ghaayal panchhee
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

चिंटू की दादी जानकी धार्मिक विचारों वाली महिला थी। सुबह जल्दी उठकर, घर के कामों को निपटाकर, आंगन के एक छोर पर बने चबूतरे पर लगी तुलसी को जल चढ़ाती। सूर्यदेव को अर्घ देती और नित्य गीता के श्लोक पढ़ती थी। चिंटू को धार्मिक कथाएं सुनाती, अच्छी-अच्छी बातें बतातीं। चिंटू भी दादी मां का साथ पाकर बहुत खुश होता था। चौथी कक्षा का छात्र चिंटू जब एक दिन विद्यालय से घर की ओर आ रहा था तो अचानक पेड़ से किसी पंछी के नीचे गिरने की आवाज आई। यह एक उल्लू था जिसको दो कौवों ने घायल कर दिया था।

उसकी गर्दन पर एक घाव हो गया था जिससे खून रिसने लगा था। चिंटू के पास आते ही घायल उल्लू ने उड़ने की नाकाम कोशिश की। पर पंख टूट जाने के कारण वह उड़ नहीं पाया। चिंटू को उसकी हालत पर तरस आ रहा था। वह सोचने लगा कि उसे अगर यहीं छोड़ दिया तो बिल्ली या कुत्ते का ग्रास बन जाएगा। मगर घर ले जाए तो कैसे?

दादी मां से एक दिन जब अशुभ बातों के बारे में सुना था तो उसमें उल्लू या चमगादड़ का घर में प्रवेश भी अशुभ बताया था। चिंटू ने कुछ दिन पहले कक्षा में घायल पक्षी की कहानी सुनी थी जिसको सिद्धार्थ ने बचाया था। बस फिर क्या था! चिंटू ने उल्लू को अपने थैले में डाला और घर के लिए यह सोच कर चल दिया कि किसी को खबर तक नहीं होने देगा।

चिंटू ने चुपके से घायल पक्षी को अपने कमरे में लाकर अपनी चारपाई के नीचे बांस की टोकरी से छिपा दिया।

एक पुरानी कटोरी में पानी और अनाज के कुछ दाने भी ले आया। मगर घायल पंछी ने खाने की तरफ ध्यान तक नहीं दिया। उसकी घायल गर्दन के लिए चिंटू ने हल्दी का लेप भी तैयार कर लिया था। बिल्कुल वैसे ही जैसे कुछ दिन पहले दादी मां ने उसे चोट लग जाने पर लगाया था। चिंटू घायल पंछी का ध्यान रखने लगा। पंछी भी अब पहले से बेहतर स्थिति में आ गया था।

चिंटू को डर बस इस बात का था कि जब दादी मां को पता चलेगा, तब न जाने क्या होगा।

एक दिन विद्यालय से लौटते वक्त जब चिंटू अपने कमरे में पंछी को देखने के लिए चारपाई के नीचे घुसा तो पाया कि न तो वहां बांस की टोकरी थी और न ही घायल उल्लू।

“हे भगवान। अब क्या होगा?” चिंटू के मुंह से अनायास ही निकल गया।

दादी मां को आवाज लगाता हुआ चिंटू आंगन की तरफ दौड़ा। दादी मां को छत पर देख कर चिंटू फुर्ती से सीढ़ियां चढ़कर उनके पास पहुंच गया।

“दादी मां। मुझे माफ कर दो। मैंने आप से यह बात छुपा कर रखी थी। मुझे माफ कर दो।” चिंटू रूआंसा हो गया।

“अरे! इसमें माफी मांगने वाली कौन-सी बात है? तुमने तो घायल पक्षी को बचाकर बहुत ही नेक काम किया है। शाबाश मेरे बेटे।”

चिंटू को दादी मां ने गले से लगा लिया।

“मैं कल ही भोलू को बोलकर इसके लिए एक अच्छा-सा पिंजरा बनवा दूंगी।”

“शुक्रिया दादी मां। मेरी प्यारी दादी मां।”

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’