deep-baalee-maatee
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सुंदर दीप अपने प्रकाश से पथिकों का पथ प्रदर्शन करता था। आते-जाते लोग उसकी प्रशंसा करते। तेल और बाती सुनते और कुढ़कर रह जाते। एक दिन दोनों ने झगड़ने की ठानी। बाती बोली- “मैं तिल-तिल कर जलती हूँ, पर नाम तुम्हारा होता है। अगर मैं न होती तो तुम्हारा अस्तित्व ही कहां?”

तेल ने, भी छलक कर कहा, “और जो मैं अपनी बूंद-बूंद से तुम्हें सींचता हूँ, तुम्हारे कोटर में ही धीरे-धीरे शेष हो जाता हूँ। मैं न होता तो यह नाम और प्रशंसा तुम्हें कहां से मिलती?” दीप धीरे से हंसा और शांत स्वर में बोला, “सच ही तो! मैं तो मात्र माटी की आकृति हूँ। तेल मेरा प्राण है और बाती आत्मा, तुम दोनों के सहयोग से निकलने वाला आलोक ही आत्मा का प्रकाश है जो सदैव ही अंधकार को दूर करता रहा है। एक दूसरे के बिना हम तीनों ही अस्तित्वहीन हैं।” दीप की बात सुन दोनों ही लज्जित हुए।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)