भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Girl Hindi Story: यह प्रसंग जहाँ से शुरू होता है, उसका समय आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व का है। प्रकाश अपनी जिन्दगी की एक हकीकत को कहानी के रूप में सुना रहा था और हम लोग बड़े ध्यान से सुन रहे थे उसकी कहानी। इंदौर से भोपाल कार में उसके साथ मैं और अन्य तीन साथी। प्रायः यही होता है कि अपनी साहित्यिक यात्राओं में हम लोग, रास्ता मालूम न पड़े, थकावट महसूस न हो इसलिए अपनी-अपनी कविताएँ, गीत, लघुकथाएँ, संस्मरण आदि सुनाते रहते हैं। इससे मुख्य दो लाभ, हम लोगों को मिलते एक तो 4 घंटे का सफर आसानी से हो जाता और दूसरा इधर-उधर की बातों से बचे रहते जो प्रायः बुराई, तुलना, आलोचना का आधार बनती। साहित्य जगत इससे अछूता नहीं वरन् कुछ ज्यादा ही ग्रसित रहता है। वर्ष में प्रकाश और उसके साथियों की लगभग 12-15 ऐसी यात्राएँ हो ही जातीं और प्रायः सभी लोग अपनी नवीन रचनाएँ ही सुनाते, उन पर संक्षिप्त चर्चाएँ होती, वाह-वाह भी। साथ ही जिनकी रचनाएँ ज्यादा पसंद की जाती। चाय-नाश्ते का अनुदान उसकी तरफ से होता, मनोरंजन के साथ साहित्यिक वे दिन अब भी याद आते हैं।
हाँ, तो मैं बात कर रहा था प्रकाश द्वारा सुनाई गई उस कहानी की. जिसको मैंने जब अपने शब्दों में लिखा तो नाम दिया “रोशनी”, तो चलिए बताते हैं, प्रकाश की जुबानी अर्थात् रोशनी की कहानी।
रोशनी की बड़ी बहन ज्योति प्रकाश के पड़ोस में किराए पर सपरिवार रहती थी। उसकी एक लड़की एक लड़का था। पतिदेव अखबार बाँटते, फिर किसी निजी कंपनी में नौकरी करने चले जाते। प्रकाश से पड़ोसी होने के नाते राम-राम या जय श्री कृष्ण प्रातः हो जाया करती। ज्योति से मिलने उसकी छोटी बहन रोशनी प्रायः रोज ही दिन में दो-तीन बार आती, कभी उसकी गोद में कोई छोटी बच्ची होती तो कभी साथ में 11-12 वर्ष की लड़की भतीजी तो कभी अकेले ही, क्योंकि रोशनी का घर पास ही की कॉलोनी में था, दूरी लगभग 500 मीटर।
प्रकाश से प्रायः सभी बोलते-चालते। वह कॉलोनी में भी एक शिक्षाविद्, साहित्यकार, समाजसेवी के रूप में जाना जाता। उसमें मिलन सारिता का अद्भुत आकर्षण था। प्रकाश की रोशनी से भी जय श्री कृष्ण होती, रोशनी सुन्दर-गोरी, बड़ी-बड़ी आँखों वाली लड़की। एक दिन बातों-बातों में रोशनी ने प्रकाश से कहा, “आपको मेरे पिताजी अच्छी तरह जानते हैं।”
प्रकाश, “मुझे? मैं तो उन्हें जानता नहीं हूँ, न कभी मिला, फिर कैसे? हाँ कभी तुम्हारी बड़ी बहन के यहाँ देखा हो, तो बात अलग। रोशनी बोली, “बिल्कुल सही।” मेरे पापा ने यहाँ आपको देखा तो घर जाकर बताया कि ये तो प्रकाश साहब हैं। जैसा कि उन्होंने बताया वह आपको बहुत पहले से जानते हैं। आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व, उन्होंने संदर्भ स्थान बताया तो सब यही निकला। प्रकाश ने रोशनी से तब उसके पिताजी का नाम पूछा तो बताया ‘हीरालाल’।
