chaakshush manu
chaakshush manu

Hindi Katha: स्वयंभू मनु पहले मनु हुए। इनके बाद स्वारोचित दूसरे, उत्तम तीसरे और तामस चौथे मनु हुए। इन्हीं चौथे मनु के समय भूमंडल पर अंग नाम के एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनके चाक्षुष नामक एक तपस्वी पुत्र था। एक बार चाक्षुष ब्रह्मर्षि पुलह की शरण में गया और उनसे विनित शब्दों में बोला – ” प्रभु ! मैं बड़ी आशा लेकर आपकी शरण में आया हूँ। भगवन् ! मुझे अपना सेवक समझकर उपदेश दीजिए, जिससे मैं उत्तम ‘श्री’ प्राप्त कर सकूँ । मुझे पृथ्वी का अखण्ड राज्य प्राप्त हो। मेरी भुजाओं में अपूर्व बल उत्पन्न हो जाए और अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग में मैं पूर्णरूप से निपुण हो जाऊँ। मेरी संतान चिरंजीवी हो । मेरी आयु विघ्न-बाधाओं से रहित हो और अंत में मैं स्वर्ग प्राप्त कर सकूँ। “

चाक्षुष की बात सुनकर मुनि पुलह ने शांत स्वर में उपदेश देते हुए कहा “राजन ! तुम भगवती जगदम्बा की आराधना करो। माता भगवती परम दयालु भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली देवी हैं। उनकी कृपा से तुम्हारी सभी इच्छाएँ अवश्य पूर्ण हो जाएँगी।” चाक्षुष बोला मुनिवर ! भगवती जगदम्बिका की आराधना का क्या स्वरूप है? उनकी आराधना कैसे की जाती है ? कृपया विस्तार से समझाने की कृपा करें। “

-मुनि पुलह बोले – ” हे राजन! भगवती की पूजा-पद्धति सनातन है। इसमें सरस्वती बीज मंत्र का निरंतर जप करना चाहिए। तीनों कालों में निरंतर बीजमंत्र का जप करने वाला मनुष्य भक्ति और मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इसका जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। देवताओं को इसी जप के प्रभाव से शक्ति प्राप्त हुई है । अतः तुम इस मंत्र का नियमित जप करो। इसके फलस्वरूप तुम्हें शीघ्र समृद्धिशाली राज्य प्राप्त होगा। इसमें कोई संदेह नहीं समझना चाहिए। “

पुलह के परामर्श के अनुसार चाक्षुष विरजा नदी के तट पर गया और वहाँ कठिन तपस्या करने लगा। उसने देवी के श्रेष्ठ मंत्र का जप करना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया था। बारह वर्ष तक निराहार रहकर उसने निरंतर सरस्वती- मंत्र का जप किया। अंततः भगवती ने उसे दर्शन दिए और इच्छित वर माँगने को कहा। चाक्षुष ने देवी को अपना मनोरथ बताया।

तब देवी भगवती बोलीं ‘वत्स ! मैं तुम्हें इच्छित वर प्रदान करती हूँ। मेरे वरदान से तुम्हें छठे मन्वंतर का राज्य प्राप्त होगा और तुम छठे मनु के नाम से प्रसिद्ध होंगे। इसके अतिरिक्त तुम्हें पराक्रमी और श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति होगी । तुम्हारा भावी राज्य निष्कंटक होगा और अंत में तुम मेरे धाम में उत्तम स्थान प्राप्त करोगे । “

इस प्रकार चाक्षुष को उत्तम वर प्रदान कर भगवती अंतर्धान हो गईं। भगवती की कृपा से पाँचवे मनु रैवत के पश्चात् चाक्षुष छठा मनु हुआ । उसे सम्पूर्ण भूमण्डल का राज्य प्राप्त हो गया। उसके अनेक बलशाली और गुणी पुत्र हुए। वे सभी भगवती के परम भक्त थे। देवी भगवती की कृपा से छठे मनु के रूप में राज्य करने के बाद अंत में चाक्षुष देवी के परमधाम में चला गया।