Hindi Best Story: रिया गौर वर्ण, तीखे नैन-नक्श, लंबे केश और छरहरी काया की स्वामिनी थी। स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही लेखन क्षेत्र में बहुत रुचि थी।
छरहरी सी चलती ट्रेन, रास्ते में आयी अंधेरी गुफा में घुसती फिर धीरे-धीरे बाहर उजाले में आ जाती। फिर दूसरी…फिर तीसरी… ऐसे ना जाने कितनी गुफाओं के अंधेरे- उजालों से आंख-मिचौली खेल रही थी, बिलकुल मेरे जीवन की तरह। बाहर रिमझिम फुहारें प्रकृति को निहारते मेरे चेहरे को भिगों रहीं थीं। मैं इन निश्चल फुहारों का बेफिक्री से आनंद ले रही थी। सच कहूं तो अरसे बाद ऐसा सुकून
और आनंद जिया था मैंने। सफर में आती-जाती ये गुफाएं मानो मुझसे कह रहीं हो कि रिया ‘जीवन का सफर भी ऐसे ही अंधेरे और उजालों से भरा हुआ है। अंधेरा आया है तो उजाला नियम से आएगा। तुम भी अपना अतीत इन्हीं आती-जाती गुफाओं की तरह पीछे छोड़ दो और प्रकृति की इस हरियाली
से अपने जीवन का कैनवस भर लो। इस बॉडी शेमिंग का डट कर मुकाबला करो। हताशा, निराशा को अपने जीवन से बाहर निकाल दो ‘गो रिया गो।’ मैं अपने विचारों में मग्न थी कि मुझे पता ही नहीं चला कि पब्लिशिंग हाउस की संस्थापिका मालिनी जी की मिस्ड कॉल्स थी। मैंने उन्हें फोन करने के लिए फोन उठाया ही था कि उनका पुन: फोन आ गया।
‘हेलो…।’
‘रिया, कहां हो तुम…।’ ‘मालिनी जी, मैं कुछ दिनों के लिए शिमला आई हूं और मैं…’ ‘मैं, वह छोड़ो…अच्छा सुनो…आई हैव अ गुड न्यूज फॉर यू, बॉडी शेमिंग पर लिखे तुम्हारे उपन्यास…’
‘धीमे जहर की किरचें’ ने तो हर तरफ धूम मचा दी। बॉडी शेमिंग जैसे कुकृत का दर्द तुमने अपने उपन्यास में जिस मामिकता के साथ दर्शाया है, वो काबिले तारीफ है। ये बॉडी शेमिंग नि:संदेह एक
धीमा जहर है। इसके अपमान की वेदना इंसान को अवसाद के दलदल में धकेल देती हैं जिसकी किरचें उसे आजीवन चुभती रहती हैं। यू नो फेसबुक इंस्टा पर लोगों ने इस धीमे जहर के प्रति खुल कर अपनी प्रतिक्रिया दी है।’
‘और हां, उससे भी बड़ी खुशखबरी ये है कि तुम्हें सर्वश्रेठ लेखिका के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।’ वे पुन: चहकते हुए बोलीं।
‘क्या बात है रिया इतनी बड़ी खुशखबरी और उपलब्धि पर तुम्हें
प्रसन्नता नहीं हुई, इज एवरीथिंग ओके’ उन्होंने संकोचवश पूछा, ‘जी मालिनी जी एवरी थिंग इस ओके!’ ‘मैं बहुत खुश हूं।’
‘गुड तुम वापस कब आ रही हो, मैगजीन वाले तुम्हारा इंटरव्यू पॉडकास्ट
करना चाहते हैं।’ ‘जी मैं दो-चार दिन में आ जाऊंगी।’ ‘गुड! सी यू सून बाय’ कह कर मालिनी जी ने फोन रख दिया। उनका फोन रखने के बाद मेरी आंखों के भीगे कोर मुझे एक साधारण सी मोटी रिया से सर्वश्रेष्ठ लेखिका तक के सफर पर ले गई। मैं रिया गौर वर्ण, तीखे नैन-नक्श, लंबे केश और छरहरी काया की स्वामिनी थी। स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही मेरी लेखन क्षेत्र में बहुत रुचि थी।
कॉलेज में सभी मेरे लेखन की तारीफ करते, खासतौर पर जब मेरा सबसे प्रिय मित्र प्रणय मेरी मुक्तमुख से प्रशंसा करता मैं पुलकित हो जाती। वो कहता, ‘रिया तुम्हारी कहानियां सार्थक अर्थ के
