बहुत समय पहले की बात हैए जंगल में एक बाघ रहता था। वह इतना बूढ़ा हो गया था कि शिकार करने नहीं जा सकता था। एक दिन तालाब के किनारे टहलते समय उसने सोने का कंगन पाया। उसने झट से उसे उठा लिया व सोचा कि कंगन की मदद से किसी को भी जाल में फांसा जा सकता है।
एक दिनए एक मुसाफिर वहाँ से गुजरा। उसे देख कर बाघ ने सोचा- यह कितना स्वादिष्ट भोजन बन सकता है! वह पंजे में कंगन थाम कर जोर से बोला- ‘मेरे पास सोने का कंगन है। मुझसे दान में ले लो।
मुसाफिर सोने का कंगन पाना चाहता था। उसने सोचा कि उसे पाकर मैं अमीर हो जाऊँगाए पर जंगली जानवर के पास जाना भी खतरे से खाली नहीं है। इसलिए उसने बाघ से कहा- ‘ मैं तुम्हारे पास आया तो तुम मुझे मार डालोगे।
चतुर बाघ ने मासूमियत से कहा- ‘मित्रए बेशक मैं अपनी जवानी में काफी निर्दयी और दुष्ट थाए लेकिन अब मैं सिर्फ दान देता हूँ। वैसे भी काफी बूढ़ा हूँए मेरे पंजे और दाँत भी इतने तीखे नहीं रहे इसलिए तुम्हें मुझसे डरने की जरूरत नहीं है।
लालची मुसाफिर ने उस पर भरोसा कर लिया। बाघ को भी यह देख कर खुशी हुई कि मुसाफिर उसकी बातों में आ गया। उसने मुसाफिर को सलाह दी कि दान लेने से पहले उसे स्नान कर लेना चाहिए। ज्यों ही मुसाफिर स्नान करने पानी में उतराए वह दलदल में फँस गया। उसने तालाब से निकलने की काफी कोशिश की पर असफल रहा।
बाघ ने उस पर दया दिखाने का दिखावा करते हुए कहा- ष्हे भगवानए तुम यहाँ फँस गए। कोई बात नहींए मैं अभी तुम्हें बाहर निकालता हूँ।
यह कह कर वह जो आया और सानिकोपी से पह का किनारे तक खींच लाया अब तक उस व्यक्ति को बाप की चालाकी समझ आ ई थी उसने सोचा-मुझे इस जगली जानवर पर भरोसा नहीं ना चहिए या लव ने डोपा जसका मुझे मादशा नि हत हो चुकी थी बाधने उसपर झापा माराव मार कर खा गया
शिक्षा-लालच को बुद्धि बीमा नै हो।