lalasa ki seema nahi
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विश्व साहित्य में श्रीभगवद्गीता का अद्वितीय स्थान है। यह साक्षात भगवान के मुख से निकली दिव्य वाणी है। इस छोटे से ग्रंथ में इतनी विलक्षणता है कि अपना कल्याण चाहने वाला किसी भी धर्म, देश, संप्रदाय, मत आदि का मनुष्य इस ग्रंथ को पढ़ते ही इसमें आकृष्ट हो जाता है। इसमें अर्जुन को निमित्त बनाकर मनुष्य मात्र के कल्याण का उपदेश है। अर्जुन प्रश्न करते हैं और भगवान उनकी जिज्ञासा शांत करते चलते हैं। इसी सिलसिले में अर्जुन ने पूछा- “प्रभु! मनुष्य के लिए धन-दौलत एकत्रित करने की कोई सीमा क्यों नहीं है? यहाँ लखपति, करोड़पति बनना चाहता है और करोड़पति, अरबपति। ‘ज्यादातर मनुष्यों का उद्देश्य धन का असीम संग्रह करना ही होता है। इसके लिए वे बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वासघात, टैक्स की चोरी आदि करके, दूसरों का हक मारकर, मंदिर, बालक, विधवा आदि का धन दबाकर और इसी तरह के अनेक अनैतिक काम करके धन का संचय करना चाहते हैं और करते ही चले जाते हैं। ऐसा क्यों?’

भगवान ने अर्जुन को समझाया ‘अर्जुन! मनुष्य के अंदर अविनाशी ईश्वर का अंश है जिससे मनुष्य जिंदा रहता है और धन दौलत कमाता है। जीव अविनाशी है और धन दौलत नाशवान हैं। तो तुम्ही बताओ कि अविनाशी की तृप्ति नाशवान पदार्थों से कैसे हो सकती है? इसीलिए धन-दौलत इकट्टा करने की कोई भी सीमा हो ही नहीं सकती।’

“प्रभु!” अर्जुन ने आश्चर्य जताया। ‘ऐसे कमाते-कमाते मनुष्यों को याद ही नहीं रहता कि वे बूढ़े हो जाएंगे तो इस अपार संपत्ति का क्या होगा और मरते समय यह धन-दौलत उनके क्या काम आएगी। उस समय यह धन संपत्ति खुद को ही बहुत दुख देगी। इस संपत्ति के लोभ के कारण ही उन्हें बेटा-बेटी से डरना पड़ता है और यहाँ तक कि नौकरों से भी डरना पड़ता है कि कहीं वे लोग हड़प न लें तो प्रभु! इसका कोई हल तो बताइए।’

भगवान बोले- ‘अर्जुन! इसका हल तो बहुत सरल है_ पर बिरले ही उसे अपनाते हैं। जितनी तुम्हारी जरूरत है, वर्तमान में और भविष्य भी, अपने कमाये हुए धन में से उतना ही अपने पास रखो_ बाकी का ‘सर्व भूत हिते रताः’ कर दो अर्थात् जरूरतमंदों में बांट दो। ऐसा करने से धन-दौलत एकत्रित करने की सीमा अपने आप ही आ जाएगी।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)