Summary: दिल, दिमाग और शरीर: जब भावनाएं बन जाएं बीमारी की वजह
हमारी भावनाएं केवल मन तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि शरीर के हर अंग को प्रभावित करती हैं। गुस्सा लिवर को, डर किडनी को, और दुख फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है।
Emotion effect on Health: भले ही साइंस कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हमारी भावनाएं हमारे अंगों को प्रभवित करती हैं। ये लॉजिकल पैटर्न का पालन नहीं करते हैं, इन्हें डेटा तक भी सीमित नहीं किया जा सकता है। बल्कि इन्हें लोगों के व्यक्तिगत इतिहास, ट्रॉमा और याददाश्त द्वारा आकार दिया जाता है। आज इस आर्टिकल में जानते हैं कि अलग अलग भावनाएं किस तरह से हमारे शरीर के अलग अलग अंगों को प्रभावित करती हैं।
दिल – प्यार, खुशी और भावनात्मक आघात

दिल सिर्फ एक ब्लड पंप नहीं है, बल्कि यह हमारे शरीर का पहला अंग है जो हमारी भावनात्मक दुनिया पर प्रतिक्रिया करता है। जब हम बेहद खुश होते हैं, तो हमारा दिल हल्का महसूस करता है। जब हम विश्वासघात या नुकसान का अनुभव करते हैं, तो दिल को दुखता है। अचानक होने वाले दुख या दिल टूटने जैसा भावनात्मक आघात, तेज धड़कन या ताकोत्सुबो सिंड्रोम जैसे हार्ट कंडीशन को जन्म दे सकता है, जो दिल के दौरे की तरह होता है।
लिवर – गुस्सा, नाराजगी और निराशा

ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन (TCM) के अनुसार, लिवर गुस्से का घर है। टकराव के डर या सांस्कृतिक कंडीशनिंग की वजह से जब गुस्से को दबाया जाता है, तो यह गायब नहीं होता। यह लिवर में अंदर तक बस जाता है, चेस्ट को टाइट करता है, चिड़चिड़ापन पैदा करता है और क्रॉनिक थकान और हार्मोनल असंतुलन में योगदान देता है।
फेफड़े – दुख, उदासी और अनकहा नुकसान

दुख फेफड़ों में ब्स जाता है। जब हमारा दिल टूटता है तो हम आह भरते हैं, दुख के समय हमारी सांसें छोटी हो जाती हैं और कई लोग तो खुद को ठीक से सांस लेने में असमर्थ पाते हैं। सांस संबंधी समस्याएं अक्सर तब सामने आती हैं, जब दुख व्यक्त नहीं किया जाता है।
किडनी – डर, सदमा और असुरक्षा

डर, खासकर क्रॉनिक डर और सर्वाइवल स्ट्रेस किडनी को कमजोर कर देता है। किडनी को जीवन शक्ति (Qi) का भंडार माना जाता है। छोड़ दिए जाने का डर, मृत्यु का डर, आर्थिक बर्बादी का डर, इस एनर्जी सोर्स को खत्म कर देते हैं और इसके रिजल्ट में पीठ के निचले हिस्से में दर्द, एड्रेनल थकान या पेशाब संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
पेट और स्प्लीन (तिल्ली) – चिंता, बेचैनी और अधिक सोचना

चिंता हो जाए तो यह पेट में हलचल मचाती है। बहुत ज्यादा सोचना, जुनूनी योजना बनाना, डरावनी कल्पनाएं करना, पाचन को बाधित करता है। किसी बड़े ईवेंट से पहले नॉशिया, बोलने से पहले पेट में गांठ महसूस होना या चिंता के दौरान भूख न लगना पेट पर इमोशनल भार पड़ने के संकेत हैं।
आंत – अपराधबोध, शर्म और पकड़

कोलोन में सिर्फ बेकार चीजें ही नहीं होती हैं। इसमें भावनाएं भी होती हैं जिन्हें हम बाहर नहीं निकालते हैं। कब्ज अक्सर भावनात्मक पकड़ से जुड़ा होता है, अतीत की शर्म, अपराधबोध जिसे माफ नहीं किया गया है, या ऐसे रहस्य जो चुपचाप पनपते रहते हैं। आंत की हेल्थ हमारी इमोशनल फ्लेक्सिबिलिटी को दर्शाती है।
त्वचा – सीमाएं, पहचान और भावनात्मक जोखिम

स्किन एक अंदरूनी अंग नहीं है, लेकिन यह हमारी सबसे बाहरी इमोशनल ढाल है। एक्जिमा, मुंहासे या पित्ती जैसी स्किन संबंधी समस्याएं अक्सर शर्मिंदगी, स्ट्रेस या इमोशनल कमजोरी के दौरान बढ़ जाती हैं।