साथ एक सकारात्मक संदेश देती हैं। जो भावनाएं दर्द शब्द व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं। तुम्हारी कहानियां उन्हें
बखूबी समझा देती हैं, देखना तुम एक दिन बहुत बड़ी लेखिका बनोगी।’ वक्त के साथ-साथ हमारी दोस्ती का रिश्ता कब आगे निकल गया पता ही नहीं चला। हम प्रेम के आसमान में उड़ने लगे। दिन
यूं ही मदमस्त, मदहोश से बीत रहे थे, किंतु नियति को कुछ और मंजूर था।
कॉलेज के अंतिम वर्ष तक आते-आते हार्मोनल डिस्टरबेंस के कारण मैं मोटी होने लगी थी। इस परिवर्तित काया का सबसे ज्यादा असर मेरे जीवन पर पड़ा। प्रणय अब मुझसे दूर-दूर रहने लगा।
अक्सर ही वो सबके सामने मुझे ‘मोटी’ बोल कर मेरा मजाक बनाता। उसका मजाक मुझे अपमानित कर भीतर तक छलनी कर देता था पर मैं खामोश रहती। बहुत दिन तक जब सब यूं ही चलता रहा तो हार कर मैंने उससे पूछा, ‘प्रणय तुम मुझसे दूरियां क्यों बना रहे हो, क्या हुआ है तुम्हें पता है ना आई लव यू’ ‘ओह! कम ऑन रिया मुझसे पूछने से पहले एक बार अपने आप को देख तो
लेती। रिया कितनी मोटी हो गई हो तुम और मैंने एक छरहरी काया वाली रिया से प्रेम किया था, ना कि एक बेडौल, मोटी रिया से। एक मोटी के साथ रह कर मैं अपना मजाक नहीं बनवा सकता। वी डोंट मैच ईच अदर, इट्स ऑल ओवर।’ उसके इस अपमान भरे व्यवहार से मैं सिर से पांव तक शून्य हो
गई। उसकी निर्लज्ज हंसी ने मेरी आत्मा, मेरे आत्मसम्मान और मेरे प्रेम की धज्जियां उड़ा दी।
‘पर ये सब मेरे हाथ में नहीं है प्रणय। हार्मोनल डिस्टर्बंेस के कारण ये सब हो रहा है’ मैंने अपने आप को संभालते हुए कहा ‘तो मैं क्या करूं, आई कांट स्पॉइल माय लाइफ। सो नाउ गुड बाय फॉरएवर।’ कह कर वो एक पल में सब खत्म करके बड़ी बेरुखी से चला गया। इस धीमे जहर के अपमान की किरचें मुझे रोज चुभती। मन में ऊट-पटांग ख्याल आते। मैंने कहीं बाहर आना-जाना, सबसे मिलना-जुलना छोड़ दिया, अपने ही खोल में सिमट गई थी मैं। मां मेरी दशा देख कर बहुत चिंतित
होती। एक दिन वे मेरे सिर पर हाथ रख कर आत्मीयता के साथ बोलीं, ‘रिया बेटा ये जीवन कठिन और विषैले पथ से भरा होता है और उस पर किस तरह से चलना हैं। ये हम पर निर्भर करता है। हिम्मत से चलोगी तो मंजिल फतेह करोगी, अन्यथा ऐसे ही हारती रहोगी।
बेटा औरत तो शक्ति और सहनशीलता का प्रतीत होती है। ये जो हमारा शरीर है ना ये तो ईश्वर की देन है। अब मोटा, पतला, काला फिर गोरा होना, ये हमारे हाथ में थोड़ी ना होता है बेटा, हम तो
सिर्फ शरीर को संतुलित बनाने का प्रयास कर सकते हैं। हमें तो हर हाल में अपने आप और अपने शरीर से प्रेम करना चाहिए। उसका सम्मान करना चाहिए। हम ही अपने शरीर को प्रेम नहीं करेंगे, उसका सम्मान नहीं करेंगे, तो बाहर वाले तो बोलेंगे ही ना। हमें अपनी कमियों को शक्ति बना कर
