saahab bahaadur
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Hindi Story: मिश्रा जी अपने छोटे बेटे की शादी के कुछ दिन बाद सुबह पार्क में जब सैर करने निकले तो उनके कुछ पुराने साथियों में से एक ने मजाक करते हुए कहा कि सुना है शादी के बाद आदमी साहब बहादुर बन जाता है। ‘साहब बहादुर से तुम्हारा क्या मतलब है, मैं आपकी बात को ठीक से समझ नहीं पाया।’ उनके साथी ने कहा कि आप तो बहुत गंभीर हो गये, मेरा तो सिर्फ इतना कहना था कि समाज में किसी का कुछ भी रुतबा हो, शादी के बाद हर कोई उसके नाम के आगे साहब लगा कर बुलाने लगता है।

बीवी की फरमाइशें और घर की जरूरतें पूरी करते-करते आदमी बहादुर यानी नौकर बन कर रह जाता है। मिश्रा जी ने कहा-‘इस बारे में तो मैं कुछ ठीक से नहीं कह सकता। हां इतना जरूर यकीन से कह सकता हूं कि रिटायरमेंट के बाद आदमी की हालात एक नौकर जैसी तो क्या गधे से भी बुरी हो जाती है।’ मिश्रा जी के दोस्त को लगा कि आज सुबह-सुबह उसने मिश्रा जी की किसी दुःखती रग पर हाथ रख दिया है।

थोड़ी तसल्ली देने के बाद उसने पूछा कि क्या बात है, बहुत परेशान लग रहे हो। मिश्रा जी ने उसे बताना शुरू किया कि आप तो जानते ही हो कि मैं सेवानिवृत्ति से पहले बहुत ही अच्छे सरकारी ओहदे पर नियुक्त था। सेवानिवृत्ति के अवसर पर कई बड़े अफसरों ने मेरे काम की सराहना करते हुए मुझे सम्मानित किया था। घर, नौकर-चाकर से लेकर गाड़ी तक सब कुछ सरकार ने मुहैया करवा रखा था। हर छोटे से छोटे काम के लिए एक ही आवाज पर कई नौकर दौड़े चले आते थे। कुछ साल पहले जब मैं सेवानिवृत्त हुआ तो हर किसी की जुबान से एक ही आवाज सुनाई देती थी कि जिंदगी में काम तो बहुत कर लिया, अब सारा दिन आराम से बैठ कर चैन की बंसी बजाओ। मैं खुद भी सोच-सोच कर हैरान होता था कि बिना किसी कामकाज के मेरा सारा दिन कैसे कटेगा? आजकल मैं कहने को तो घर में कुछ काम नहीं करता, लेकिन सारे दिन में पांच मिनट भी चैन से बैठना नसीब नहीं होता।

दिन की शुरुआत होते ही पत्नी दूध और नाश्ते का सामान लाने के लिये कह देती है। इससे पहले कि मैं वापिस आकर शांति के साथ चंद पल समाचार पत्र के दर्शन कर सकूं, बहू पोते को तैयार करने और उसे स्कूल छोड़ने का हुक्म सुना देती है। इस ड्यूटी को निपटा कर कई बार मन करता है कि थोड़ी देर तसल्ली से बैठ कर चाय की चुस्कियों का आनंद लिया जाये। परंतु दूर से ही पत्नी मुझे देखते हुए कहती है कि क्या बात है, आज मुन्ना को स्कूल छोड़ने में बहुत देर कर दी। मैं तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं। मैंने कहा-‘क्या बात है, आज नाश्ता बहुत जल्दी बना लिया।’ पत्नी का जवाब था कि चाय-नाश्ता आकर करना, पहले जरा बिजली और टेलीफोन का बिल जमा करवा आओ क्योंकि आज आखिरी तारीख है। यदि आज यह बिल जमा नहीं हुआ तो बिजली विभाग वाले हमारी बिजली काट देंगे। आप तो अच्छी तरह से जानते ही हो कि मैं बिना एयरकंडीशन के एक मिनट भी नहीं रह सकती। मैंने अपनी बीवी से कहा कि मैं तुम्हारा पति हूं, कभी-कभार पति की कुछ सेवा भी किया करो। इतना सुनते ही मेरी पत्नी उल्टा मुझ पर नाराज होते हुए बोली कि मैंने कब कहा कि तुम मेरे पति नहीं, ड्राइवर हो। अभी पत्नी के हुक्म पूरे भी नहीं होते कि पोते का स्कूल से आने का समय हो जाता है। लाख कोशिश करने पर भी वो अपने स्कूल के होमवर्क को लेकर मेरा भेजा चाटना शुरू कर देता है। कभी-कभार गलती से घर के किसी सदस्य को किसी काम के लिये ना कह दो तो उसे लगता है कि मैंने उसे 25 किलो की गाली दे दी हो। इस सारे माहौल से तंग आकर कई बार तो मन यही करता है कि मैं यहां से कहीं बहुत दूर चला जाऊं। लेकिन घरवालों ने अपने सभी शौक पूरे करने की चाह में चार पैसे भी मेरे लिये नहीं छोड़े।

मिश्रा जी के दोस्त ने उन्हें समझाते हुए कहा कि परेशानी चाहे कैसी भी हो, कभी भी इस तरह से सभी के सामने अपना हृदय मत खोलो, जो बुद्धिमान हैं और परमात्मा से डरने वाले हैं, केवल उनसे अपने व्यवहार के संबंध में बात करो। एक बात और याद रखो कि आज के इस युग में अपने लिए तो सभी जीते हैं पर दूसरों के लिए जीने वाले बहुत कम होते हैं। मैं मानता हूं कि तुम्हारे घर वालों ने तुम्हारा बहुत मन दुःखाया है, लेकिन जब आप कामयाबी के शिखर पर होते हैं तो आपको हर कोई सलाम करता है, परंतु जब आपके पास कोई ताकतवर कुर्सी या ओहदा नहीं होता तो उसी समय आपको मालूम पड़ता है कि आपके सच्चे शुभचिंतक कौन है? मुझे लगता है तुम्हारे घर वाले शायद यह नहीं जानते कि घरों में बड़े बुजुर्गों के अपमान से अच्छे संस्कारों की बहने वाली गंगा सूख जाती हैं। वैसे बहादुर इंसान उसे ही कहा जाता है जो सभी परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखना जानता हो। मेरी एक बात और ध्यान रखना कि अगर आप हर कार्य हंसते-खेलते खुशी से करें तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं लगेगा। साधु-संत तो यहां तक समझाते हैं कि जब तक कोई जीव कार्य कर रहा है, तभी तक वह जीवित है, जब वो कर्म करना छोड़ देता है तो वो एक मुर्दे से बढ़ कर कुछ नहीं होता। जौली अंकल मिश्रा जी के परिवार वालों के साथ सारे समाज को यहीं सन्देश देना चाहते हैं कि हम चाहे साहब हो या बहादुर, नम्र होकर चलना, मधुर बोलना और बांटकर खाना, यह तीन ऐसे गुण है जो हमें ईश्वरीय पद पर पहुंचाते हैं। खुशनसीब वो नहीं जिसका नसीब अच्छा है, बल्कि असल खुशनसीब वो होता है जो अपने नसीब से खुश होता है।

ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं

Kahaniyan Jo Raah Dikhaye : (कहानियां जो राह दिखाएं)