sahishnuta
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एक व्यापारी की सन्त तुकाराम पर अतीव श्रद्धा थी। उसने उनके वस्त्र देख स्वयं के वस्त्रें से तुलना की, तो उसे बड़ा ही दुःख हुआ कि तुकारामजी मोटे और फटे-पुराने वस्त्र पहनते हैं, जबकि उसके वस्त्र धुले और कीमती हैं। बस उसने तुकाराम की नाप का मखमल का एक जाकिट बनवाया और उसे लेकर उनके पास पहुँचा, किन्तु तुकाराम ने उसे ना अस्वीकार कर दिया। इस पर व्यापारी बोला, “मैं इसे भक्ति भाव से भेंट कर रहा हूँ, आप यह स्वीकार करें।” उसका अधिक आग्रह देख तुकाराम ने वह जाकिट ले लिया। वह व्यापारी बोला, “मगर इसे आपको पहनना भी होगा। मैं कल देखने आऊँगा कि आप इसे पहनते हैं या नहीं।”

इस पर तुकारामजी मुस्वफ़ुरा दिये। दूसरे दिन वह व्यापारी तुकाराम के घर आया, तो उसने पाया कि उन्होंने वह जाकिट उल्टा पहना है। वह बोला, “स्वामीजी! आपने इसे ठीक तरह से नहीं, उल्टा पहना है।” तुकाराम ने जवाब दिया, “ठीक ही पहना है मैंने! बात यह है कि मखमल को शरीर से चिपकाकर मैं उसका सुख ले रहा हूँ तथा अन्दर का अस्तर जो सामने किया है, वह तो लोगों को दिखाने के लिए किया है कि सन्त पुरुष कीमती वस्त्र नहीं पहनते।”

तब उसको व्यापारी को प्रतीत हुआ कि सन्त पुरुषों पर लक्ष्मी का असर नहीं पड़ता है। उसने उनसे क्षमा माँगी और कहा कि आप अपने नित्य के ही वस्त्र पहना करें।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)