Motivational Story in Hindi
Motivational Story in Hindi

Motivational Story in Hindi: बचपन से ही बेला गाँव की जान थी। उसकी हँसी में ऐसी मिठास थी कि आँगन के आम के पेड़ भी झूम उठते। पिता खेतों से लौटते तो उसे कंधों पर बैठाकर खेत-खलिहान की कहानियाँ सुनाते। माँ अक्सर कहतीं—
“मेरी बेटी ज़रूर बड़े काम करेगी।”
बेला सपनों में खो जाती—“हाँ माँ, मैं आप सबको गर्व महसूस कराऊँगी।”
गाँव का जीवन सादा था, पर उसमें अपनापन और गर्माहट थी। शाम को चौपाल पर गीत गूँजते, और बच्चे मिट्टी में खेलते। पर बेला की किस्मत उसे शहर ले गई। उच्च शिक्षा के लिए उसे माँ-बाप ने बड़ी उम्मीदों के साथ शहर भेजा।
शहर की चकाचौंध ने उसकी दुनिया ही बदल दी। कॉलेज में सहेलियाँ फैशन, स्वतंत्रता और “अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने” की बातें करतीं। धीरे-धीरे बेला का मन भी उसी सोच से भरने लगा। वह सोचने लगी—“परिवार और शादी क्यों ज़रूरी है? क्या औरत सिर्फ़ रिश्तों में बंधने के लिए बनी है? क्यों न अपनी राह खुद बनाई जाए?”
कभी माँ फोन पर प्यार से कहतीं—“बेटी, पढ़ाई खत्म होने वाली है, अब तेरी शादी की सोचना चाहिए।”
बेला चिढ़कर कह देती—“माँ, प्लीज़! ये सब पुरानी बातें हैं। मैं अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीना चाहती हूँ।”
माँ चुप हो जातीं। उन्हें समझ नहीं आता कि उनकी वही बेटी, जो कभी गोद में सिर रखकर कहती थी “माँ, मैं आपको कभी छोड़कर नहीं जाऊँगी,” अब इतनी दूर क्यों हो गई है।
कॉलेज के बाद बेला को एक निजी कंपनी में नौकरी मिल गई। तनख्वाह अच्छी थी, जीवनशैली आधुनिक। वहीं उसकी मुलाकात समीर से हुई। समीर पढ़ा-लिखा, स्मार्ट और बेलौस था। दोनों की सोच एक जैसी थी। समीर ने एक दिन कहा—
“बेला, मैं भी मानता हूँ कि शादी का मतलब बंधन नहीं होना चाहिए। परिवार की परंपराएँ इंसान को कैद कर देती हैं। हम शादी करें, पर अपने ढंग से। बिना किसी दबाव, बिना किसी रिश्तों के बोझ।”
बेला ने उत्साह से कहा—“हाँ, यही तो मैं चाहती हूँ। आज़ादी… सिर्फ़ हमारी दुनिया।”
और सचमुच कुछ महीनों बाद उन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली। न ढोल-नगाड़ा, न रिश्तेदार। माँ-पिता को खबर भी बाद में मिली। माँ ने रोते हुए फोन किया—
“बेटी, हमें बुलाया भी नहीं?”
बेला ने कठोर स्वर में कहा—“माँ, ये मेरी ज़िंदगी है। आप समझ नहीं पाओगे।”
पिता ने फोन चुपचाप रख दिया।
शादी के बाद दोनों ने शहर में फ्लैट ले लिया। शुरू-शुरू में सब कुछ सपने जैसा लगा। देर रात फिल्में देखना, बाहर खाना, कहीं भी घूम आना—कोई रोक-टोक नहीं। बेला को लगता—“यही है असली स्वतंत्रता।”
पर धीरे-धीरे उस स्वतंत्रता की चमक फीकी पड़ने लगी। रोज़मर्रा की भागदौड़, ऑफिस का तनाव और घर के छोटे-छोटे काम दोनों को थका देते। न रिश्तेदारों की चहल-पहल, न आँगन में बच्चों की हँसी। घर बड़ा था, पर सन्नाटे से भरा।
एक शाम समीर ने थककर कहा—“बेला, कभी गाँव चलें? माँ-पापा को बहुत दिन हो गए देखे।”
बेला ने झट से कहा—“समीर, मुझे गाँव का बोझिल माहौल नहीं भाता। और वैसे भी, मैं छुट्टी नहीं ले सकती।”
समीर ने गहरी साँस ली और चुप हो गया।
दिन बीतते गए। एक दिन खबर आई कि समीर के पिता गंभीर रूप से बीमार हैं। समीर ने कहा—“बेला, हमें तुरंत गाँव जाना होगा।”
बेला ने बेपरवाही से कहा—“तुम जाओ, मुझे प्रोजेक्ट पूरा करना है। वैसे भी, मैं वहाँ जाकर क्या करूँगी?”
समीर अकेला चला गया।
गाँव पहुँचकर उसने पिता का हाथ थामा। माँ की आँखों से आँसू झर रहे थे। पड़ोसी पूछते—“बेटा, बहू नहीं आई?”
समीर चुप हो जाता। भीतर कहीं गहरी टीस थी।
उधर शहर में अकेली बेला फ्लैट में बैठी थी। टीवी चल रहा था, मोबाइल की स्क्रीन चमक रही थी, पर दिल खाली था। उसने महसूस किया—“क्या यही थी वो आज़ादी, जिसकी खातिर मैंने माँ-पापा को ठुकराया? रिश्तों से दूर, अकेलेपन से घिरी?”
कई दिन बाद वह गाँव पहुँची। आँगन में समीर पिता के बिस्तर के पास बैठा था। माँ चूल्हे पर खिचड़ी बना रही थीं। बच्चे खेल रहे थे। हवा में अपनापन था। बेला की आँखें नम हो गईं।
धीरे से उसने समीर से कहा—“शायद मैं गलत थी। मुझे लगा था परिवार बंधन है, पर यह तो सहारा है। असली आज़ादी रिश्तों को तोड़ने में नहीं, उन्हें निभाने में है। स्वतंत्रता का मतलब अपनेपन से भागना नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों को अपनाते हुए अपनी पहचान बनाना है।”
समीर ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में आंसू थे, पर होंठों पर मुस्कान।
“बेला, देर से ही सही, तूने सच समझ लिया।”
उस दिन के बाद से बेला का जीवन बदल गया। वह ऑफिस भी जाती, फैशन भी करती, सपनों को भी पूरा करती, पर शाम को सास के साथ रसोई में बैठकर कहती—
“माँ, आज नमक मैंने डाला है, भूलना मत कहना।”
और माँ हँस पड़तीं—“अब तू मेरी असली बेटी लगने लगी है।”
गाँव के लोग कहते—बेला अब भी आधुनिक है, स्मार्टफोन चलाती है, कार चलाती है, पर साथ ही बुज़ुर्गों के पाँव दबाती है, बच्चों को पढ़ाती है। उसमें आत्मनिर्भरता है, पर परिवार का सम्मान भी।