Hindi Kahaniya: अचानक एक दिन मम्मी जी के पेट में दर्द हुआ था इस घटना के दो महीने के अंदर अंदर हम ये जान चुके थे की वो दर्द कोई साधारण दर्द नहीं था । कैंसर जैसी भयंकर बीमारी मम्मी जी के शरीर में घर कर चुकी थी।
फिर शुरू हुई दर्दनाक इलाज के प्रक्रिया कीमो थेरेपी फिर पेट का ऑपरेशन, ढेर सारी दवाइयां और असहनीय दर्द इन सबके बीच हमारे बीच ख़ुशी की एक लहर लेकर आयी दो जुड़वा नन्ही कलियाँ। अब हमारी मम्मी जी दादी बन बन चुकी थी।
गौरी और गायत्री की दादी उधर मेरे लिए जहाँ एक तरफ माँ बनने की ख़ुशी थी वही दूसरी ओर दो बच्चियों को सँभालने की चिंता थी।
संयुक्त परिवार होने के कारण जल्दी ही सबने उन्हें संभालना शुरू किया और मै अपनी चिंता से मुक्त हो गयी। गायत्री को दादी ने प्यार से गट्टू कहना शुरू कर दिया । दोनों बच्चियों को सँभालते हुए मम्मी जी अपनी बीमारी को जैसे भूल सी गयी थी सुबह से लेकर रात तक दोनों की छोटी से छोटी जरुरत को वो खुद पूरा कर देना चाहती थी।
दिन तो सबके सहयोग से निकल जाता पर रात निकलना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता था। खासकर जब दोनों एक साथ रोने लगती मेरी इस समस्या का समाधान मम्मी जी ने इस तरह निकला की उन्होंने 4 महीने की गट्टू को अपने पास सुलाना शुरू कर दिया और इस तरह वो नन्ही सी गट्टू की दादी से उसकी यशोदा मैया बन गयी ।
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अब तो बस गट्टू और दादी दोनों की ज़िंदगियाँ एक दूसरे के इर्द गिर्द घूमने लगी। कभी कभी मुझे लगता की कोई बीमार व्यक्ति इतना मजबूत कैसे हो सकता है।
मैंने कई बार उन्हें भयंकर तकलीफ में भी गट्टू को अपनी गोदी में खिलाते हुए देखा। इसी तरह दादी के ममतामयी आँचल की छाँव तले दोनों परियों का बचपन गुज़र रहा था।
तभी 8 महीने बाद चाची ने दोनों परियों को कान्हा जैसा प्यारा भाई दे दिया और तीनो बच्चे दादी के दिल का टुकड़ा बन गए। दादी का प्यार तीनो बच्चो के लिए समान था परन्तु गट्टू को दादी पर विशेष अधिकार प्राप्त था आखिर बेटी जो थी वो दादी की।
सुबह से रात तक गट्टू के हर काम में दादी शामिल होती।
दादी अब गट्टू की माँ ही नहीं सहेली भी बन चुकी थी मैंने कई बार मम्मी जी को दर्द में भी मुस्कुराते हुए देखा था क्योंकि गट्टू मुस्कुरा रही होती थी।
हर महीने अपने इलाज का दर्द और तकलीफ जिस मम्मी जी के आगे घुटने टेक चुकी थी वही मम्मी जी गट्टू के एक आंसू से विचलित हो जाती थी।
मेरी डांट से बचने के लिए दादी की गोद गट्टू के लिए सुरक्षित जगह बन चुकी थी।
समय गुज़रता जा रहा था दादी और गट्टू का रिश्ता और प्रगाढ होता जा रहा था वही दूसरी और बीमारी अपना प्रभाव दिखाए जा रही थी। इस तरह करीब साढ़े पांच साल गुज़र गए और आखिर उस मनहूस दिन दादी ना जाने कैसे सबको छोड़ कर चली गयी ।वो दादी जो अपनी गट्टू को देखते हुए बांहों में भर लेती थी आज उसके पुकारने पर भी जवाब नहीं दे रही थी।
गट्टू को समझ नहीं आ रहा था की दादी आज उस से नाराज़ कैसे हो गयी? पर उसकी बातों का जवाब किसी के पास नहीं था। आज काफी वक्त गुजर चुका गट्टू को बस इतना पता है की दादी तारा बन चुकी है। कई बार मैंने उसे आसमान के तारों में अपनी दादी को ढूंढते हुए देखा है चुपचाप शायद वो समझ चुकी है की दादी अब भी उस के और हम सबके आस पास ही है और अपने आशीर्वाद की बारिश करती है हम पर हमेशा….