अच्छा वो हीरालालजी जो हीरामिल के कार्यालय में पदस्थ थे, रोशनी ने कहा, “हाँ।” फिर एक दिन प्रकाश और हीरालाल जी की प्रत्यक्ष मुलाकात हुई तो दोनों बड़े खुश हुए।
प्रकाश ने आज पुरानी यादें ताजी की। एक दिन रोशनी अपनी भतीजी जो उस समय 5 वीं कक्षा में उसी कॉलोनी के एक निजी स्कूल में पढ़ने जाती थी, को लेकर प्रकाश के पास आई और बोली, “पापा ने रिक्वेस्ट की है कि आप थोड़ा समय निकालकर इस दीपिका को पढ़ा दें, इसके स्कूल वालों ने, छमाही परीक्षा में कम अंक आने से ट्यूशन लगाने की बात कही है।”
मैंने कहा, “मैं ट्यूशन तो पढ़ाता नहीं हूँ। हाँ, कभी पढ़ाता था, पर अब नहीं और मेरे पास समय भी कम है पर तुम्हारे पिताजी से पुराने संबंध हैं, अतः कुछ समय निकाल लूँगा। इसे लेकर कल से शाम को आ जाया करना।”
दूसरे दिन रोशनी और उसकी भतीजी दीपिका दोनों घर आ गए। थोड़ी बहुत जानकारी के बाद प्रकाश ने कुछ पढ़ाया फिर वे दोनों चली गई। उस दिन प्रकाश को लगा कि रोशनी चलते समय खासतौर से पीढ़ी की सीढ़ियाँ उतरते समय दीपिका का सहारा ले रही है। खैर…
दूसरे दिन अवकाश रहा, फिर 3-4 दिनों बाद प्रकाश ने रोशनी से कहा कि आप यहाँ एक घंटा यूँ ही बैठी रहती हैं, कोई किताब/अखबार ले लिया करो और पढ़ा करो।”
रोशनी बड़े धीरे से मायूस होकर बोली? “मैं कुछ भी पढ़-लिख नहीं सकती।”
प्रकाश, “क्यों?”
रोशनी, “मेरी आँखों में मिस्टेक है, अतः चलने-फिरने के अलावा लिखा हुआ मुझे दिखाई नहीं देता।”
रोशनी का जवाब सुनकर प्रकाश स्तब्ध-सा रह गया। ओह! इतनी बड़ी-बड़ी सुन्दर आँखें पर पढ़ने के काम की नहीं। वाह रे भगवान! कैसा सुन्दर फूल बनाया पर सुगन्धहीन। प्रकाश को बड़ा दुःख हुआ। एक दिन पूछने पर रोशनी ने बताया कि मेरी 6 बहनें और 2 भाई हैं। कोई भी 8 वीं तक नहीं पहुँचा और मुझे तो स्कूल ही नहीं भेजा गया। घर में सबसे छोटी, फिर आँखों में मिस्टेक, बस यूँ ही जिन्दगी बीत रही है। 20 वर्ष की उम्र हो गई, अगर आँखे ठीक होती तो शादी-ब्याह भी हो जाता।
प्रकाश सुनता रहा। उसे लगा कि भाग्य भी व्यक्ति को क्या-क्या दिन दिखाता है। उसे लगा कि मुझे कुछ करना चाहिए। मुझे अपने नाम के अनुरूप प्रकाश बनना होगा और नाम की रोशनी को रोशनी देनी होगी। जिन्दगी में कुछ ऐसा करने का संकल्प जो अनुकरणीय हो। प्रकाश ने अपने मन की बात अपनी पत्नी और घरवालों को बताई। किसी ने मना तो नहीं किया, पर इतना अवश्य कहा कि यह कार्य कठिन है। दृष्टि बाधित को पढ़ाना। तब प्रकाश ने पत्नी को बताया कि जब वह नौकरी के लिए महू जाता था तो राजेन्द्र नगर स्टेशन पर एक दृष्टि बाधित मिलते थे, बस से उतरना, रेल पटरी पार करना, टेम्पों से कारखाने जाना और लेथ मशीन पर काम करना। बिल्कुल सूरदास पर अन्दर की आँखे जैसे सब कुछ दिखा देती थी। प्रकाश उस सज्जन से बहत प्रभावित हआ था। सच पछो तो उसको वहाँ से प्रेरणा की किरण मिली और उसने बीड़ा उठा लिया- रोशनी को पढ़ाने का।
