अटकने के भी फंडे कई तरह के होते मसलन ‘आसमान से गिरा खजूर मे अटका उड़ती पतंग का पेड़ में या बिज़ली के तार में अटकना, या हीरोइन का मंगलसूत्र हीरो के कुर्ते मे अटकना आदि। इस अटकने वाले मामले में यदि अटकना दिल का हो तो भगवान भी नहीं बचा सकते।

ऐसे ही हमारे बांकेलाल जी हैं, जिनका दिल हर खूबसूरत महिला पर अटक जाता है और यदि एक बार अटक गया, तो वो कोई भी हथकंडा अपनाना नहीं छोड़ते महिला को परमानेंट अटका के रखने का। वैसे तो बांके लाल जी की उम्र 50 पार कर चुकी है और जवानी के दिनों की प्रेमिका पत्नी के रूप में तीन जवान होते बच्चों का पालन पोषण करने में व्यस्त है पर इसमें बेचारे बांके लाल जी का क्या कुसूर जिनका दिल किसी भी खूबसूरत महिला को देखकर जनरेटर की तरह धड़धड़ाने लगता है। वैसे भी बांके लाल जी मानना है कि ह्रश्वयार करने की न तो कोई उम्र होती है न गिनती। भले ही खुद चमगादड़ के ससुर लगते हों, पर खुद को सलमान खान से कम तो कतई नहीं समझते। बांके लालजी के खोपड़ी के बालों तक ने उनका साथ छोडऩा शुरू कर दिया है, सो माथा हवाई पट्टी से कम नहीं दीखता, रंग कोयले जैसा तो नहीं पर एक दो शेड का ही फर्क समझ लो, और दांतों पर तो मशाल्ला उस पान मसाले और तम्बाकू की भरपूर कृपा है, जिसकी तीन चार पुडिय़ा वो दिन भर में गटक जाते हैं।

बांके लाल जी पैसे और दिमाग दोनों से ही रईस हैं पर अजीब लापरवाह और कंजूस किस्म के हैं, सो दोनों ही खर्च नहीं करते यानी कपड़े भी कामचलाऊ और चाल तो ढीली ढाली है ही। अब जिस इंसान में इतनी खूबिया हों, उस पर महिला का दिल अटकना तो दूर नजर तक नहीं अटकती, सो बेचारे जहां अटकने की कोशिश करते हैं वहां से 440 वोल्ट का झटका खाकर आ जाते हैं पर ‘दिल है कि मानता नहीं गीत गुनगुना कर फिर नए रस्ते पर चल पड़ते हैं। आजकल उनका दिल एक खूबसूरत और जहीन कवयित्री पर अटक गया है। कवयित्री को इम्प्रेस करने चक्कर में बांके लाल जी बुक फेयर से ढेर किताबें तक खरीद लाये और बाकायदा रट्टा भी लगा डाला। कंजूस हों पर महिलाओं पर खर्च करने में नहीं हिचकते।

अब जब दिल अटक ही गया है तो बांके जी कोई मौका नहीं छोडऩा चाहते, कवयित्री मैडम को इम्प्रेस करने का और वैसे भी जब तक प्यार या जूते में से एक चीज मिल न जाये वो इसे मिशन की तरह लेते है। वैसे भी इस कवयित्री को देखकर तो दिल ऐसा अटका कि दुनिया बेरंग सी लगने लगी है, इधर बांके लाल जी का दिल गोविंदा हुआ जा रहा है और ये मैडम फंसना तो दूर ये तो देखती भी नहीं। बांके लाल ने कई तरह की योजनाएं बनाई, अमल भी किया पर वो नहीं हो पा रहा था जो वो चाहते थे। आखिरकार उन्होंने मित्रों से संपर्क साधा, मोहतरमा की कविताएं छपवा दी और कविता पाठ भी करवा दिए। अब निशाना कुछ सही लगा, कवयित्री के दिल के तारों में कुछ कम्पन हुआ और बांके लाल के मन में लड्डू फूटने लगे। अब वो जुगाड़ में लगे थे कि एक दो सम्मान और… शायद मामला जम जाए… इस जुगाड़ में पैसा और टाइम खर्च हो रहा था पर मामला आगे नहीं बढ़ पा रहा था। इस दुविधा को उन्होंने अपने एक मित्र के सामने परोसा, ‘यार क्या करें? इत्ता वक्त तो तेरी भाभी को पटाने में भी नहीं लगा, कॉलेज के वक्त से इत्ता टफ टारगेट नहीं मिला। ‘तो काहे अपना टेम खराब कर रहा है, छोड़ कोई और ट्राई कर मित्र ने कहा। ‘अरे यार समझ नहीं रहे, इस पर हमारा दिल अटक गया है, ससुरा निकल ही नहीं रहा.. छोड़ें कैसे?

‘अरे यार! वो बहुत खूबसूरत है और अब कॉलेज का जमाना तो रहा नहीं, तब तुम हैंडसम दीखते थे, सो मामला जम जाता था मित्र ने कहा।
‘तो का हम अब नहीं जमते का, बात कर रहे हो बांके लाल पिनपिनाये। यार! वो बात नहीं जमते तो अब भी हो पर… थोड़े बाल और होते तुम्हारी खुपडिय़ा पर तो…’ आजकल तो बाल उगवाए जा सकते हैं, सहवाग ने भी तो उगवाये हैं। हमने देखा है विज्ञापन में, ‘ उसमें तो बहुत पैसा लगेगा मित्र उछले। ‘तो क्या हुआ? इत्ता कमाते किस लिए हैं? ये बताओ और क्या कमी है? बांके लाल ने पूछा। ‘यार बाकी तो ठीक है, बस नाक ठीक हो जाये और…ब्यूटी ट्रीटमेंट करा ले रंगत सुधारने वाला और कपड़े कुछ ढंग के… खरीद ले मित्र ने बात पूरी की। ये हुई न दोस्तों वाली बात, मैं सब करवा लूं, तब कहां जायेगी। पर इसमें तो लाख दो लाख खर्च हो जायेगा? मित्र ने कहा। कोई बात नहीं, तुम समझे नहीं, मामला दिल का है और आशिकी के खेल में पैसा तो खर्च करना ही पड़ता है और जब हम जमेंगे तो ये ससुरा कहीं भी अटके मामल जम ही जायेगा इस बार बांके लाल के स्वर में कांफिडेंस दुगुना था।

पर क्या होना था आखिर बांके लाल जी ने डेढ़-दो लाख रुपयों में सारे कार्यक्रम निपटा डाले और कवयित्री को अपने दिल का हाल कह डाला। जबाब में कवियत्री ने जो कहा उसे सुनकर एक बार तो आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा। मोहतरमा को किसी और से ह्रश्वयार था सो उन्होंने बांके लाल जी का निवेदन अस्वीकार कर दिया। और… ना जी ऐसा मत सोचिये हमारे बांके लालजी ने हार कतई नहीं मानी है और क्यों मानें भला। आखिरकार इत्ती लागत जो लगी है, वो भी वसूलनी है। सो वो दुगुने जोश के साथ निकल पड़े हैं खोज में।