हीनभावना से बाहर निकलना है। देखो बेटा कुछ तो लोग कहेंगे और लोगों का काम है कहना, उन्हें तो हर परिस्थिति में बोलना है मोटे हो, पतले हो, गोरे हो या फिर काले, उन्हें तो व्यंग करने हैं लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं की हम ऐसी परिस्थिति से कायरों की तरह पलायन करके अपना आत्मविश्वास खो दे।

ये जीवन बड़ा अनमोल है बेटा, इसलिए एक निडर वीरांगना बनकर बॉडीशेमिंग जैसे कुकृत से लड़ो
बिलकुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह। उन्होंने अपने हथियार से दुश्मनों को परास्त किया था। तुम अपने गुणों के हथियार से उन्हें परास्त करो। अब से एक वीरांगना बनकर नवजीवन का आरंभ करो। ऐसे अपने आप को कमरे में बंद करके, रो कर इस धीमे जहरबॉडी शेमिंग की लड़ाई कैसे लड़ोगी।
“ये जीवन बड़ा अनमोल है बेटा, इसलिए एक निडर वीरांगना बनकर बॉडीशेमिंग जैसे कुकृत से लड़ो बिलकुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह। उन्होंने अपने हथियार से दुश्मनों को परास्त किया था।”
तुम्हें याद है ना वो पड़ोस वाले शर्मा जी की बेटी दिव्या ने इसी बॉडीशेमिंग के दर्द और अपमान के कारण अपनी जीवन लीला समाप्त करने का प्रयत्न किया था। बेटा तुम्हारे और दिव्या जैसी ना जाने कितनी लड़कियां होंगी जिन्हें ये धीमा जहर पीना पड़ता होगा, हर जगह मजाक बनता होगा और तुम्हें पता है रिया बॉडी शेमिंग सिर्फ लडकियां ही नहीं, लड़के भी इसका शिकार होते हैं। कितने ऐसे लड़के होते हैं जिन्हें अपनी शारीरिक रचना के कारण हंसी का पात्र बनना पड़ता है। इसलिए रिया तुम्हें
अपने कलम की ताकत से क्रांति ला कर इस धीमे जहर के खिलाफ सबकी आवाज बनना होगा।
चलो अब उठो देखो एक नया उजाला पंख फैलाए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।’ कह कर मां ने जैसे ही खिड़की खोली पूरा कमरा उजाले से भर गया। मां की बातों ने मुझमें मेरा खोया आत्मविश्वास जगा
दिया था। तभी ट्रेन की सीटी मुझे अतीत से वर्तमान में ले आयीं।
शिमला के बुक स्टोर्स पर अपने रखे उपन्यास को देख कर मैं स्वयं पर गार्वित हो गई। अवसाद के अंधेरी गलियों से इस बुक स्टोर के उजालों तक का सफर मुझे अत्यंत सुखद लग रहा था।
वापस पहुंच कर जब मैं मालिनी जी के ऑफिस गई तो वहां प्रणय को देख कर मैं मूर्तिवत हो गई। फिर कुछ क्षण पश्चात अपने आप को संयत कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ भीतर चली गई।
‘गुड मॉर्निंग मालिनी जी।’ ‘गुड मॉर्निंग रिया, वेलकम बैक, इनसे मिलो ये हैं मिस्टर प्रण! और ये अपनी मैगजीन के लिए तुम्हारा इंटरव्यू पॉडकास्ट करना चाहते है।’ उनकी बात सुन कर मैं कुछ क्षण मौन हो कर बोली, ‘हेलो मिस्टर प्रणय, बट आई एम सॉरी मालिनी जी मैं इनके लिए इंटरव्यू
पॉडकास्ट नहीं कर सकती। एक मोटी लड़की इसके लिए फिट नहीं है! कह कर मैं उनके ऑफिस से बाहर आ गई। प्रणय की झुकी नजर और मेरा अनिमेष दृष्टि से उसकी ओर देखते हुए बोलना, शायद मालिनी जी बहुत कुछ समझ गई थीं क्योंकि आंखों की भाषा शब्दों की भाषा से अधिक प्रबल होती है। बाहर निकल कर एक सुखद अनुभूति हो रही थी मुझे, अब शायद इन किरचों की चुभन कम होगी।
