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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

तीन साल का अबोध सनी पके हुए आम को मजे ले लेकर खाता रहा। कुछ मुँह में, कुछ चेहरे पर और कुछ टीशर्ट पर गिरता रहा। गुठली को दम लगाकर चूसता रहा। घर के अन्य बच्चे हाथ-मुँह धोकर साफ-सुथरे हो गए। सनी गुठली को छोड़ने को तैयार न था। छीनने पर जोर-जोर से रोने लगता। अंत में उसकी माँ रीमा ने घर के बाहर खाली जमीन में एक छोटा-सा गड्ढा खोदते हुए सनी से कहा कि, “इसमें यह गुठली बो दो” सनी तैयार न हुआ तो माँ ने पुनः उसका लाभ समझाया, “बाद में इसमें से ढेर सारे आम निकलेंगे।” सनी आश्चर्य के साथ तैयार हो गया। माँ-बेटे ने गुठली को मिट्टी के हवाले किया।

रीमा तो भूल ही जाना चाहती थी, पर सनी रोज उस जगह को निहारता और माँ से कई सारे सवाल करता। एक दिन सनी अचानक जोर से चिल्लाया, “माँ, माँ, इधल आओ, ऐ देखो, माँ….माँ…।” रीमा को दौड़कर आना ही पड़ा, साथ ही परिवार के अन्य लोग भी इकट्ठा हो गए। सनी को समझाना आसान नहीं था कि उसी गुठली से अंकुर फूटा है जो एक दिन बड़ा वृक्ष बनकर बहुत सारा आम देगा। सनी की जिज्ञासा और नन्हें पौधे की रखवाली दोनों बढ़ती गई।

समय बीतता गया और रौनक बढ़ती गई। सनी आठ साल का और आम का वृक्ष पाँच साल का। गौरा-गौरैया, मोना-मैना, टिंकू-तोता और गुटरू-कबूतर भी सपरिवार यहीं रहने लगे। शेरू कुत्ता और बेला कुतिया का भी यहीं रैन बसेरा हो गया। आम की मधुर मंजरी ने वसंत में कुक्कू कोयल को भी आमन्त्रित किया। रीमा भी सबसे नजरें बचाकर आम की छाँव तले सुकून का अनुभव करती। छोटे-छोटे नवोदित टिकोरों ने बच्चों को बाँध रखा था। आम की चटपटी चटनी में पके आम के स्वाद का आभास मिलता।

सनी का भीड़ जुटाना और अपने आम पर बालसुलभ हक जताना एक दिन बखेडा का कारण बना। शायद कछ लोगों को बहाने की तलाश थी। अलगाव की दबी इच्छा कुलाचे भरने लगी। फलों से लदा आम का वृक्ष बबूल की भाँति चुभने लगा। बँटवारे की पंचायत बुलाई गई। सनी की छोटी बुद्धि यह सब समझने में नाकाम थी। रीमा अवाक……। पशु-पक्षी-बच्चे स्तब्ध…।

चार लोगों के भूमि बँटवारे में वह वृक्ष सबके बीच में आया। कुल्हाड़ियों को लपलपाते देख सनी बेतहाशा रोने-चिल्लाने लगा। बेघर पक्षी चहचहाकर दुहाई देने लगे। कुत्ता-परिवार विलाप करने लगा। हिस्सेदार गण वृक्ष में लकड़ी का वजन कूतने लगे। अब वृक्ष और कुल्हाड़ी के बीच सनी पूरी ताकत से वृक्ष को सुरक्षित करने में लगा था। कई बच्चे भी सनी के पक्षधर थे, पर उनका विरोध नाकाफी था।

अंतिम आस के साथ निराश्रितों ने रीमा की ओर देखा। उठ रही पंचायत के बीच रीमा की आवाज गूंजी, “मेरा हिस्सा इन तीनों हिस्सेदारों को दे दिया जाये, बदले में यह आम का वृक्ष मेरे हिस्से में कर दो। यह वृक्ष मेरी संतान है, बल्कि संतान से बढ़कर है। पशु-पक्षियों का घर है। राहगीरों के लिए नैसर्गिक छत है। सनी का प्राण बसा है इसमें…। कुल्हाड़ी कहीं खो चुकी थी। नापी पुनः जारी थी। रीमा सब कुछ लुटाकर भी खुश थी। सनी अपनी माँ से लिपटकर गौरवान्वित था।

बच्चों के समक्ष उनके स्वार्थी अभिभावकों का चेहरा बेनकाब था। बेजुबान दिल से दुवाएँ दे रहे थे।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’