अगले दिन घर में प्रकाश एक श्याम पट्ट ले आया और रोशनी के हाथ में चॉक थमा दी। बोर्ड पर पहले कुछ रेखाएं बनाई उन पर चॉक फेरने को कहा फिर ऊँ लिखा फिर अ, आ, इ, ई और बाद में ए, बी, सी, डी। उसने रोशनी को हिम्मत दी, जोश बढ़ाया। उसने भी लगन से सीखना शुरू किया और धीरे-धीरे सारी वर्णमाला, देवनागरी और रोमन (इंग्लिश) भी लिखने लगी। रोज प्रगति कर रही थी। उसकी लगन देखकर प्रकाश का मन उल्लासित हो जाता। घर का सहयोग इतना कि कभी अगर प्रकाश बाहर होता तो उसकी पत्नी उसे सिखाती-पढ़ाती। धीरे-धीरे बच्चों की कहानियाँ, कविताएँ सुनने-सुनाने का क्रम शुरू हुआ। रोशनी की याददाश्त अच्छी होने से 8-10 पक्तियाँ या कहानी का सारांश उसे याद हो जाता। अब अध्ययन की गाड़ी चल पड़ी थी और तलाश थी मंजिल की।
प्रकाश ने रोशनी को कई नेत्र चिकित्सकों को दिखाया, दवाइयाँ दिलाई पर रोशनी की आँखों में रोशनी आने की उम्मीद कोई भी नामी-गिरामी डॉक्टर नहीं दिला पाया पर इससे न प्रकाश निराश हुआ और न ही रोशनी।
प्रकाश ने अब उसको पढ़ाना शुरू कर दिया और 2 वर्षों की अथक मेहनत के बाद 8वीं बोर्ड की परीक्षा में सम्मिलित कराया, परीक्षा में लेखन कार्य। राइटर की व्यवस्था हुई और रोशनी ने शिक्षा की पहली सीढ़ी 8वीं चढ़ ली, सभी खुश थे।
अब प्रकाश ने उसे शासकीय विद्यालय में 9वीं में प्रवेश दिलाया। वहाँ उसे कुछ और लड़कियाँ मिलीं। अब रोशनी ऊपर चढ़ती जा रही थी। 9वीं के बाद 10वीं बोर्ड उत्तीर्ण की। फिर 11वीं और 12वीं भी पास कर ली। अब तो रुकने का नाम नहीं। बस चलते जाना है। अब रोशनी उसके परिवार तो क्या परिचितों में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी लड़की हो गई थी। प्रकाश ने शासकीय महाविद्यालय में प्रवेश दिलाया, 3 वर्षों में स्नातक हो गई। खुशियों का सागर-सा जैसे मिल गया और फिर एम.ए. हिन्दी में प्रवेश।
इस बीच रोशनी को महाविद्यालय में और भी लड़कियों से तथा विकलांगों के कार्यक्रमों में लड़कों से मिलने-जुलने, जानने-पहचानने के अवसर मिले। जो रोशनी कभी चलने-फिरने में समर्थ नहीं थी, अब स्कूल व महाविद्यालयों के कार्यक्रमों में भाग लेकर माइक पर भी बोलने लगी। इस बीच रोशनी ने ब्रेल लिपि सीखना शुरू की, उसको गुरु श्री ईश्वरी प्रसादजी मिले।
ईश्वरी प्रसाद पूर्ण दृष्टिबाधित 2 विषयों में एम.ए., सेवा निवृत्त शिक्षक। जब प्रकाश ने उनसे पहली बार मुलाकात की तो बहुत प्रभावित हुआ, उनके ज्ञान, विद्वता का कायल हो गया। उनसे 2-4 मुलाकातों के मध्य ईश्वरी प्रसाद जी ने रोशनी के विवाह की बातें शुरू की। रोशनी भी 2-4 निःशक्तजनों के सामूहिक विवाह समारोहों / परिचय सम्मेलनों में जा चुकी थी। अब विवाह करने की लालसा ने जगह बनाना शुरू कर दी थी। स्वाभाविक था एम.ए. में अध्ययन, साथ ही उम्र लगभग 30 वर्ष, नौकरी की तलाश भी इन सबके लिए रोशनी अब ज्योतिषियों और मन्दिरों के भी चक्कर लगाने लगी पर हर जगह निराशा हाथ लगी, ज्योतिषी कहते कि तुम्हारे भाग्य में विवाह नहीं है, तो कोई कहता कि अगर हो भी जाए तो सफल नहीं होगा।
