dhrishtata ke liye kshama
dhrishtata ke liye kshama

संत तुकाराम प्रतिदिन संध्या, कीर्तन, सत्संग किया करते। इसके लिए समय निश्चित रहता। शेष समय वह जाप करते हुए अपने गृहस्थी के काम भी निपटा दिया करते। उन्हीं के गाँव का एक व्यक्ति संतजी के प्रवचन अवश्य सुनता किंतु अंदर ही अंदर उनसे ईर्ष्या भी रखता।

वह हर समय उस मौके की तलाश में रहता, जिसके कारण वह तुकारामजी को नीचा दिखा सके। संत में ऐसी कोई कमी अथवा बुराई नहीं थी, जो उस व्यक्ति के हाथ लग पाती। एक दिन संत तुकाराम की भैंस उस व्यक्ति के बगीचे में घुस गई। वहाँ बहुत से कोमल और छोटे पौधों को वह चर गई। बगीचे को तहस-नहस हुआ देखकर उस व्यक्ति को मौका मिल गया।

वह क्रोध में संतजी के पास पहुँच गया। बगीचा बरबाद हो जाने की बात कहकर उनको गालियां तक दे दीं। उनको ढोंगी बाबा तक कह दिया। अपनी प्रताड़ना सुनकर भी संत तुकाराम शांत बैठे रहे। उल्टा प्रहार नहीं किया। यह देखकर उस व्यक्ति ने समझा कि तुकाराम उनकी अवहेलना कर रहे हैं। क्रोध में आकर संतजी को डंडों से पीट दिया। अब भी संतजी पूर्ववत शांत रहे। सायंकाल के सत्संग में वह व्यक्ति नहीं पहुँचा।

हमेशा आने वाला उस दिन नहीं पहुँचा तो संतजी को बुरा लगा। वह उठे और उसके घर पहुँच गए। भैंस द्वारा किए नुकसान की क्षमा माँगी। कीर्तन में भाग लेने का आग्रह भी किया। यह देखकर वह व्यक्ति इतना द्रवित हो गया कि अपनी धृष्टता के लिए क्षमा माँगने लगा। उनके चरण छूकर उनके साथ कीर्तन में पहुँच गया।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)