ने देखा । हँसी का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था।
राजा को ऐसे हँसते देख सब हँसने लगे। सिपाही भी। दरबारी भी। हँसी-ठहाकों से पूरा महल गूंज उठा।
थोड़ी देर बाद हँसमुखी की हँसी रुकी। पर राजा अब भी हँसे जा रहा था। वह बहुत हल्का और स्वस्थ महसूस कर रहा था। उसकी आत्मा जी उठी थी।
काफी देर बाद राजा की हँसी रुकी। सिपाही और दरबारी भी रुक गए। अब फाँसी देने की बारी थी।
हँसमुखी ने राजा की ओर देखकर कहा- “महाराज! फाँसी से पहले एक बात पूछना चाहती हूँ।”
राजा ने कहा- “पूछो, क्या पूछना है?”
हँसमुखी ने पूछा- “मुझे फाँसी किस बात के लिए दी जा रही है?”
राजा ने कहा- “तुमने हँसकर राज्य का कानून तोड़ा है, इसलिए ।”
“कानून तो सबने तोड़ा है। सिपाहियों ने, दरबारियों ने, और आपने भी। तो फिर फाँसी अकेले मुझे क्यों?”
सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। अब क्या होगा। क्या सबको फाँसी होगी। यह लड़की तो सबको ले डूबेगी।
तभी एकाएक राजा फिर हँस पड़ा। हँसते-हँसते हँसमुखी के पास आया। उसका माथा चूमकर बोला- “आज से हँसने पर कोई पाबंदी नहीं होगी। जीवन में पहली बार आज मैं खुलकर हँसा हूँ। सचमुच यह तो स्वस्थ रहने की बहुत अच्छी औषधि है। अब तक मैं इस रहस्य से अनजान था। आज तूने मुझे जीना सिखा दिया। तू मेरी गुरू है।”
हँसमुखी ठठाकर हँस पड़ी। साथ में सब हँस पड़े।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
