Hindi Short Story: एक घने जंगल में एक बड़ा सा पेड़ था। उसी पेड़ की ऊँची डाल पर एक चिड़िया और उसका परिवार रहता था। नीचे उसी पेड़ के तले रहते थे बंदर महाराज। वे बड़े ज्ञानी माने जाते थे। हमेशा अपने पास मोटा सा पंचांग रखते और हर आने-जाने वाले को भविष्य बताते। जंगल के जानवर अक्सर उनसे राय लेने आते।
चिड़िया का जोड़ा रोज़ बंदर महाराज की बातें सुनता और मन ही मन सोचता – “वाह! बंदर महाराज कितने बुद्धिमान हैं। काश हमारा बच्चा भी पढ़-लिखकर इतना ज्ञानी बन जाए।”
एक दिन चिड़िया का जोड़ा साहस करके बंदर महाराज के पास पहुँचा और विनम्रता से बोला –
“महाराज! आप इतने ज्ञानी हैं, कृपया हमारे बच्चे को भी पढ़ा दीजिए। वह भी विद्या सीख लेगा।”
बंदर महाराज यह सुनकर फूल गए। परंतु उनके मन में अहंकार आ गया। वे हँसकर बोले –
“अरे! तुम तो चिड़िया हो। तुम्हारा बच्चा क्या विद्या सीखेगा? यह सब मेरे जैसे समझदारों के काम हैं।”
यह सुनकर चिड़िया का दिल टूट गया। वह उदास होकर पेड़ पर लौट आई। लेकिन बच्चा तो बच्चा होता है। जब भी बंदर महाराज नीचे पंडिताई करते, पंचांग खोलकर बड़े-बड़े श्लोक पढ़ते, तो ऊपर डाल पर बैठा चिड़िया का बच्चा जोर-जोर से चूं-चूं करने लगता।
शुरू में बंदर महाराज ने सहन किया, पर बार-बार आवाज सुनकर उन्हें गुस्सा आने लगा। एक दिन उन्होंने गुस्से में आकर चिड़िया के बच्चे को डाँटा और मार भी दिया। बच्चा घायल हो गया और कई दिन तक शांत रहा।
समय बीतने पर बंदर महाराज को अचानक उसकी आवाज याद आने लगी। अब जब चिड़िया का बच्चा नहीं चहचहाता, तो बंदर महाराज को अपना अकेलापन खटकने लगा। एक दिन उन्होंने चिड़िया से पुकारकर पूछा –
“बहन चिड़िया, तुम्हारा बच्चा कहाँ है? कई दिन से दिख नहीं रहा।”
चिड़िया ने उदासी से कहा –
“महाराज, आपने उसे मारा था। वह घायल हो गया था। अब ठीक है, पर वह आपको परेशान नहीं करेगा।”
बंदर महाराज को यह सुनकर ग्लानि हुई। उन्होंने तुरंत कहा –
“नहीं-नहीं, उसे भेजो। मुझे उससे मिलना है।”
जब चिड़िया का बच्चा आया तो बंदर महाराज ने उसके छोटे-से सिर पर हाथ फेरते हुए कहा –
“बेटा, मुझे माफ कर दो। मैंने अहंकार में आकर तुम्हें चोट पहुँचाई। असली ज्ञानी वही है जो सबको विद्या दे। कल से मैं तुम्हें पढ़ाऊँगा।”
उस दिन से बंदर महाराज रोज़ चिड़िया के बच्चे को पढ़ाने लगे। धीरे-धीरे बच्चा भी समझदार और होशियार बन गया। दोनों अक्सर पढ़ाई के साथ खेलते और बातें करते।
