Overview : पुणे की इंद्रायणी नदी क्यों है इतनी खास?
इंद्रायणी नदी पुणे की प्रमुख नदियों में से एक रही है, जो वर्षों से इस क्षेत्र की धरती को पोषित करती आ रही है। आइए जानते हैं, इस नदी के बारे में विस्तार से
Indrayani River: भारत की नदियों का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही समृद्ध और आध्यात्मिक भी है। गंगा, यमुना जैसी नदियां जहां देवस्वरूप मानी जाती हैं, वहीं महाराष्ट्र की इंद्रायणी नदी भी पुणे क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का अहम हिस्सा रही है। यह नदी न केवल जीवनदायिनी है, बल्कि इसकी धारा में आध्यात्मिक गहराई और सांस्कृतिक विरासत भी बहती है।
हाल ही में इंद्रायणी नदी चर्चा का विषय बन गई, जब 15 जून 2025 को इस पर बना एक पुराना पुल भारी संख्या में पर्यटकों के दबाव के चलते अचानक गिर पड़ा। इस हादसे ने कई लोगों की जान ले ली और कई अन्य लोग घायल हो गए। सदियों से यह पुणे शहर की पहचान का अभिन्न हिस्सा रही है और इसके किनारे बसे क्षेत्रों की सुंदरता को बढ़ाती रही है। साथ ही इंद्रायणी नदी अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए भी जानी जाती है।
इंद्रायणी नदी (Indrayani River)
इंद्रायणी नदी से जुड़ी विरासत को जानने के लिए कई सवाल हमारे मन में उठते हैं, यह नदी कहां से निकलती होती है? इसका धार्मिक महत्व क्या है? और आखिरकार, यह पुणे और आसपास के क्षेत्र के लिए कितनी अहम है? आइए, इन सभी पहलुओं को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि इंद्रायणी नदी को इतना विशेष क्यों माना जाता है?
कहां से निकलती हैं इंद्रायणी नदी
इंद्रायणी नदी का जन्म पुणे जिले के सह्याद्रि पर्वतमाला में स्थित लोनावला के पास एक छोटे से गांव कुर्वड से होता है। यह नदी वर्षा पर आधारित है और मानसून में इसका जलस्तर काफी बढ़ जाता है। लगभग 103 किलोमीटर लंबी यह नदी देहू और आलंदी जैसे दो पवित्र नगरों से होकर बहती है और अंत में भीमा नदी से मिल जाती है। लोनावला के पास “इंद्रायणी दर्शन” नामक स्थान इस नदी का प्रमुख उद्गम स्थल माना जाता है, जो प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक शांति का संगम है।
इंद्रायणी नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
इंद्रायणी नदी का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। इसके किनारे बसे दो प्रमुख तीर्थस्थल देहू और आलंदी मराठी संत परंपरा के दो महान नामों से जुड़े हैं। देहू, संत तुकाराम का जन्मस्थल है, जिनकी अभंग रचनाएं आज भी वर्कारी संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा गाई जाती हैं। वहीं आलंदी में संत ज्ञानेश्वर की समाधि स्थित है, जिन्होंने मात्र 21 वर्ष की आयु में ‘ज्ञानेश्वरी’ जैसे ग्रंथ की रचना की थी। आलंदी में ही संत ज्ञानेश्वर ने 1296 ईस्वी में ‘संजीवन समाधि’ लेकर स्वयं को ध्यान की गहराइयों में समर्पित कर दिया था।
इंद्रायणी का नाम ही इसे दिव्यता से जोड़ता है, संस्कृत में ‘इंद्रायणी’ का अर्थ होता है ‘दिव्य नदी’ या ‘देवी स्वरूप धारा’। यही कारण है कि इस नदी को केवल जलधारा नहीं, बल्कि पुण्य और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम माना जाता है।
बृहस्पति ग्रह से हैं इंद्रायणी नदी का संबंध
भारतीय ज्योतिष में इंद्रायणी नदी का संबंध बृहस्पति ग्रह से जोड़ा गया है, जिसे ज्ञान, धर्म और शुभता का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से बृहस्पति के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और जीवन में शुभता का संचार होता है। विशेषकर मीन राशि वालों के लिए यह नदी आध्यात्मिक रूप से अत्यंत लाभकारी मानी जाती है, क्योंकि मीन एक जल तत्व राशि है और इंद्रायणी जल तत्व की शक्ति का प्रतीक है। पूर्णिमा जैसे शुभ अवसरों पर नदी किनारे पूजा और स्नान का विशेष महत्व बताया गया है।
इंद्रायणी नदी पर हाल में हुआ हादसा
15 जून 2025 को जो हादसा हुआ, उसने सभी को झकझोर दिया। इंद्रायणी नदी पर बना एक पुराना पुल, जिसे वर्षों से यातायात और तीर्थयात्रा का माध्यम माना जाता था, भारी भीड़ के दबाव में अचानक टूट गया। हादसे के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु पुल पर मौजूद थे, जिनमें से कई जान से हाथ धो बैठे और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।