इन्हीं तूफानी लहरों के बीच एक आशा की नाव ईश्वरी प्रसाद ने दी। उन्होंने रोशनी के लिए एक लड़का बताया जो पूर्ण दृष्टिबाधित पर शासकीय शिक्षक पद पर। सुशील और समझदार। रोशनी तक बात पहुँची, उसने मंथन किया, लड़के से मुलाकात हुई, दोनों ने एक-दूसरे को समझा, परखा और गुरु ईश्वरी प्रसाद तथा प्रकाश को बताया। दोनों को बहुत अच्छा लगा। अन्ततः एक दिन रोशनी ने अपनी माँ को बताया। इस बीच बताना रह गया जाते हुए ट्रेन में हृदयाघात हो गया था, तब से वह माँ पर आधारित थी। भाई लोग कोई परवाह नहीं कर रहे थे। माँ ने जब यह प्रस्ताव सुना तो बहुत नाराज हुई। प्रकाश ने समझाने का प्रयास किया कि जीवनभर जवान लड़की को घर पर बिठा कर क्या करोगी? उसे कमाता-खाता लड़का मिल रहा है। दुनिया में कई और भी ऐसे हैं, जिन्होंने ऐसे कदम उठाए हैं, पर उन गैर पढ़े-लिखे दकियानूसियों पर कोई असर नहीं पड़ा।
प्रकाश ने एक दिन खुलकर रोशनी से बातें की और कहा कि “यह जिन्दगी उसी की है, जो किसी का हो गया। तुम्हारे पास जितनी दृष्टि है, उसे दूसरे को दे दो उसका अमूल्य उपयोग हो जायेगा, तुम विकास की रोशनी बन जाओ तो दोनों को एक-दूसरे का सुरक्षित हाथ मिल जायेगा।”
रोशनी ने अपने पीछे के जीवन को देखा और आगे के भविष्य का अंतिम निर्णय लिया, विकास का हाथ थामने का। उसके इस उत्कृष्ट निर्णय से घर वाले नाराज हो गए, कल तक जो प्रकाश की पूजा करते थे उस पर इल्जाम लगाते हुए बेटी को बरगलाने का आरोप लगा दिया, बोल-चाल, आना-जाना बंद कर दिया।
प्रकाश को दुःख हुआ इनके व्यवहार से। पर उसने रोशनी के निश्चय को मूर्तरूप देने का बीड़ा उठाया। गुरु ईश्वरी प्रसाद, रोशनी की कुछ सहेलियों को साथ लेकर विकास के परिवार वालों के साथ, विकास को रोशनी विधिवत प्रदान कर दी और वे दोनों एक-दूसरे के जीवन साथी बन गए। एक वर्ष निकल गया। रोशनी अब एम.ए. हिन्दी में कर चुकी थी। प्रकाश ने उसे उसकी ससुराल तक पहुँचा दिया। विदाई के अश्रुओं को रोके हुए पर खुशियों का महासागर लिए।
रोशनी ने टेढ़े-मेढ़े अक्षरों से नहीं मोबाइल पर प्रकाश को पत्र लिखा, “प्रकाश तुमने अपना प्रकाश देकर रोशनी को रोशनी युक्त कर दिया। आपके बताए हुए मार्ग पर चलकर मैंने जो कदम उठाया, उसमें सुरक्षा, शान्ति, समृद्धि सभी कुछ है। अब मैं विकास की रोशनी हूँ और यह मेरे जीवन का ऐसा विकास जिसके बारे में स्वप्न में भी सोचा नहीं था।”
रोशनी की इस विकास यात्रा को सुनकर सभी खुश थे। उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। यही कहा कि हर दृष्टिबाधित या निःशक्त को रोशनी से सीखाना चाहिए। साहसिक कदम उठाने का मार्ग सीखना चाहिए। अगर निश्चय दृढ़ है, तो विकास कौन रोक सकता है। कहानी सुनाते-सुनाते प्रकाश भावुक हो गया, पर चेहरे पर खुशी भी। सोचे हुए को मूर्तरूप देने की सफलता की।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’